भोपाल। कांग्रेस के लिए आदिवासी बड़ा वोट बैंक रहा है, लेकिन अब भाजपा ने यहां सेंधमारी शुरू कर दी है। इससे कांग्रेस भी एलर्ट हुई है। इसको लेकर बुधवार को कमलनाथ ने इस वर्ग के विधायकों, पूर्व विधायकों, अन्य पदाधिकारियों के साथ मंथन किया। पदाधिकारियां का सुझाव था कि परिक्रमा करने वालों के बजाय पराक्रम करने वालों को मौका दिया जाए। करीब चार घंटे चली इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विधायकों और आदिवासी बहुल जिलों से आए नेताओं की बात सुनी। अधिकांश नेताओं ने कहा कि इस समाज को संगठन में आबादी के अनुपात में संगठन में जगह दी जाए। इस पर कमलनाथ ने कहा कि आपकी मांग व सुझाव पर चिंतन कर जल्दी ही निर्णय लिया जाएगा।
सामान्य सीट पर भी आदिवासी को टिकट दिया जाए
बैठक में यह मांग भी की गई कि प्रदेश में कई समान्य सीटें ऐसी हैं, जहां आबादी के हिसाब से आदिवासी नेताओं को चुनाव मैदान में उतारना चाहिए। यहां यह समुदाय जीत-हार में बड़ा फैक्टर हैं। यहां बालाघाट, बरगी और सिलवानी विधानसभा सीट का उदाहरण भी दिया गया। डा. अशोक मर्सकोले ने कहा कि यदि इन तीनों सीटों पर आदिवासी नेताओं का नाम आगे बढ़ाया जाता तो इसका फायदा कांग्रेस को मिलता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
35 सीटें ऐसी, जहां कांग्रेस कभी नहीं जीती
बैठक में यह भी कहा गया कि प्रदेश की 230 में से 35 सीटें ऐसी हैं, जहां काग्रेस कभी चुनाव नहीं जीती है। इन सीटों पर आदिवासी नेताओं को चुनाव लडऩे का मौका क्यों नहीं दिया गया? यह भी कहा गया कि 105 सीटें ऐसी हैं, जहां इस समाज की आबादी 15 से 40त्न तक है। इसको ध्यान में रखकर प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
मोदी और शाह दिखा चुके हैं ताकत
आदिवासियों को साधने की जुगत लगातार जारी है। हाल ही में हुआ कांग्रेस का आदिवासी सम्मेलन बीजेपी को अपनी ताकत बताने के लिए था, हालांकि उस दिन कांग्रेस कुछ कमाल नहीं दिखा पाई। सम्मेलन में प्रदेश भर से आदिवासियों को आमंत्रित किया था। इससे पहले 18 सितंबर को जबलपुर में शहीदी दिवस पर बीजेपी ने आयोजन रखा था, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे। 2023 के लिए शाह के बाद मोदी के दौरे के जरिए आदिवासियों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।
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