इंदौर। अवैध निर्माणों (Illegal Constructions) की कम्पाउंडिंग (Compounding)के लिए कैबिनेट (Cabinet)निर्णय के बाद विधि और विधाई कार्य विभाग ने 20 जुलाई (July) को गजट नोटिफिकेशन (Gazette Notification ) भी कर दिया, जिसमें 10 की बजाय 30 फीसदी तक अवैध निर्माणों की कम्पाउंडिंग (Compounding) करने का प्रावधान किया गया है। इसी नोटिफिकेशन में अवैध कालोनियों को वैध (valid) करने की प्रक्रिया भी दी गई है। लेकिन नगरीय विकास एवं आवास मंत्रालय (ministry of housing) द्वारा इस संबंध में नियमों का प्रकाशन किया जाना है और प्रक्रिया आगामी 15 दिन में पूरी हो जाएगी।
नगरीय विकास एवं आवास मंत्रालय (ministry of housing) के उपसचिव सुभाशीष बनर्जी (Subhasish Banerjee) ने अग्निबाण (Agniban) को बताया कि 30 फीसदी तक कम्पाउंडिंग (Compounding) के नियम लागू कर दिए जाएंगे, जिसको तैयार करने की प्रक्रिया जारी है। इसी सिलसिले में कल नगरीय विकास आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने विधायकों की एक कार्यशाला भी आयोजित की, जिसमें इंदौर के महेन्द्र हार्डिया, मालिनी गौड़ ने भी अवैध कालोनियों, कम्पाउंडिंग से लेकर मास्टर प्लान की विसंगतियों पर खुलकर अपनी बात रखी। दरअसल, अभी तक 10 फीसदी अवैध निर्माणों की ही कम्पाउंडिंग नगर निगम द्वारा की जाती है। मगर अब उसे बढ़ाकर 30 फीसदी तक शासन ने कर दिया है। लेकिन नियमों में संशोधन करना पड़ेगा। उसके साथ ही कम्पाउंडिंग के लिए ली जाने वाली राशि और किस तरह के निर्माण वैध किए जा सकते हैं इन सबका खुलासा नियमों के जरिए ही होगा। हालांकि पार्किंग से लेकर स्वीकृत नक्शे के विपरित किए गए निर्माण या भू-उपयोग बदलकर हुए निर्माणों की कम्पाउंडिंग नहीं हो सकेगी। यानी अगर आवास का नक्शा मंजूर करवाया है और मौके पर आवास का ही निर्माण किया गया, लेकिन यह निर्माण स्वीकृत नक्शे से 30 फीसदी तक ज्यादा है तो उसे कम्पाउंडिंग के जरिए वैध किया जा सकेगा। लेकिन आवासीय नक्शे पर अगर व्यवसायिक या अन्य निर्माण किया है तो वह कम्पाउंडेबल नहीं रहेगा।
एक ही लाइसेंस पर कर सकेंगे पूरे प्रदेश में काम
पूर्व कांग्रेस ( former congress) की कमलनाथ सरकार (Kamalnath Government) ने यह प्रावधान किया था कि अगर कोई बिल्डर (Builder) या कॉलोनाइजर किसी एक शहर में लाइसेंस लेता है तो वह पूरे प्रदेश में उसी आधार पर काम कर सकता है। अब इसी तरह का प्रावधान शिवराज सरकार भी लाने जा रही है। यानी एक लाइसेंस पर प्रदेशभर में कालोनाइजेशन या बिल्डिंग निर्माण का काम किया जा सकेगा। संबंधित व्यक्ति को हर जगह अपने प्रोजेक्टों के लिए अलग-अलग लाइसेंस लेने की प्रक्रिया नहीं करना पड़ेगी। इसके लिए सेंट्रलीकृत लाइसेंसी सिस्टम अपनाया जाएगा। अभी नगर निगम से लेकर पंचायत क्षेत्र में काम करने के लिए अलग-अलग लाइसेंस लेना पड़ता है। वहीं अगर इंदौर के किसी बिल्डर या कालोनीइजर को भोपाल में काम करना है तो उसे वहां के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है।
अवैध कालोनियों को वैध करने की प्रक्रिया भी होगी शुरू
शासन ने जो गजट नोटिफिकेशन किया उसमें अवैध कालोनियों को भी वैध करने का प्रावधान किया है। दरअसल, हाईकोर्ट ने वैध करने की प्रक्रिया को ही अवैध करार दिया था, जिसके चलते इंदौर सहित प्रदेशभर में अवैध कालोनियों के नियमितिकरण की प्रक्रिया ठप हो गई। बल्कि पूर्व में जो कालोनियां वैध हुई थी वे फिर से अवैध घोषित हो गई। कल भोपाल में आयोजित कार्यशाला में विधायक महेन्द्र हार्डिया और मालिनी गौड़ ने अवैध कालोनियों को वैध करने की प्रक्रिया को और सरल बनाने की बात कही। अब शासन एक्ट के साथ नियमों में भी संशोधन कर रहा है, ताकि फिर से कोर्ट-कचहरी का सामना ना करना पड़े। दरअसल, कोर्ट ने शासन के नियम 15-ए को शून्य घोषित कर दिया था।
टीडीएस लागू, मगर रिसीविंग झोन के ही पते नहीं
शासन आधे-अधूरे आदेश जारी करता है, जिसके चलते मास्टर प्लान से लेकर भूमि विकास अधिनियम और अन्य में कई तरह की विसंगतियां अभी भी कायम है। पिछले दिनों टीडीआर पॉलिसी को शासन ने लागू कर दी, जिसके चलते सडक़ चौड़ीकरण से लेकर अन्य कार्यों के लिए जमीन अधिग्रहण के बदले प्रभावितों को अतिरिक्त एफएआर के लिए टीडीआर सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं, जिसका इस्तेमाल बिल्डर या कालोनाइजर अपने अन्य प्रोजेक्टों में कर सकते हैं। मगर टीडीआर सर्टिफिकेट का इस्तेमाल किन क्षेत्रों यानी रिसिविंग झोन में होगा उसका ही अभी तक निर्धारण शासन नहीं कर पाया है। नगरीय प्रशासन एवं आवास मंत्रालय जब तक टीडीआर की पॉलिसी में डिलीवरी और रिसीविंग झोन तय कर उसकी विसंगतियों को दूर नहीं करेगा, तब तक टीडीआर पॉलिसी का कोई लाभ ही नहीं मिलेगा। अभी तक ग्राउंड कवरेज, पार्किंग से लेकर एमओएस सहित अन्य विसंगतियों के कारण टीडीआर सर्टिफिकेट कागजी ही साबित होगा। वहीं मेट्रो के लिए टीओडी पॉलिसी भी लाई जाना थी, वह भी फाइलों में ही बंद पड़ी है।
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