नई दिल्ली (New Dehli)। पांच राज्यों के विधानसभा (Assembly)चुनावों में उतरे केंद्रीय मंत्रियों (Union Ministers)और सांसदों की उलझनें (entanglements)बढ़ी हुई हैं। भाजपा ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में अपने कई मंत्रियों और सांसदों को चुनाव मैदान में उतारा है। इस बीच, सोमवार से संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू हो रहा है। ऐसे में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद भी स्थिति साफ नहीं हो सकेगी। राज्यों में नई सरकारों के गठन के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि कि जो सांसद चुनाव जीतते हैं, वह किस सदन के सदस्य रहेंगे।
जो मंत्री चुनाव मैदान में हैं, वह सोमवार से संसद सत्र में अपने मंत्रालयों के साथ मौजूद रहेंगे। हालांकि, वह सत्र के लिए अपने मंत्रालय को ज्यादा समय नहीं दे सके हैं। ऐसे में उनके मंत्रालयों के दूसरे मंत्री कैबिनेट व राज्य मंत्रियों पर ज्यादा जिम्मेदारी रहेगी। चुनाव लड़ रहे सांसद भी सदन में रहेंगे। भाजपा सूत्रों के अनुसार, नतीजों के बाद बनने वाली स्थिति में ही तय किया जाएगा कि जो सांसद व मंत्री चुनाव जीतते हैं, उनको राज्य में रखा जाए या केंद्र में। चुनाव हारने की स्थिति में सभी यथावत ही रहेंगे।
नए दावेदार भी उभरे
इस बीच जो सांसद व मंत्री चुनाव लड़े हैं, उनके क्षेत्रों में नए दावेदार भी उभरे हैं। अगर मंत्री व सांसद चुनाव हारते हैं तो उनकी लोकसभा के लिए दावेदारी कमजोर होगी और जीतने पर वह जिस सदन को भी चुनेंगे तो दूसरे सदन में जगह खाली होगी। हालांकि, जीत की स्थिति में लोकसभा सांसद अगर सीट खाली करते हैं तो उपचुनाव नहीं होंगे, क्योंकि आम चुनाव छह महीने से भी कम समय में अगले साल अप्रैल मई में होने हैं। अगर वह विधानसभा सीट खाली करते हैं तो उनके उपचुनाव भी लोकसभा के साथ ही होने की संभावना रहेगी।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा के लगभग डेढ़ दर्जन सांसदों के चुनाव मैदान में होने से उनके मौजूदा चुनाव क्षेत्रों में चुनाव बाद भी राजनीतिक हलचल बरकरार रहेगी। कई सांसद इस बात से भी चिंतित हैं कि अगर वह विधानसभा चुनाव हारते हैं तो लोकसभा चुनाव के लिए उनकी दावेदारी कमजोर पड़ेगी और अगली बार टिकट मिलने पर भी संकट आ सकता है।
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