नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) के एक वरिष्ठ जज(a senior judge) के द्वारा कुछ वर्षों के लिए वर्तमान या पूर्व जजों(present or former judges) के बच्चों को हाईकोर्ट के जज(High Court Judges) के रूप में नियुक्त करने के लिए चयन रोकने के प्रस्ताव दिया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में शामिल एक वरिष्ठ सदस्य ने प्रस्ताव दिया है कि जजों के बच्चों को पूरी तरह से नहीं रोकना चाहिए, लेकिन उनके लिए मानदंडों को उच्च करना होगा। आपको बता दें कि जज के प्रस्ताव की वकीलों के बीच खूब चर्चा हो रही है। वकील इसकी सराहना कर रहे हैं।
वकीलों की लंबे समय से शिकायत थी कि आम तौर पर हाईकोर्ट का जज बनने के लिए वर्तमान या भूतपूर्व न्यायाधीशों के परिजनों को प्राथमिकता दी जाती है। कॉलेजियम में शामिल इस सदस्य का कहना है कि ऐसे उम्मीदवारों के चयन को पूरी तरह से रोकना भेदभावपूर्ण होगा। ऐसा इसलिए कि न्यायिक नियुक्तियां केवल योग्यता और उपयुक्तता के आधार पर होती हैं।
इस सदस्य ने यह भी तर्क दिया कि यह कदम न्यायिक तंत्र को ऐसे प्रतिभाओं से वंचित कर सकता है, जिनकी आवश्यकता समय के साथ बढ़ती जा रही है। हालांकि, उन्होंने पहले जज के द्वारा प्रस्तावित उद्देश्य से सहमति जताई। उन्होंने इस दलील के लिए वकीलों के बीच असंतोष की भावना होने का तर्क दिया। उन्होंने यह भी माना कि ऐसे चयन कई बार योग्य होते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि वकीलों का असंतोष बुधवार को ‘फुल कोर्ट संदर्भ’ के दौरान सामने आया, जब सुप्रीम कोर्ट के तीन पूर्व जजों (जस्टिस कुलदीप सिंह, जस्टिस एम जगन्नाध राव और जस्टिस एच एस बेदी) को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इन तीनों जजों के बेटों को हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। इनमें से एक ने केवल छह महीने में अपने पद से इस्तीफा दे दिया और फिर से सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू कर दी।
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