नई दिल्ली: मणिपुर की स्थिति से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वहां पर कानून-व्यवस्था एवं संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. शीर्ष अदालत ने जातीय हिंसा की घटनाओं और खासतौर पर महिलाओं को निशाना बनाने वाले अपराधों की ‘धीमी’ और ‘बहुत ही लचर’ जांच के लिये राज्य पुलिस की खिंचाई की और सात अगस्त को सवालों का जवाब देने के लिए पुलिस महानिदेशक (DGP) को पेश होने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अनियंत्रित जातीय हिंसा को लेकर कानून लागू करने वाले तंत्र की आलोचना करते हुए कहा कि राज्य पुलिस ने कानून और व्यवस्था की स्थिति पर पूरी तरह से नियंत्रण खो दिया है.
अदालत ने राज्य सरकार से हत्या, बलात्कार, आगजनी, लूट, घर और संपत्ति, पूजा स्थलों को नुकसान और महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले मामलों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी. केंद्र का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से आग्रह किया कि भीड़ द्वारा महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने के वीडियो से संबंधित दो एफआईआर के बजाय 6,523 एफआईआर में महिलाओं और बच्चों से हिंसा से संबंधित सभी 11 मामलों को सीबीआई को सौंपा जा सकता है और मुकदमे की सुनवाई मणिपुर के बाहर कराई जा सकती है.
समिति गठित कर सकता है सुप्रीम कोर्ट
मणिपुर में हिंसा को लेकर दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि वह सभी प्राथमिकियों की जांच और उसके बाद की सुनवाई की निगरानी के लिए हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने पर विचार कर रही है, क्योंकि सीबीआई के लिए इन्हें अकेले संभालना मुश्किल होगा. इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं.
6,523 FIR अपराध की प्रकृति के आधार पर अलग नहीं की गई
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘फिलहाल अदालत के समक्ष जो जानकारी दी गई है वह अपर्याप्त है, क्योंकि 6,523 एफआईआर को अपराधों की प्रकृति के आधार पर अलग-अलग नहीं किया गया है. राज्य को इन्हें अलग-अलग सूचीबद्ध करने की कवायद करनी चाहिए और अदालत को सूचित करना चाहिए कि कितने मामले हत्या, बलात्कार, आगजनी, लूटपाट, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, महिला की गरिमा को भंग करने, धार्मिक स्थलों को क्षतिग्रस्त करने से जुड़े हैं.’’
धीमी गति से हो रही जांच
आदेश में कहा गया, ‘‘अदालत के समक्ष प्रस्तुत प्रारंभिक आंकड़ों के आधार पर, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि जांच धीमी रही है. घटना के होने और प्राथमिकी दर्ज करने, गवाहों के बयान दर्ज करने में चूक रही है और यहां तक कि गिरफ्तारियां भी बहुत कम हुई हैं.’’ पीठ ने कहा कि अब तक की गई जांच के सभी पहलुओं की जानकारी प्राप्त करने और उसके सवालों का जवाब देने के लिए मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को सोमवार को उसके समक्ष उपस्थित होना होगा.
वायरल वीडियो पर सवालों की झड़ी
सुनवाई शुरू होने पर केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि राज्य पुलिस ने मई में जातीय हिंसा भड़कने के बाद 6,523 प्राथमिकियां दर्ज कीं. जैसे ही विधि अधिकारी ने पुलिस द्वारा की गई कार्रवाइयों का हवाला देकर दलीलें पेश करनी शुरू की, प्रधान न्यायाधीश ने वायरल वीडियो मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी, पीड़ित महिलाओं के बयान दर्ज करने और अन्य आवश्यक कानूनी आवश्यकताओं, जिनका अनुपालन शीघ्र किया जाना चाहिए था, उन्हें लेकर सवालों की झड़ी लगा दी.
SC ने FIR में 2 महीने की देरी पर उठाए सवाल
अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘‘ हम एक अलग आयाम के युद्ध के बीच में हैं. सीमावर्ती इलाकों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जो बेहद परेशान करने वाली हैं. हमें इस मामले में एक सुविचारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है.’’ सख्त रुख अख्तियार करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘दो महीने तक, स्थिति प्राथमिकी दर्ज करने के लिए भी अनुकूल नहीं थी. इससे हमें यह आभास होता है कि मई से जुलाई के अंत तक, राज्य में संवैधानिक व्यवस्था इस हद तक चरमरा गई थी कि आप प्राथमिकी भी दर्ज नहीं कर सकते थे.’’
संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त
पीठ ने कहा, ‘‘ स्थिति नियंत्रण से बाहर होने के कारण पुलिस गिरफ्तारी नहीं कर सकी. पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के लिए क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सके. इसे सच मानते हुए, क्या यह इस तथ्य की ओर इशारा नहीं करता है कि राज्य में कानून-व्यवस्था और संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था. यदि कानून एवं व्यवस्था तंत्र नागरिकों की रक्षा नहीं कर सकता, तो नागरिक कहां जाएं.’’ स्थिति रिपोर्ट का अवलोकन करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वीडियो मामले में ‘जीरो’ प्राथमिकी चार मई को दर्ज की गई, जबकि नियमित प्राथमिकी उसके 14 दिन के बाद दर्ज की गई थी और पीड़ितों का बयान 26 जुलाई को दर्ज किया गया. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ माननीय सॉलिसिटर, जांच पर गौर करें. यह बहुत लचर है. दो महीने बाद प्राथमिकी दर्ज की गई, गिरफ्तारी नहीं हुई, इतना समय बीतने के बाद बयान दर्ज किए गए. एक चीज स्पष्ट है कि वीडियो मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी हुई.’’
केवल 7 लोगों की गिरफ्तारी से कोर्ट नाराज
विधि अधिकारी ने अदालत को समझाने की कोशिश की कि उसके द्वारा की गई कठोर टिप्पणियां राज्य में मौजूदा जमीनी स्थिति को प्रभावित कर सकती हैं. सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि पुलिस थानों के सभी अधिकारियों को महिलाओं और बच्चों द्वारा की जाने वाली यौन हिंसा की शिकायतों के प्रति संवेदनशील रुख अपनाने का निर्देश दिया गया है. शीर्ष अदालत राज्य में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा के 11 मामलों में अब तक एक किशोर सहित केवल सात लोगों की गिरफ्तारी पर भी नाराज दिखी.
केंद्र ने जानकारी मिलते ही की कार्रवाई
मेहता ने कहा, ‘‘जमीनी स्थिति को देखते हुए कुछ देर हो सकती है, लेकिन जैसे ही केंद्र सरकार को एक मामले की जानकारी हुई हमने कार्रवाई की.’’ उन्होंने कहा कि हालात अब सामान्य हो रहा है. ‘‘जैसे ही हमें पहली घटना (महिलाओं पर अत्याचार की) की जानकारी मिली, हमने न केवल इसे सीबीआई को सौंपा, बल्कि हमने इस अदालत से मामले की निगरानी करने का अनुरोध भी किया. इन परिस्थितियों में इससे अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी तरीका नहीं हो सकता.’’ अदालत ने तब विधि अधिकारियों की इन दलीलों को स्वीकार कर लिया कि उन्हें राज्य के अधिकारियों के साथ बैठक के बाद शीर्ष अदालत के सवालों का जवाब देने के लिए समय चाहिए. जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में उस समय तनाव और बढ़ गया था, जब चार मई की घटना का एक वीडियो सामने आया, जिसमें एक समुदाय के लोगों की भीड़ दूसरे समुदाय की दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाती नजर आ रही है. इससे पहले, आज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को मणिपुर में पीड़ित महिलाओं के बयान दर्ज न करने का निर्देश देते हुए कहा कि वह इस मामले से जुड़ी कई याचिकाओं पर अपराह्न दो बजे सुनवाई करेगा.
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