नई दिल्ली: टेक कंपनियों और मीडिया हाउस के बीच रेवेन्यू लेकर दुनियाभर में लंबे समय से विवाद है. डिजिटल मीडिया और न्यूज पब्लिशर्स का कहना है कि Google और Facebook जैसी दिग्गज टेक कंपनियां सोर्स के तौर पर उनका कंटेंट इस्तेमाल करती हैं. इससे कंपनियों को तगड़ा मुनाफा होता है लेकिन मीडिया हाउस को इसके बदले में भुगतान नहीं किया जाता. इस मामले में अब सरकार भी एक्टिव हो गई है.
टेक कंपनियों पर लगाम कसने के लिए अब केंद्र सरकार मीडिया हाउस के कंटेंट का इस्तेमाल करने पर भुगतान को लेकर IT कानून लागू करने की दिशा में काम कर रही है. इस तरह का कानून ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और फ्रांस में पहले से लागू है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (MeitY) राजीव चंद्रशेखर ने बताया कि सरकार भारत के मीडिया घरानों को बड़ी टेक कंपनियों से बचाने के लिए IT कानून लाने पर काम कर रही है. यह कानून सुनिश्चित करेगा कि भारतीय मीडिया को Google और Facebook जैसी टेक कंपनियों से डील करते समय नुकसान न उठाना पड़े.
कई देशों में लागू है कानून
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने आगे कहा कि कानून के मुताबिक भारतीय मीडिया हाउस की रक्षा करने की जरूरत है. भारत ऐसा पहला देश नहीं है, जो इस तरह के कानून पर काम कर रहा है. कई देश पहले ही ये कर चुके हैं. दुनिया भर की सरकारें टेक कंपनियों के बिजनेस मॉडल को लेकर सजग हो रही हैं. इन कंपनियों का बिजनेस मॉडल मीडिया हाउस और पब्लिशर्स के लिए नुकसानदायक रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि सरकार चाहती है कि दिग्गज टेक कंपनियों से मीडिया हाउस और पब्लिशर्स को मुआवजा मिले. लेकिन दुनिया भर के मीडिया हाउस को मुआवजा दिलाना आसान काम नहीं है. ऑस्ट्रेलिया से लेकर फ्रांस और भारत तक Google और Facebook जैसी ताकतवर कंपनियों को बातचीत की टेबल पर लाना मुश्किल काम रहा है. लेकिन अब ये समय करीब आ गया है.
डेटा की ताकत समझ गई सरकार
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता पवन दुग्गल ने आजतक को बताया कि टेक कंपनियों को यह समझने की जरूरत है कि बिना कीमत अदा किए कुछ भी हासिल करना संभव नहीं है. उन्होंने कहा, ‘आखिरकार भारत सरकार भारतीय डेटा की ताकत पहचान गई है. भारतीय डेटा से होने वाले लाभ से विदेशियों को नहीं, भारतीयों को फायदा होना चाहिए.’
पवन दुग्गल ने आगे कहा कि एक तरह से भारतीय डेटा और भारतीय कंपनियां दशकों से सोशल मीडिया और टेक कंपनियों की दया पर आश्रित रहे हैं. लेकिन अब वक्त आ गया है कि ऐसे कानून बनाए जाएं, जो न केवल सुरक्षित हों, बल्कि मुआवजे के रास्ते भी खोले दें. इस पूरे विवाद की जड़ मीडिया हाउस और Microsoft, Google, Facebook, Instagram और WhatsApp जैसी बड़ी टेक कंपनियों के बीच रेवेन्यू का बंटवारा है.
कंटेंट से Google कमाता है मुनाफा
भारत का डिजिटल मीडिया और समाचार पत्र पब्लिशर्स अपने ओरिजिन कंटेंट के लिए रेवेन्यू का एक हिस्सा चाहते हैं. जब कोई यूजर Google पर कुछ सर्च करता है तो Google उसे सीधे पब्लिशर की वेबसाइट तक ले जाता है. इस सर्चिंग से Google मुनाफा कमाता है, लेकिन कंटेंट उपलब्ध कराने वाले को कुछ हासिल नहीं होता. कंटेंट प्रोवाइडर इसे गलत मानते हैं. इंटरनेट बूम (प्रसार) होने से ग्लोबल डिजिटल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को फायदा हुआ है. विज्ञापन के बदले मिलने वाला रेवेन्यू आसमान छू रहा है.
टेक कंपनियां लगातार अपना मुनाफा बढ़ा रही हैं. डिजिटल मीडिया और न्यूज पेपर पब्लिशर्स मानते हैं कि टेक कंपनियों की इस ग्रोथ में उनके कंटेंट का अहम रोल है. दुनियाभर के मीडिया हाउस ने जब महसूस किया कि उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है, तब वे एकजुट हो गए और अपने अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू की. टेक कंपनियों के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी में लाए गए कानून वहां के मीडिया हाउस की लड़ाई का ही नतीजा हैं.
कानून बनाने वाला ऑस्ट्रेलिया पहला देश
ऑस्ट्रेलिया ने कुछ समय पहले एक नया कानून पास किया है. इस कानून के मुताबिक Facebook और Google जैसी टेक कंपनियों को सर्च रिजल्ट में स्थानीय मीडिया हाउस का कंटेंट लिंक करने या न्यूज फीड में दिखाने पर उन्हें भुगतान करना होगा. ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला देश है, जहां टेक कंपनियों और पब्लिशर्स के बीच अगर कोई स्वतंत्र डील नहीं हो पाती है तो सरकार का नियुक्त किया गया मध्यस्थ हस्तक्षेप करता है. ऐसे केस में मध्यस्थ ही तय करता है कि टेक कंपनी ऑस्ट्रेलियन न्यूज पब्लिशर को कितना भुगतान करेगी.
जर्मनी, फ्रांस और स्पेन में भी नियम
पिछले साल ही Google ने कई बड़े जर्मन और फ्रेंच प्रकाशकों के साथ कॉपीराइट डील करने का ऐलान किया था. Google ने कहा था कि वह हजारों दूसरे यूरोपीय पब्लिशर्स को लाइसेंस एंग्रीमेंट की पेशकश करने के लिए एक नया टूल लाने जा रहा है. स्पेन ने पिछले साल ही यूरोपियन यूनियन (EU) के संशोधित कॉपीराइट नियमों को अपने कानून में शामिल किया है. अब स्पेन के मीडिया आउटलेट्स सीधे Google से बातचीत करते हैं. चाहे बड़े मीडिया हाउस हों या छोटे, सभी खुद तय करते हैं कि उनके कंटेंट को किस तरह खोजा जा सकता है और उसके बदले मिलने वाली रकम तय करने की आजादी भी उन्हें है.
EU के देशों ने अपनाए नए निर्देश
यूरोपियन यूनियन के देशों ने पब्लिशर्स को उनके कंटेंट पर अतिरिक्त अधिकार देने के लिए 2019 के EU के निर्देशों को अपना लिया है. EU के नए कानून से एक तरफ Google जैसे सर्च इंजन्स को न्यूज कंटेंट के इस्तेमाल की मंजूरी मिली है तो वहीं पब्लिशर्स को कंटेंट के इस्तेमाल के लिए ऑनलाइन प्रिव्यू करने का विकल्प भी दिया है.
भारत में Google के खिलाफ जांच जारी
इंडियन न्यूजपेपर्स सोसाइटी (INS) भारत की एंटी-ट्रस्ट एजेंसी (Competition Commission of India) में गूगल के खिलाफ शिकायत कर चुकी है. CCI को अपनी शिकायत में INS ने Alphabet इंक, Google एलएलसी, Google इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, Google आयरलैंड लिमिटेड और Google एशिया पैसिफिक पीटीई लिमिटेड के खिलाफ कंप्लेंट की है.
शिकायत में कहा गया है कि ये कंपनियां भारतीय ऑनलाइन समाचार मीडिया बाजार में कथित तौर पर न्यूज रेफरल सेवाओं और गूगल एड से संबंधित अपनी सेवाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं. यह प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4 का उल्लंघन है. शिकायत में यह भी कहा गया है कि Google जैसे सर्च इंजन पब्लिशर्स के कंटेंट से मोटा मुनाफा कमाते हैं और इसके बदले कंटेंट प्रोवाइडर को बहुत कम भुगतान करते हैं. इन आरोप के बाद गूगल के खिलाफ जांच के आदेश जारी हो चुके हैं.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved