इंदौर, विकाससिंह राठौर। देश में अब इलायची के नाम पर गुटखा और पानी या सोडे के नाम पर शराब का विज्ञापन करना आसान नहीं होगा। एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) ब्रांड एक्सटेंशन के नाम पर होने वाले इस फर्जीवाड़े पर रोक लगाने जा रही है। एएससीआई ने इसे लेकर हाल ही में नई गाइड लाइन जारी की है, जिसमें कहा गया है कि कंपनियां जिस उत्पाद का विज्ञापन कर रही है वे विज्ञापन पर उस प्रोडक्ट के पहले टर्नओवर के 200 प्रतिशत से ज्यादा खर्च नहीं कर सकेगी, हर साल इस प्रतिशत में कमी भी होगी।
आपने अक्सर विज्ञापनों में देश-दुनिया के बड़े सेलिब्रिटी को कुछ ऐसे प्रोडक्ट का विज्ञापन करते देखा होगा, जो आमतौर पर बाजार में नजर ही नहीं आते। कंपनियां इन विज्ञापनों के लिए सैकड़ों करोड़ खर्च करती हैं, लेकिन ये उत्पाद बनाने और बेचने में उनकी रुचि नहीं होती, क्योंकि इन प्रोडक्ट्स के नाम पर कंपनी अपने दूसरे प्रोडक्ट का अप्रत्यक्ष रूप से विज्ञापन कर रही होती हैं, जिनके सीधे विज्ञापन किए जाने पर प्रतिबंध है। ऐसे उत्पादों में पान मसाला, गुटखा, सिगरेट और शराब जैसी चीजें आती हैं। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के कारण इनके प्रचार पर शासन ने रोक लगा रखी है। इसे देखते हुए कंपनियां इन्हीं नामों से दूसरी चीजें बनाकर उनका विज्ञापन करती हैं, लेकिन उनका मकसद अपने मूल उत्पाद का प्रचार करना ही होता है।
क्या होता है ब्रांड एक्सटेंशन
कोई भी कंपनी अपने किसी प्रोडक्ट के साथ रजिस्टर्ड होती है, वहीं उसका मूल ब्रांड होता है, लेकिन जब कंपनी अपने मूल ब्रांड के नाम से नए प्रोडक्ट लांच करती है तो इसे ब्रांड एक्सटेंशन कहा जाता है। यह बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है। जैसे कार बनाने वाली कोई कंपनी मोटरसाइकिल बनाना शुरू करे।
नई गाइड लाइन से लगेगी रोक
एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा ब्रांड एक्सटेंशन के नाम पर विज्ञापनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए हाल ही में नई गाइड लाइन जारी की है। इसमें कहा गया है कि किसी मौजूदा प्रतिबंधित ब्रांड के नाम पर नए प्रोडक्ट के विज्ञापन पर खर्च की जाने वाली राशि, उसकी बिक्री के अनुपात में होनी चाहिए। विज्ञापन बजट में पिछले एक साल में हर मीडिया माध्यम पर किया गया खर्च वार्षिक आधार पर सेलिब्रिटी को पेमेंट और पिछले 3 सालों में ब्रांड एक्सटेंशन के लिए विज्ञापन बनाने पर खर्च की गई सालाना औसत राशि शामिल होगी।
विज्ञापन पर इतना ही खर्च कर सकेंगी कंपनियां
प्रोडक्ट लॉन्च के पहले 2 सालों में टर्नओवर का 200 प्रतिशत, तीसरे वर्ष में 100 प्रतिशत, चौथे वर्ष में 50 प्रतिशत इसके बाद हर वर्ष टर्नओवर का 30 प्रतिशत तक विज्ञापन पर खर्च किया जा सकेगा
सीए फर्म से करवाना होगा सर्टिफिकेशन, गड़बड़ी पाई जाने पर होगी कार्रवाई
गाइड लाइन में यह भी कहा गया है कि विज्ञापन पर होने वाले सभी खर्चों की सारी रिपोर्ट किसी स्वतंत्र सीए फर्म से प्रमाणित होना चाहिए, साथ ही अगर कहीं भी किसी नियम का उल्लंघन पाया जाता है तो इसे ब्रांड एक्टेंशन विज्ञापन के बजाए प्रतिबंधित वस्तु के विज्ञापन की श्रेणी में रखा जाएगा और उसी आधार पर कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
कैसे हो रहा है ब्रांड एक्सटेंशन का दुरुपयोग
कोई भी कंपनी शासन की व्यवस्था के अनुरूप अपने ब्रांड का एक्सटेंशन कर सकती है, लेकिन विज्ञापनों के लिए प्रतिबंधित उत्पाद बनाने वाली कंपनियां इन नियमों का दुरुपयोग करती आ रही हैं। जैसे शराब बनाने वाली कंपनी अपने शराब ब्रांड का सीधा विज्ञापन नहीं कर सकती तो वो उसी नाम से पानी, सोडा या म्यूजिक सीडी का विज्ञापन करती है। इसी तरह सिगरेट, गुटखा और पान मसाला बनाने वाली कंपनियां इलायची या मिठी सुपारी जैसी चीजों का विज्ञापन करती हैं, जबकि अक्सर ये चीजें बाजार में उपलब्ध ही नहीं होती हैं और इनके प्रचार के लिए कंपनियां बड़े सेलिब्रिटी को करोड़ों रुपए देती है, साथ ही विज्ञापनों को प्रचारित करने के लिए टीवी पर भी करोड़ों रुपए खर्च करती है।
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