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    अमेरिका के दबाव के बीच कम्युनिस्ट पार्टी का बड़ा फैसला, तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बनेंगे शी जिनपिंग

  • October 13, 2022

    नई दिल्‍ली । चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) एक बार फिर अपने संस्थापक माओत्से तुंग (Mao Zedong) के युग को दोहराने जा रही है. अमेरिका (America) के बढ़ते दबाव के बीच सीपीसी ने शी जिनपिंग (Xi Jinping) को ही राष्ट्रपति (President) चुनने का फैसला किया है. बुधवार को बंद कमरे में हुई मीटिंग के बाद पार्टी की तरफ से एक बयान जारी की गई है, जिसमें जिनपिंग को पार्टी का “कोर” बताया गया है. चीन में जिनपिंग की पहचान पश्चिम के खिलाफ एक अक्रामक नेता के रूप में की जाती है. यही वजह है कि पार्टी ने पुराने 10 साल के कार्यकाल के नियम को तोड़ने का निर्णय लिया है.

    16 अक्टूबर को पार्टी कांग्रेस की मीटिंग है, जिसमें राष्ट्रपति के रूप में जिनपिंग के नाम पर मुहर लगाया जाना है. चार दिवसीय मीटिंग में जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल को मंजूरी दी जाएगी. प्रेस रिलीज में पार्टी ने जिनपिंग और उनके काम की प्रशंसा की है. हालांकि पार्टी के संविधान में 2017 में ही बदलाव किया गया था और जिनपिंग को आजीवन राष्ट्रपति घोषित किया गया था. अब पार्टी के अंतिम फैसले से सीपीसी के संविधान संशोधन को भी मंजूरी मिल गई है. शी जिनपिंग को अक्टूबर, 2016 में बीजिंग में बंद कमरे में हुई इसी तरह की बैठक में सीपीसी का “कोर” नियुक्त किया गया था, जिससे उन्हें पार्टी के और मॉडर्न चीन के संस्थापक माओत्से तुंग के बराबर माना जाने लगा.


    अपनी मौत तक शीर्ष नेता के पद पर बने रहे माओ
    बुधवार को पार्टी की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्थाओं में से एक, सीपीसी की केंद्रीय समिति ने पिछले पांच वर्षों में शी के नेतृत्व में “असामान्य और असाधारण” उपलब्धियों की प्रशंसा की. प्रेस रिलीज में कहा गया है कि शी जिनपिंग ने पिछले पांच वर्षों में कई अनसुलझी समस्याओं को सुलझाया है और उन्होंने कई महत्वपूर्ण चीजों को पूरा भी किया है.

    प्रेस रिलीज में कहा गया है कि पार्टी के भीतर शी की मूल स्थिति “पूरी पार्टी, पूरी सेना और पूरे देश के एम्बिशन को दर्शाती है, और पार्टी की कोशिशों के लिए एक निर्णायक महत्व रखती है.” सीपीसी के सदियों पुराने इतिहास में माओ 1976 में अपने मृत्यु तक देश के शीर्ष नेता की पद पर बने रहे और अपनी क्रांति की नीतियों अधीन रहे. उनके कार्यकाल में उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले बुद्धिजीवियों का सफाया कर दिया गया.

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