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    आओ… विकास की अर्थी उठाए…

  • February 25, 2023


    विमुक्ताजी मुक्त हो गई… इस बेदर्द समाज से… इस निष्ठुर संस्कृति से… विकास की अंधी दौड़ में डूबे इस शहर से… जहां इतनी निर्ममता पसरी पड़ी है कि बच्चे हत्यारे हो जाते हैं… पेट्रोल डालकर जिंदा जलाते हैं… ज्ञान देने वालों को मौत का पाठ पढ़ाते हैं… इस कदर हिंसक हो जाते हैं कि बेवजह बेकसूर लोगों के कत्ल पर उतर आते हैं… और कत्ल भी ऐसा… मौत भी ऐसी… कि सुनने वाला सिहर जाए… देखने वाला देख ना पाए… हंसता खेलता शरीर आग का गोला बन जाए… तड़पते हुए… दौड़ते हुए अपनी जान बचाने की गुहार लगाए… कसूर क्या था उस ज्ञान की देवी का… कैसे निर्मम हो गया एक मंदबुद्धि लडक़ा… कैसे बदहवास हो गया उसका मिजाज… कैसे इतनी बड़ी वहशियत पर वह उतर आया… कैसे ऐसी मनहुसियत भरी हिमाकत की हिम्मत जुटा पाया कि एक शिक्षिका को अकेली पाकर उसे जिंदा जलाकर मारने की हैवानियत पर उतर आया … इस शहर ने भौतिक विकास तो कर लिया, लेकिन नैतिक पतन उसके गर्त को छू चुका है… इस शहर ने स्वच्छता का खिताब तो हासिल कर लिया, लेकिन क्रूरता, निर्लज्जता और वहशियत का दाग उसे लजा रहा है… इस शहर में हम देवी अहिल्या की संस्कृति और सभ्यता के गीत तो गाते हैं, मगर निल्र्लजता, अत्याचार की चीखें दबा नहीं पाते हैं… हम विकास यात्रा निकालकर चौड़ा सीना तो दिखाते हैं, लेकिन इस विनाश यात्रा पर चिंतित नजर नहीं आते हैं… हम स्कूल की इमारतें तो बनाते हैं, लेकिन ज्ञान नहीं दे पाते हैं… हमारे शहर में कई खून हुए… कई लाशें बिछी… कई अबलाएं अत्याचार का शिकार हुई, लेकिन आज गुरु-शिष्य की परंपरा का भी कत्ल हो गया… ऐसा नहीं है कि इस घटना ने दस्तक नहीं दी थी… लेकिन इस शहर का मस्तक झुकना था इसलिए कानून ने भी आंखें बंद कर ली… जिंदा जलने से पहले… मरने से पहले… अपने जीवन पर आए खतरे को भांपकर शिक्षिका ने कानून के दरवाजे कई बार खटखटाए… कई शिकायतें की, लेकिन न कानून ने अपना खौफ दिखाया… न पुलिस ने कत्र्तव्य निभाया… हमारे हाथों में शिक्षिका का वो शव थमाया जो सवाल कर रहा है अपना कसूर पूछ रहा है… विकास के शोर में गूंजते शिक्षिका के रूदन से पूरा शहर व्याकुल है… कानून तो अपना काम नहीं कर पाया, लेकिन समाज अपनी गिरती संस्कृति… बच्चों में पैदा होती विकृति पर क्यों नहीं चिंतित होता है… कोई दो रोटी की भूख से लड़ता है तो कोई धन और वैभव के नशे में चूर रहता है, लेकिन यह क्यों नहीं समझता है कि रोटी तभी भूख मिटाती है जब जीवन में सुकून रहता है और वैभव तब तक रहता है जब तक किसी दुष्ट की निगाह में नहीं पड़ता है… हम समाज तो सुधार नहीं पाते हैं उल्टा इतने निर्मम और गैर संवेदनशील हो जाते हैं कि मौत से संघर्ष करती शिक्षिका के इंसाफ के लिए केवल ज्ञापन देकर संतुष्ट हो जाते हैं… हम यह तक भूल जाते हैं कि सरेआम गुंडे चाकू चला रहे हैं… नैतिकता और सदाशयता को जख्मी किए जा रहे हैं… कानून अंधा तो है ही… गूंगा-बहरा भी हो चला है… नेता विकास यात्रा निकाल रहे हैं और हम अर्थियां उठा रहे हैं… आज हम फिर एक बार ज्ञान की देवी को चिता पर नहीं लिटाएंगे… अपनी खामोशी की लाश भी उठाएंगे और इस शहर की शांति, सभ्यता, संस्कृति और परम्परा को भी आग में झोंककर आएंगे… अब भी नहीं सम्हले, कानून नहीं सम्हला, नेता नहीं जागे तो इस शहर में विकास का शोर नहीं विनाश की चीखें गुंजेंगी… चार दिनों तक तड़पती हुई विमुक्ताजी तो मुक्त हो गई… शहर की शांति सदियों तक मुक्ति के लिए तड़पेगी…

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    रफ्तार नहीं पकड़ सकी ट्रेन, 120 नहीं, 90 किमी की रफ्तार से हुआ ट्रायल

    Sat Feb 25 , 2023
    अभी 70 की गति से ही गुजरेंगी ट्रेनें, कड़छा-बरलई दोहरीकरण, कहीं धीमी-कहीं तेज चलेंगी यात्री गाडिय़ां इंदौर, अमित जलधारी। उज्जैन-इंदौर रेल लाइन (Ujjain-Indore Rail Line) दोहरीकरण प्रोजेक्ट (doubling project) के तहत कड़छा-बरलई सेक्शन (Kachha-Barlai section) में पिछले दिनों लिया गया स्पीड ट्रायल 120 नहीं, बल्कि 90 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से लिया गया। फिलहाल […]
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