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लौट आइए…अपने आंसू पोंछने के लिए दूसरे के आंसू मत बहाइए

August 18, 2024

माना कि अंधेरा है गहरा छाया हुआ… मगर रोशनी का दीपक तो है तुमने ही है थामा हुआ… जिंदगियां तबाह हो रही है उस एक दर्द की खातिर… हर शख्स दर्द से गुजर रहा है… इस बेरुखी के हाजिर… उस डॉक्टर के साथ हुई बेदर्दी का आक्रोश और आंसू हर जेहन और हर आंख में है… उस निर्दयता की हर सजा कम है… उस वहशियत को सीखचों में होना चाहिए… उस हैवानियत को अंजाम तक पहुंचना चाहिए… यह आग और आवाज हर दिल से निकल रही है, लेकिन उस वहशी, उस दरिंदे की सजा कम से कम उस शख्स को तो मत दो… जो इलाज से महरुम होकर दर्द से तड़प रहा है… जो तुम्हारी बेरुखी से मौत की तरफ बढ़ रहा है… जिसे मरता-बिलखता देख उसका परिवार तिल-तिल कर मर रहा है… जिस हुनर के साथ ईश्वर ने तुम्हें नवाजा… अपना स्वरूप जिस ईश्वर ने तुम्हे थमाया… जिस विश्वास को हर शख्स ने अपने दिल में जगाया कि डॉक्टर है तो जिंदगी के संघर्ष में जीत हो जाएगी… मौत भी उसके सामने आएगी तो हार जाएगी… लेकिन जंग के पहले ही वो शख्स हार रहा है… उसका विश्वास पराजित हो रहा है… उसकी सांसें उखड़ रही है… उसकी चेतनाएं शून्य हो रही है… उसका दर्द चिंघाड़ रहा है… लेकिन खामोश हो चुकी निर्भया की आत्मा की आवाज सुनने वाले डॉक्टर उस मरीज की चीख नहीं सुन पा रहे हैं… हड़ताल की ताल ठोककर अपनी ताकत दिखा रहे हैं… गलत है यह… विरोध, आक्रोश असहजता… एक दिन दो दिन के लिये होना चाहिए… उसमें भी अस्पताल के बाहर इलाज का विकल्प रहना चाहिए… आपातकालीन चिकित्सा के लिये हर परिस्थिति में डॉक्टर मौजूद रहना चाहिए… डॉक्टर भी उस फौजी के समान होता है जो सीमा पर शहीद होने के लिये अपने परिवार तक के बारे में नहीं सोचता है… चाहे जैसी परिस्थिति हो वो लड़ता रहता है… चाहे बर्फ की खंदक उसे ठिठुरन की इंतहा तक पहुंचाये या गर्म रेत उसके शरीर को झुलसाये वो सरहद पर डटा रहता है… लड़ता है मरता है, पर पूरे देश को सुरक्षित रखता है… फिर डॉक्टर कैसे किसे दर्द से तड़पता-सिहरता, चीखता छोड़ सकता है… सोचना यह है कि जिस दरिंदगी के खिलाफ डॉक्टर लड़ रहे हैं… कुछ उसी दरिंदगी के अनजाने में वो डाक्टर भी तो भागीदार नहीं बन रहे हैं… वो वहशियत और हैवानियत तो एक दरिंदे ने दिखाई, लेकिन आपमें तो लोगों ने ईश्वर की झलक पाई… इसलिए चेतना जगाइये… आक्रोश मिटाइये और काम पर लौट आइये… जो हुआ है उसे रोकने के लिये केवल सरकार, पुलिस और कानून के भरोसे अपने आपको छोडऩे की गलती न दोहराये… स्वयं की सुरक्षा का हाईटेक तरीका अपनाये… अस्पताल में डॉक्टरों का सुरक्षा संगठन बनाए… जरा सी भी हिमाकत करता कोई नजर आये तो सबके पास संदेश पहुंच जाए… और खुद पुलिस, सरकार और कानून बनकर उस दुष्ट को सबक सिखाये… तब हर निर्भया भयहीन हो पाएगी… तब डॉक्टर हैवानियत का भी इलाज कर पाएंगे… वरना इसी तरह आप अपने आंसू पोंछने के लिये उसके आंसू बहाते रह जाएंगे…

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रात 1 बजे हुई प्लानिंग, सुबह कोर्ट में सुनवाई के चलते प्रशासन, नगर निगम और पुलिस का अमला सुरेश पटेल की आलीशान कोठी और अन्य निर्माणों पर तोडफ़ोड़ -भारी संख्या में पुलिसकर्मी और निगम का अमला आधा दर्जन पोकलेन और कई जेसीबी के साथ तीन घंटे में ढहाया -प्रशासन के कई अफसर मौके पर डटे […]
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