इंदौर। सरफेसी एक्ट (SARFAESI ACT) के तहत 10 साल पहले के तीन प्रकरणों में बैंकों को गिरवी सम्पत्तियों (mortgaged assets) की नीलामी के बाद कब्जे हासिल नहीं हो पाए। दरअसल राजनीतिक दबाव-प्रभाव (political pressure effect) के चलते तहसीलदारों के जरिए कब्जे रूकवा दिए जाते हैं। कल शाम ही मकान-दुकान का कब्जा प्रशासन ने दिलवाया।
इन तीन प्रकरणों में बैंकों ने हाईकोर्ट (High Court) का दरवाजा खटखटाया, जिसके चलते मुख्य न्यायाधीश (chief Judge) के डबल बेंच में प्रकरण की सुनवाई हुई और खुद कलेक्टर मनीष सिंह को हाईकोर्ट में उपस्थित रहना पड़ा। दरअसल सेंट बैंक, जीआईसी हाउसिंग फाइनेंस और पिरामल केपिटल के पक्ष में सरफेसी एक्ट के तहत अपर कलेक्टर कोर्ट से आदेश जारी किए गए थे।
दरअसल बैंकों और वित्तीय संस्थाओं (financial institutions) द्वारा सरफेसी एक्ट के तहत प्रशासन के समक्ष बकाया वसूली (recovery of arrears) के लिए प्रकरण लगाए जाते हैं, जिनमें गिरवी रखी सम्पत्तियों के कब्जे प्रशासन द्वारा तहसीलदारों के माध्यम से बैंकों को नीलामी के पश्चात दिलवाए जाते हैं। कल कलेक्टर की पेशी के बाद ताबड़तोड़ शाम को बैंकों को ये कब्जे दिलवाए गए, जो कि राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते हो नहीं हो पाए थे।
फसल बीमा योजना में त्रुटियों के लिए बैंक होंगे जिम्मेदार
जिन कृषकों का फसल बीमा पोर्टल पर डेटा अपलोड करने में बैंकों द्वारा की गई त्रुटियां जैसे प्रीमियम राशि कम भेजने, आधार की गलत एन्ट्री, आईएफएससी कोड की गलत एन्ट्री, खसरा नं. गलत एन्ट्री, प्रीमियम न भेजने आदि की गई है तथा जिसके कारण कृषकों को फसल बीमा दावा राशि प्राप्त नहीं हो पा रही है, ऐसी स्थिति के लिए संबंधित बैंक जिम्मेदार होंगे।
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