– देवेन्द्रराज सुथार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने `मन की बात’ कार्यक्रम में पानी के संरक्षण की अपील करते हुए कहा कि वर्षा ऋतु आने से पहले ही हमें जल संचयन के लिए प्रयास शुरू कर देने चाहिए। पानी एक तरह से पारस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। कहा जाता है पारस के स्पर्श से लोहा, सोने में परिवर्तित हो जाता है। वैसे ही पानी का स्पर्श जीवन के लिए जरूरी है, विकास के लिए जरूरी है। दरअसल, बारिश के पानी को विभिन्न स्रोतों व प्रकल्पों में सुरक्षित व संग्रहित रखना व करना वर्षा जल संचयन कहलाता है। वर्षा जल संचयन वर्षा जल के भंडारण को संदर्भित करता है, ताकि जरूरत पड़ने पर बाद में इसका उपयोग किया जा सके। इस तरह व्यापक जलराशि को एकत्रित करके पानी की किल्लत को कम किया जा सकता है।
भारत में पेयजल संकट प्रमुख समस्या है। भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और इस वजह से पीने के पानी की किल्लत बढ़ रही है। सिकुड़ती हरित पट्टी इसका मुख्य कारण है। पेड़ों से जहां पर्याप्त मात्रा में वर्षा हासिल होती है, वहीं यही पेड़ भूमिगत जल का स्तर बनाये रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन द्रुत गति से होने वाले विकास कार्यों ने हमारी हरित पट्टी की तेजी से बलि ली है। उसी का नतीजा है कि न सिर्फ भूमिगत जल का स्तर नीचे गया है, बल्कि वर्षा में भी लगातार कमी आई है।
गौरतलब है कि भारत में दो सौ साल पहले लगभग 21 लाख, सात हजार तालाब थे। साथ ही, लाखों कुएं, बावड़ियां, झीलें, पोखर और झरने भी। हमारे देश की गोदी में हजारों नदियां खेलती थीं, किंतु आज वे नदियां हजारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। वे सब नदियां कहां गई, कोई नहीं बता सकता। बढ़ते भूजल की वजह से धरती की सतह धंसने लगी है। इसका परिणाम दुनिया के 63.5 करोड़ लोगों को भुगतना होगा। यह दावा हाल ही में हुए शोध में किया गया। साइंस जर्मन में छपे इस शोध के मुताबिक, जमीन के नीचे मिलने वाले पानी के दोहन के चलते 2040 तक दुनिया की 19 फीसदी आबादी पर इसका असर होगा। इसमें भारत, चीन और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। इसके चलते विश्व की 21 प्रतिशत जीडीपी पर भी असर पड़ेगा। अनुमान है कि जिस तरह से कृषि पर दबाव बढ़ रहा है और इंसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से भूजल का दोहन कर रहा है, उसका असर धरती की सतह पर पड़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर एशिया में देखने को मिलेगा। साथ ही, इससे करीब 7 करोड़ 14 लाख रुपये का नुकसान होगा।
शोध के अनुसार दुनिया के 34 देशों में 200 से ज्यादा जगह पर भूजल के अनियंत्रित दोहन के कारण जमीन धंसने के सबूत मिले हैं। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में 2.5 मीटर जमीन धंस चुकी है। ईरान की राजधानी तेहरान में कई जगह जमीन 25 सेंटीमीटर प्रति साल की दर से धंस रही है। धरती के नीचे एक निश्चित दूरी के बाद पानी मौजूद रहता है। इसका अत्यधिक मात्रा में दोहन करने पर एक बड़ा हिस्सा स्थान खाली हो जाता है। जब इस भूमि में दबाव पड़ता है तो जमीन धंस जाती है। ऐसे इलाके में यदि कोई आबादी बसी हो तो यह और भी खतरनाक हो सकता है। गौरतलब है कि भूजल संसाधनों का 2011 में किये गए नमूना मूल्यांकन के अनुसार, भारत में 71 जिलों में से 19 में भूजल का अत्यधिक दोहन किया गया है। जिसका अर्थ है कि जलाशयों की प्राकृतिक पुनर्भरण की क्षमता से अधिक जल की निकासी की गई है। 2013 में किये गए आकलन के अनुसार जिसमें जिलों के ब्लॉकों को शामिल किया गया और पाया गया कि यहां का 31 प्रतिशत जल खारा हो गया था।
जल प्रबंधन सूचना के अनुसार भारत में साठ करोड़ लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। अधिकांश बीमारियों का कारण दूषित जल ही है। लोगों को जो पानी पीने के लिए मिलता है वो आचमन के लायक भी नहीं रहता। पानी मात्र देखने के लिए होता है, पीने और खाने में उसकी गुणवत्ता नगण्य रहती है। पानी की कमी और प्रदूषण का अनेकों प्रत्यक्ष कारण रसायनिक खाद, कम वर्षा, ग्लोबल वार्मिंग, पोखर कुंआ का खात्मा, अनावश्यक खनन, अंधाधुंध फैक्ट्री का बनना आदि है। यह एक विचारणीय प्रश्न है क्या होगा जब भूजल का भंडार खत्म हो जाएगा? जल जीवन का अनिवार्य तत्व है। जल पीना जैविक आवश्यकता है तो दूसरी ओर जल स्नान, आचमन, पवित्रता की प्यास है।
ध्यातव्य है कि जल एक प्राकृतिक और असीमित संसाधन है, किंतु पीने योग्य जल की मात्रा सीमित है। पृथ्वी की सतह का 71 प्रतिशत जल से ढंका हुआ है जिसका 97 प्रतिशत भाग लवणीय जल के रूप में तथा शेष 3 प्रतिशत भाग अलवणीय जल के रूप में विद्यमान है, किंतु इसका अधिकांश भाग ग्लेशियरों में बर्फ के रूप में ठोसीकृत है। मानव के पीने योग्य जल की मात्रा अत्याधिक सीमित है। भारतीय संदर्भ में बात करें तो यहां विश्व जनसंख्या का 17 से 18 प्रतिशत भाग निवासरत है तथा जल संसाधनों की मात्रा केवल 4 प्रतिशत है, जिसका अधिकांश भाग मानव के अविवेकपूर्ण क्रियाकलापों के कारण सीमित और संदूषित होता जा रहा है।
वर्षा जल संचयन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। वर्षा जल का उपयोग घरेलू काम मसलन घर की सफाई प्रयोजनों, कपड़े धोने और खाना पकाने के लिए किया जा सकता है। वहीं औद्योगिक उपयोग की कुछ प्रक्रियाओं में इसका उपयोग किया जा सकता है। गर्मियों में वाष्पीकरण के कारण होने वाली पानी की किल्लत को ‘पूरक जल स्रोत’ के द्वारा कम किया जा सकता है। जिससे बोतलबंद पानी की किमतें भी स्थिर रखी जा सकेगी। यदि एक टैंक में पानी का व्यापक रूप से संचयन करे, तो साल भर पानी की पूर्ति के लिए हमें जलदाय विभाग के बिलों के भुगतान से निजात मिल सकती हैं। वहीं वर्षा जल संचयन को छोटे-छोटे माध्यमों में एकत्रित करके हम बाढ़ जैसे महाप्रयल से बच सकते हैं। इसके अतिरिक्त वर्षा जल का उपयोग भवन निर्माण, जल प्रदूषण को रोकने, सिंचाई करने, शौचालयों आदि कार्यों में बेहतर व सुलभ ढंग से किया जा सकता है।
भारत की बढ़ती जनसंख्या के कारण जल की मांग में दिनोंदिन वृद्धि आंकी जा रही है। आए दिन देश में जल की कमी के कारण होने वाली घटनाएं हमारा ध्यान खींचती रहती हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक मानव का दायित्व बनता है कि वो अपने हिस्से का पानी पहले ही संग्रहित करके रखे। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों और गुजरात के कुछ इलाकों में पारंपरिक रूप से घर के अंदर भूमिगत टैंक बनाकर जल संग्रह का प्रचलन है, इस परंपरा को अन्य राज्यों में लागू कर हम इस गंभीरता को कम कर सकते हैं। कठोर कानून के द्वारा नदियों में छोड़े जाने वाले अपशिष्ट पर लगाम लगाकर जल प्रदूषण को रोका जा सकता है और वर्षा चक्र को बाधित होने से बचाया जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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