भोपाल। बिजली कंपनियों की खराब वित्तीय स्थिति का असर कोयला आपूर्ति पर पड़ सकता है। बकाया पैसा जमा करने के लिए मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी पर खदानों से कोयले की आपूर्ति को रोकने के लिए बार-बार दबाव डाला जा रहा है। दरअसल, कोल कंपनियों की हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की देनदारी बनी हुई है। कोरोना संक्रमण में उधारी तेजी से बढ़ी है। इधर, परेशानी यह है कि बिजली पैदा करने वाली मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी को खुद करीब नौ हजार करोड़ रुपये के आसपास उधारी वितरण कंपनियों से वसूलनी है। कुल मिलाकर यदि कंपनियों ने राजस्व नहीं जुटाया तो रबी सीजन में बिजली की किल्लत हो सकती है।
मप्र में बिजली का बड़ा हिस्सा मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी से मिलता है। इसमें थर्मल पॉवर स्टेशन में कोयले की आपूर्ति कई बार प्रभावित होने से बिजली उत्पादन पर असर हुआ है। कोरोना संक्रमण के बीच भी ऐसी ही स्थिति बन रही है। पिछले छह माह से उपभोक्ताओं की तरफ से बिजली बिल का एरियर बढ़ता जा रहा है। सरकार ने भी कोविड-19 की वजह से मौजूदा समय में बिजली बिल का बकाया वसूलने पर रोक लगाई है। इसलिए सितंबर से मौजूदा बिजली बिल ही उपभोक्ताओं से लिया जा रहा है, उसमें भी 50 फीसद ही बिल का संग्रह हो पा रहा है।
कंपनी पर उत्पादन क्षमता बढ़ाने का दबाव
रबी सीजन में मप्र को सर्वाधिक बिजली की डिमांड होती है। कई बार 14 हजार मेगावाट के पार पहुंच चुकी है। उस वक्त मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी पर उत्पादन क्षमता बढ़ाने का दबाव होता है। ऐसे में कोयले की कमी से उत्पादन पर असर होगा। साउथ कोलफील्ड लिमिटेड (एससीएल), वेस्ट कोलफील्ड लिमिटेड (डब्ल्यूसीएल) और नॉर्दन कोलफील्ड लिमिटेड (एनसीएल) से कोयला आपूर्ति होती है। तीनों कंपनियों का करीब हजार करोड़ रुपये का बकाया बना हुआ है।
कोयले की फिलहाल कमी नहीं है। मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी पर लेनदारी है, लेकिन मौजूदा समय में पूरा देश संकटकाल से गुजर रहा है। करीब छह हजार करोड़ रुपये के आसपास पैसा लेना है। जरूरत के हिसाब से पैसा मिलता भी है। कोविड-19 में बकाया ज्यादा हुआ है। कोयला कंपनियों को भी इस हालात की जानकारी है। हम उनका भुगतान भी जल्द करेंगे।
मनजीत सिंह, प्रबंध संचालक, मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी
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