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    हादसे के शिकार होते कोचिंग केंद्र

  • July 31, 2024

    – गिरीश्वर मिश्र

    भारत एक महान देश है जिसके पास अतीत की बड़ी थाती है । हम सभी नागरिक देशभक्त हैं और भारतीय होने पर गर्व भी करते हैं । यह महान देश निकट भविष्य में ‘विश्व-गुरु’ बनने की उत्कट इच्छा पाले हुए है । इसके साथ ही भारत को ‘विकसित देश’ और तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति का दावा भी कर रहा है। इसे बनाने के लिए सभी कटिबद्ध भी हैं । इस दृष्टि से युवा वर्ग की खास भूमिका और दायित्व है । आज देश में सामाजिक और भौतिक विविधताएं तो हैं ही आर्थिक विषमता भी बहुत ज्यादा है। हर युवा ऊंची से ऊंची उड़ान भरने के लिए स्वाभाविक रूप से आतुर रहता है । इस हलचल भरे माहौल में युवा वर्ग अपने भविष्य को संवारने के लिए घर-बार छोड़ कर अपना भविष्य संवारने हेतु कोचिंग में पढ़ाई करने के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं । उनके अभिभावक रुपया-पैसा जुटा कर अपने बच्चों को कोचिंग के साथ परीक्षा की तैयारी में आर्थिक मदद करते हैं ।


    आशाओं और आकांक्षाओं की उठापटक के बीच ये युवा कठिन परिस्थितियों में अथक परिश्रम करते हैं । वे अपने सपनों को साकार करने के लिए धैर्यपूर्वक और लगन के साथ कोशिश करते हैं । अब औपचारिक डिग्री की गुणवत्ता पिटने के फलस्वरूप हर काम के लिए, यहां तक कि अगली कक्षा में प्रवेश या फैलोशिप के लिए भी कोई न कोई परीक्षा देना अनिवार्य हो चुका है । खस्ताहाल हो रहे विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की पढ़ाई अपर्याप्त होती है। ऐसे में यदि कोचिंग केंद्रों की झड़ी लग रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं । पर इस बेहद लोकप्रिय और नफे वाले शानदार व्यापार के विस्तार के साथ इसके सुचारु संचालन लिए जरूरी आधारभूत सुविधाओं का घोर अभाव भी होता है । वस्तुतः व्यावसायिक कोचिंग का विशाल धंधा शिक्षा की घोर दुरवस्था की स्थिति का बयान करता है ।

    पिछले कुछ वर्षों में कोचिंग संस्थानों में आग लगने की घटनाएं होती रही हैं ।अब दिल्ली के राजेंद्र नगर इलाके में एक नामचीन कोचिंग संस्थान के तलघर या बेसमैंट में जहां विद्यार्थी उपस्थित थे अचानक कंधों से ऊपर तक इतना पानी भर गया कि कोचिंग लेने वाले तीन व्यक्तियों, दो युवतियां और एक युवक, जो आईएएस ( सिविल सर्विस ) की तैयारी कर रहे थे, उनकी जान चली गई । अब तक ज्ञात तथ्यों से यह दुर्घटना आपराधिक लापरवाही का परिणाम लगती है परंतु इसकी जिम्मेदारी तय करना विवादास्पद ही रहेगा । यह अमानवीय दर्दनाक हादसा एक गैरकानूनी ढंग से बिना अनुमति के चलने वाली कोचिग केंद्र की निजी व्यवस्था के तहत हुआ ।

    जब भी गम्भीर घटना होती है जनता की आवाज उठती है और ‘जांच कमेटी बैठेगी’, ‘सख्त कार्रवाई होगी’, ‘कानून अपना काम करेगा’ और ‘दोषी को बख्शा नहीं जायेगा’ कहते हुए सरकार जगती है। उसकी ओर से प्रतिक्रिया का यह चिरपरिचित सधा-सधाया ‘स्टैण्डर्ड’ तरीका हो चुका है। कभी-कभी उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय जरूर अपनी आंख खुद खोल कर खास मामले का संज्ञान ले कर कार्रवाई करता है । मानव अधिकार आयोग भी कुछ ऐसा करता है । पर यह सब बड़े दुर्लभ प्रकरण में ही होता है जिसका निश्चय न्यायमूर्ति के नजरिए से होता है । प्रायः घटनाओं को और उनके आशय को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। समय बीतने के साथ लोग भूल जाते हैं और जिंदगी में आगे बढ़ जाते हैं। राजनीति और राजनेता भी बदल जाते हैं। हम अकसर वहीं खड़े रहते हैं जहां पहले खड़े थे। यथास्थितिवाद हमें और हमारे प्रिय नेताओं की बड़ी पसंदीदा तकनीक है।

    विद्यालय की पढ़ाई से विद्यालय की परीक्षा की तैयारी और कोचिंग की पढ़ाई से व्यावसायिक परीक्षा की तैयारी, यह आज अभिभावक और विद्यार्थी के मन में एक स्पष्ट समीकरण बन चुका है । इसी के अनुसार जीवन की डगर पर कदम बढ़ाने की कवायद चल रही है । आज मेधावी बच्चे विद्यालय को छोड़ कोचिंग में भर्ती हो रहे हैं । सरकारी शिक्षा के प्रति सरकार, समाज और विद्यार्थी सबका अविश्वास बढ़ रहा है । इसकी रोकथाम करने के बदले साझी प्रवेश परीक्षा इसी अविश्वास की पुष्टि करती है और घोषित करती है कि विद्यालय की पढ़ाई जैसे हो रही थी जारी रहेगी यदि आगे पढ़ने-पढ़ाने की इच्छा है तो विद्यालयी परीक्षा के अतिरिक्त इस नई परीक्षा को अनिवार्य रूप से पास करना होगा । विद्यालय की पढ़ाई प्रवेश परीक्षा के लिए सिर्फ प्रवेश पत्र रह जाएगी।

    गौरतलब है कि शिक्षा पर बाजार की जकड़न दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। कोचिंग केंद्र का गैर जिम्मेदार संचालन करने वाले अवैध अड्डा सरकारी तंत्र की आंखों के सामने चलता था और जाने कितनी जगह अभी भी चल रहा है। सरकारी व्यवस्था अकसर इस बात से बेखबर और उदासीन रहती है कि शिक्षा और कोचिंग के संस्थानों में क्या और कैसे हो रहा है । युवा वर्ग की जिंदगी के साथ इस तरह का खिलवाड़ अक्षम्य अपराध है । यह अलग बात है कि ऐसे और इसी तरह के हादसे गैरकानूनी शिक्षा की दुकानों में और उनके आस पास विद्यार्थियों के रहने के लिए बने ‘ पीजी’ आवासों में आये दिन होते रहते हैं । यहां ठूंस-ठूंस कर बच्चे भरे जाते हैं । मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से निहायत बुरे हालात में चलने वाले ये कोचिंग के व्यापार केंद्र देश में शिक्षा की दुर्गति की हकीकत बयान करते हैं । आज की जनसंख्या में युवा-वर्ग के अनुपात में वृद्धि के साथ शिक्षा पर दबाव लगातार बढ़ रहा है ऐसे में कोई राहत नजर नहीं आती । सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में निजी क्षेत्र का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है क्योंकि सरकार की ओर से न पर्याप्त निवेश हो रहा है न व्यवस्था ही ठीक हो पा रही है । चूंकि शिक्षा देश के समाज के मानस-निर्माण, उत्पादकता तथा सर्जनात्मक नवोन्मेष सब के लिए महत्वपूर्ण है इस समस्या पर तत्काल ध्यान देना आवश्यक है।

    (लेखक,महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)

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