नई दिल्ली। योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के संन्यास और राजनीतिक जीवन के बारे में आप काफी कुछ जानते होंगे। आज हम आपको उनके बचपन से जुड़े दस किस्सों से रूबरू कराएंगे। ये कहानी और किस्से उनकी बड़ी बहन शशि पयाल ने साझा किए हैं। इनमें आपको भाई-बहन(siblings) का प्यार दिखेगा और अपनों का दर्द भी। योगी आदित्यनाथ से जुड़े किस्सों से पहले आप उनके परिवार के बारे में जान लीजिए।
सात भाई-बहन, पिता फॉरेस्ट रेंजर थे
योगी आदित्यनाथ का जन्म पांच जून 1972 को उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के पौड़ी गढ़वाल जिले स्थित यमकेश्वर तहसील के पंचुर गांव में हुआ था। पिता आनंद सिंह बिष्ट (Father Anand Singh Bisht) एक फॉरेस्ट रेंजर थे। मां सावित्री देवी गृहिणी हैं। संन्यास धारण करने से पहले योगी का नाम अजय सिंह बिष्ट था। अजय सिंह सात भाई-बहन हैं। इनमें तीन बहन और चार भाई शामिल हैं।
जानिए योगी के बचपन से जुड़े 10 किस्से
योगी आदित्यनाथ और उनकी बहन शशि पयाल
1. कुलद की दाल पसंद, कहते थे- दीदी बहुत अच्छा बनाती हो
योगी आदित्यनाथ को कुलद की दाल बहुत पसंद है। ये उत्तराखंड का प्रसिद्ध व्यंजन है। इसे गढ़वाल में फाड़ू बोलते हैं। योगी की बड़ी बहन शशि कहती हैं, ‘भाई को फाड़ू बहुत पसंद है। जब भी मैं फाड़ू बनाती थी तो वो मेरे पास आकर और दाल मांगता था। बोलता था कि दीदी तुम दाल बहुत अच्छा बनाती हो।’
2. बहन के लिए लाए थे डोली
शशि बताती हैं कि करीब 31 साल पहले जब मेरी शादी होने वाली थी तब महाराज जी (योगी आदित्यनाथ) ही मेरे लिए डोली लाए थे। राखी बांधने के सवाल पर शशि ने बताया कि अब तो उन्हें याद भी नहीं है कि आखिरी बार उन्होंने कब योगी आदित्यनाथ को राखी बांधी थी। हालांकि, हर बार राखी जरूर भेजती हैं।
3. गलती होने पर जीजा को भी डांट देते थे
योगी आदित्यनाथ के जीजा पूरन पयाल ने भी पुरानी यादों को ताजा किया। उन्होंने बताया कि शशि से जब मेरी शादी हुई उसके बाद करीब दो-ढ़ाई साल तक महंत जी (योगी आदित्यनाथ) हम लोगों के साथ रहे। वह शुरू से सख्त मिजाज के रहे। अगर मुझसे भी कोई गलती हो जाती थी तो वह संकोच नहीं करते थे। तुरंत डांट लगा देते थे।
4. पिता से बोले थे, कभी जनता की सेवा भी कर लिया करो
शशि बताती हैं कि जब योगी 15-16 साल के थे तब उन्होंने पिता जी से कहा था, ‘क्या पिता जी आप तो अपना ही परिवार पालते हो। कभी जनता की सेवा भी कर लिया करो।’ तब पिता जी ने उनसे कहा था कि बेटा मेरी तो 85 रुपये की तनख्वाह है। मैं तो तुमको पाल लूं वही बहुत है। फिर आगे पिता जी ने बोला कि देखता हूं तू क्या करता है…।
5. भाई-बहनों में लड़ाई नहीं होती थी
योगी की बहन शशि कहती हैं कि वह सात भाई-बहन हैं। छोटे पर भी सब एकजुट होकर रहते थे। कभी लड़ाई नहीं होती थी। मेरे सभी भाई बड़ों का बहुत सम्मान करते थे। शशि कहती हैं, ‘हम सात भाई-बहन थे। इसके अलावा एक ताऊजी के आठ लड़के और एक लड़का, एक लड़की दूसरे ताऊ जी के थे। हम लोग इतने भाई बहन थे लेकिन गांव में किसी को पता नहीं लगता था कि हम कितने भाई-बहन हैं। कोई शोर नहीं होता था। हम सब पढ़ाई भी एक कमरे में करते थे।
6. बीच में लालटेन रखकर पढ़ते थे
शशि बताती हैं कि बचपन में सभी 17 भाई-बहन एकसाथ एक कमरे में पढ़ते थे। तब लाइट नहीं होती थी। लानटेन बीच में रखते थे और फिर बाकी सब गोल घेरे में बैठकर पढ़ते थे। अगर कोई सो जाता था तो उसे जगाते थे। कहते थे… अरे अभी रोटी खानी है। फिर मां सबको नीचे ले जाती थी… कमरे में सबको खाना खिलाती थी।
7. कॉलेज में महंत अवैद्यनाथ से मिले
शशि बताती हैं कि जब भाई कॉलेज में पढ़ रहा था तब एक कार्यक्रम में गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ आए थे। यहीं भाई ने उनसे मुलाकात की थी। उस कार्यक्रम में भाई ने भाषण दिया था, जिसे सुनकर महंत जी खुश हो गए थे और उन्होंने गोरखपुर बुलाया था।
8. नहीं मालूम था कि वह संत बन जाएंगे
एक इंटरव्यू में योगी के पिता ने कहा था, ‘1993 में उनका (योगी आदित्यनाथ) परिचय महंज अवैद्यनाथ जी से हुआ। तब अवैद्यनाथ जी सांसद थे। योगी से उन्होंने कहा था कि तुम मेरे उत्तराधिकारी बन जाओ। लेकिन पहले परिवार से पूछकर आओ। तब वो घर आए। अपनी मां से उन्होंने गोरखपुर जाने के लिए कहा। तब मां ने सोचा कि नौकरी करने के लिए जा रहे होंगे। लेकिन किसी को नहीं मालूम था कि वो संत बन जाएंगे।
9. पिता लेने गए तो उन्हें वापस भेज दिया
शशि बताती हैं कि जब हम लोगों को मालूम चला कि भाई गोरखपुर में है तो पिता जी उनसे मिलने गए। वहां उन्होंने देखा कि भगवा धारण किए, सिर मुड़ाए एक युवा संन्यासी फर्श की साफ-सफाई करवा रहा था। जब वो पास पहुंचे तो वह मेरा भाई था। पिता जी ने उसी वक्त उन्हें वापस घर आने के लिए बोला। कहा था कि वापस घर चलो, तुम्हारी मां का रो रोकर बुरा हाल है। लेकिन भाई ने मना कर दिया।
10. मां के आंसुओं से भी नहीं डिगे योगी
शशि कहती हैं कि भाई ने वापस लौटने से मना कर दिया तो पिता जी वापस घर आ गए। फिर मां भी उनके साथ दोबारा गोरखपुर गईं। भाई को देखते ही मां रोने लगीं थीं। तब भाई ने मां से कहा था कि छोटे परिवार से अब बड़े परिवार में आया हूं। उसी रूप में जीवन जी रहा हूं।
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