लखनऊ । उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में इस समय हर जगह चुनावी माहौल है. प्रतिदिन नए सियासी समीकरण सामने आ रहे हैं. प्रदेश के सबसे चर्चित चेहरे सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Aditynath) भी इन दिनों चुनावी गणित बैठा रहे हैं. जब से यह निश्चित हुआ है कि वे गोरखपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे, तब ही से गोरखपुर (Gorakhpur) हॉट सीट बन चुका है. योगी की टीम इस सीट को लेकर खास प्लानिंग कर रही है ताकि योगी के लिए जीतने की राह आसान हो जाए.
यदि सीएम योगी इस सीट से जीत जाते हैं तो यह पार्टी के लिए तो खुशी की बात होगी, साथ ही ऐसा होने पर योगी के नाम चार रिकॉर्ड भी दर्ज हो जाएंगे. सीएम योगी यदि इस चुनाव जीत दर्ज कर फिर से सीएम पद पर बैठते हैं तो वह कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी की बराबरी कर लेंगे. तिवारी 1985 में अविभाजित यूपी के मुख्यमंत्री थे. इसके बाद फिर से कांग्रेस ने जीत दर्ज की और दूसरे कार्यकाल में भी तिवारी सीएम पद पर रहे. उनके बाद फिर से ऐसा कोई कर नहीं पाया. यदि योगी ऐसा कर पाते हैं तो 37 सालों के बाद फिर से इतिहास दोहराया जाएगा.
प्रदेश की राजनीति में भाजपा की ओर से अब तक चार सीएम सामने आए हैं. वर्तमान सीएम योगी के अलावा कत्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह यहां पर सीएम के रूप में रह चुके हैं. ऐसे में यदि योगी जीतकर फिर से सीएम बनते हैं तो यह भाजपा के इतिहास में रिकॉर्ड होगा. योगी भाजपा की ओर से सत्ता पर फिर से काबिज होने वाले पहले सीएम का गौरव हासिल कर लेंगे.
वहीं, यदि आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों में सीएम योगी गोरखपुर सीट से जीत दर्ज करते हैं और उन्हें फिर से सीएम का पद मिलता है तो वे 15 साल में वे पहले विधायक सीएम होंगे. इससे पहले 2012 और 2017 में अखिलेश यादव सीएम रहने के साथ एमएलसी भी थे. उनसे पहले 2007 और 2012 में सीएम रहते हुए एमएलसी भी थीं. जब पिछली बार योगी को सीएम बनाया गया था तब वह गोरखपुर से 5 बार सांसद थे.
वहीं, इस वक्त प्रदेश में ‘नोएडा विडम्बना’ चर्चित है. इसके अनुसार जो भी मुख्यमंत्री यहां पर दौरा करता है, उसके हिस्से में अगले चुनावों में जीत नहीं आती है. या फिर वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है. यही कारण है कि अक्सर नोएडा दौरे से नेता बचते रहे हैं. यदि योगी फिर से जीत जाते हैं तो यह विडम्बना भी खत्म हो जाएगी. बतादें कि यूपी के पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह जब जून 1988 में नोएडा के दौरे से लौटे, तब कुछ दिनों में उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ गया था. वहीं उनके उत्तराधिकारी एनडी तिवारी ने भी जब नोएडा दौरा किया तो उन्हें कुछ दिन बाद कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.
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