नई दिल्ली। अरविंद केजरीवाल रविवार को उत्तराखंड की राजधानी देहरादून पहुंचे। उम्मीद के मुताबिक वहां भी उन्होंने राज्य में आप की सरकार बनने पर 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने और बकाया बिल माफ करने की घोषणा की। उन्होंने उत्तराखंड के दोनों पारंपरिक दलों (भाजपा और कांग्रेस) को भ्रष्टाचार के नाम पर घेरा और कहा कि वे इस पहाड़ी राज्य में भी दिल्ली की तरह साफ-स्वच्छ राजनीति देंगे। उनकी राजनीति की इस नई चाल पर राज्य की जनता कितना भरोसा कर पाएगी, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन पांच ऐसे बड़े कारण हैं जिनकी वजह से आम आदमी पार्टी की इस पहाड़ी राज्य में लॉटरी लग सकती है।
दिल्ली मॉडल की ताकत
अब दिल्ली सरकार के कामकाज का मॉडल और लोगों को दी जा रही मुफ्त घोषणाएं उनकी ताकत हैं। वे दूसरे राज्यों में यह बात डंके की चोट पर कह सकते हैं कि उन्होंने दिल्ली में ऐसा करके दिखाया है और वे उत्तराखंड या गुजरात में भी ऐसा करके दिखा सकते हैं। चूंकि, इन राज्यों के लोग बड़ी संख्या में दिल्ली में रहते हैं, एक बड़ी संख्या इन योजनाओं की लाभार्थी भी है। जाहिर है कि यह लाभार्थी वर्ग उत्तराखंड में दिल्ली सरकार की योजनाओं का ‘राजदूत’ साबित हो सकता है।
चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का वेतन बड़ा मुद्दा
उत्तराखंड के लाखों युवा दिल्ली में रोजगार करने के लिए आते हैं। इनमें से अनेक चतुर्थ श्रेणी के कामकाज में जुड़े हुए हैं। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में इस वर्ग का वेतन रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ाया है। यह वर्ग भी केजरीवाल की योजनाओं का प्रचार उत्तराखंड में कर रहा है। केजरीवाल को इन योजनाओं के लाभार्थियों का लाभ मिल सकता है।
सत्ता विरोधी लहर
आम आदमी पार्टी के लिहाज से उत्तराखंड में स्थिति कुछ अनुकूल हो सकती है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा को चार महीने के अंदर तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े हैं। भाजपा के तमाम दावों के बावजूद इसका जनता के बीच सही संदेश नहीं गया है। आम आदमी पार्टी इसे भ्रष्टाचार का मुद्दा बताकर अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर सकती है।
विपक्ष की कमजोरी भी करेगी मदद
अरविंद केजरीवाल ने 11 जून की अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भाजपा और कांग्रेस पर सत्ता की सांठगांठ का आरोप लगाया था। इसे एक राजनीतिक भाषणबाजी मानने वाले भी यह मानते हैं कि हरीश रावत की अगुवाई में उत्तराखंड कांग्रेस इस वक्त इतनी मजबूत नहीं है कि वह भाजपा के सामने एक मजबूत विकल्प पेश कर सके। इसके अलावा कांग्रेस के पास कद्दावर मजबूत नेताओं की भी कमी है। विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज जैसे नेता पार्टी का साथ छोड़ भाजपा के पाले में जा चुके हैं तो हरीश रावत के विरोधी गुट भी सक्रिय है।
भाजपा की अंतर्कलह
भाजपा में तमाम अनेक नेता ऐसे हैं जो मुख्यमंत्री बनने का सपना पाले हुए थे, लेकिन केंद्रीय इकाई के सामने इन नेताओं की नहीं चली। साथ ही पार्टी के अंदर की कलह सबके सामने है। सतपाल महाराज, धन सिंह रावत और बिशन सिंह चुफाल चुनाव में अगर पूरी तरह पार्टी का साथ नहीं देते हैं तो इससे भाजपा को राज्य में नुकसान हो सकता था।
इन कारणों से स्पष्ट है कि अगर आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में सही रणनीति के तहत सियासत करती है तो पहाड़ी राज्य में भी उसकी किस्मत खुल सकती है। पार्टी को केवल ऐसा चेहरा सामने रखना होगा जो जनता की विश्वसनीयता पर खरा उतर सके। कर्नल अजय कोठियाल को अगर वह मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर देती है तो सैनिक पृष्ठभूमि वाले इस राज्य में केजरीवाल की लॉटरी खुल सकती है।
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