रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) पिछले तीन हफ्ते से विधानसभा सदस्यता (assembly membership) पर जारी संशय को दूर करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं। सूत्रों के अनुसार खनन लीज मामले में चुनाव आयोग (election Commission) के मंतव्य के आधार पर राजभवन के फैसले के बढ़ते इंतजार को खत्म कराने के उद्देश्य से सीएम सोरेन शीर्ष अदालत जाने के लिये विधिक राय ले रहे हैं।
ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बीते गुरुवार को राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात कर चुनाव आयोग के मंतव्य की प्रति मांग चुके हैं। यही आग्रह उनके अधिवक्ताओं ने भारत निर्वाचन आयोग से भी किया है। इसके बाद सीएम सोरेन ने दिल्ली में कानून के जानकारों से विधिक राय भी ली। अनिश्चितता के कारण कार्यपालिका में शिथिलता की आशंका को आधार बनाते हुये सर्वोच्च न्यायालय से मामले में आदेश का आग्रह किया जा सकता है।
सीएम मामले में इस सप्ताह फैसला आने की उम्मीद
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता मामले पर राजभवन का फैसला आना बाकी है। सबकी निगाहें राजभवन पर टिकीं हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, यूपीए के सांसदों-विधायकों का प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिलकर इस संबंध में चुनाव आयोग के सुझाव पर राजभवन के फैसले से अवगत कराने का आग्रह कर चुका है। झारखंड मुक्ति मोर्चा लगातार राजभवन से आग्रह कर रहा है कि राज्यपाल विलंब न करें, जल्द से जल्द इस पर अपने निर्णय से मुख्यमंत्री को अवगत कराएं।
इस बीच मुख्यमंत्री स्वयं राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात के बाद दिल्ली गये और कानूनी विशेषज्ञों से मशविरा कर रांची लौट आए। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस सप्ताह राज्यपाल अपने निर्णय से चुनाव आयोग को अवगत करा सकते हैं। राज्यपाल के पास मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अलावा उनके भाई दुमका के विधायक बसंत सोरेन की सदस्यता से संबंधित मामला भी फैसले के लिए लंबित है। इधर, राज्य सरकार पिछले दिन कैबिनेट में लाए गये दो महत्वपूर्ण प्रस्तावों के विधेयक को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करना चाहती है।
सदस्यता को लेकर कोई निर्णय नहीं आने से राजनैतिक संशय बरकरार 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता और पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने के प्रस्ताव को कानूनी जामा पहनाने की प्रक्रिया के तहत विधानसभा से विधेयक पारित कराना जरूरी है। वहीं राजभवन की ओर से मुख्यमंत्री की विधानसभा की सदस्यता को लेकर कोई निर्णय नहीं आने के कारण राजनैतिक संशय बरकरार है। सरकार इस संबंध में जल्द निर्णय चाहती है ताकि फैसला मुख्यमंत्री के प्रतिकूल आने पर न्यायिक राहत पाने के लिए कोर्ट की शरण ली जा सके।
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