– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
दुनिया के देश अब यह तो समझने लगे हैं कि जलवायु खतरे से निपटने के उपायों में से एक बिजली बचत के उपायों को कारगर तरीके से लागू करना हो सकता है। खास बात यह है कि इसके लिए जनभागीदारी बढ़ाने के लिए दुनिया के देशों को कोई खास नहीं करना पड़ेगा क्योंकि आम नागरिक इन उपायों को हाथोंहाथ लेते आए हैं।
दरअसल पिछले दशकों में इलेक्ट्रोनिक और इलेक्ट्रिकल उत्पादों की आम आदमी तक सहज पहुंच हुई है। यह भी सही है कि आम नागरिकों को कम ऊर्जा खपत वाले उत्पादों के उपयोग के लिए प्रेरित किया जाता है। इसका असर भी देखने को मिला है पर अभी देश-दुनिया में इस क्षेत्र में विशेषज्ञों को बहुत कुछ काम करना बाकी है। कम विद्युत खर्च करने वाले पांच सितारा उत्पादों की बड़ी रेंज बाजार में उतारने के साथ ही उनके मूल्य को भी आम आदमी की पहुंच में लाना होगा। देखा जाए तो इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रोनिक उत्पादों ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है। एक समय पैसे वालों की पहुंच माने जाने वाले महंगे विद्युत उपकरणों ने घर-घर में उपस्थिति दर्ज करा दी है।
इसे नहीं भूलना चाहिए कि विद्युत उत्पादन में कोयला उत्सर्जन व अन्य कारणों से पर्यावरण सर्वाधिक प्रभावित होता है। जहां तक देश की बात है देश में 75 फीसदी विद्युत उत्पादन थर्मल पॉवर के माध्यम से हो रहा है। इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है। पर इसके साथ ही आज घर-घर में फ्रीज, टीवी, ओवन, ओटीजी, मिक्सर ग्राइण्डर, कूलर, पंखें, हीटर, गीजर आदि आम होते जा रहे हैं। इसके अलावा बिजली का विस्तार होने से अधिकांश आबादी रोशनी के दायरे में आ गई है।
पिछले कुछ दशकों से पंच सितारा उत्पादों के उपयोग पर जोर के बावजूद यह उपकरण तुलनात्मक रूप से अधिक महंगे होते हैं। ऐसे में लोग सस्ते उपकरणों को ही प्राथमिकता देते हैं और उसका एक असर यह होता है कि इन उपकरणों में बिजली की अधिक खपत होती है। इसके साथ ही फ्रीज, एसी, गीजर और इसी तरह के अन्य उपकरणों से निकलने वाली हानिकारक गैस वातावरण को दूषित करती है। बिजली की अधिक खपत से बिजली का उपयोग भी बढ़ता है। एसी, कूलर, फ्रीज आदि जहां घरों को ठंडा करते हैं वहीं वातावरण में गर्म हवा पहुंचाते हैं, जिसका सीध असर पर्यावरण पर पड़ता है। इसके साथ ही दो पहिया, तीन पहिया और चौपहिया वाहनों की रेलमपेल के कारण वातावरण दूषित होने लगा है। मोबाइल और दूसरे अन्य उपकरणों का असर किसी से छिपा नहीं है।
वैसे तो एक समय था जब मोटरों का उपयोग आयरन इण्डस्ट्री में अधिक होता था पर यह नहीं भूलना चाहिए कि अब घर-घर में पानी लिफ्ट करने के लिए मोटरों का ही उपयोग होने लगा है। अधिकांशतः यह मोटरें अधिक उर्जा खपत वाली होती है। इससे जहां बिजली का कंजप्सन बढ़ता है वहीं वातावरण भी प्रदूषित होता है। जहां तक आम आदमी का सवाल है वह जो बात ढंग से पहुंचाई जाती है उसे अपनाने में देरी नहीं लगाते हैं। आज घरों में परंपरागत बल्वों का स्थान एलईडी लेती जा रही है तो कम उर्जा खपत वाले उपकरणों का उपयोग भी बढ़ा है। परंपरागत टीवी का स्थान एलईडी लेती जा रही है तो इसी तरह का बदलाव अन्य उपकरणों में भी देखने को मिल रहा है। यह तो उदाहरण मात्र है।
इसे शुभ संकेत माना जा सकता है कि भारत सहित दुनिया के 14 देशों ने उर्जा दक्षता बढ़ाने पर काम करने का फैसला किया है। मोटे तौर से दुनिया के देशों ने यह माना है कि उर्जा दक्षता बढ़ाकर भी जलवायु खतरे को काफी कुछ कम किया जा सकता है। और यह जनभागीदारी से संभव है। पर इसके लिए विशेषज्ञों को इस तरह के उपकरण विकसित करने होंगे जो सस्ते हो और जिन्हें आम आदमी खरीद सके। इसके लिए सरकारों को रिसर्च पर जोर देना होगा। इस तरह के उपकरणों को बनाने व उपयोग करने वालों को प्रोत्साहित करना होगा। कम उर्जा खपत वाली घरेलू मोटरें ही बाजार में आती है तो बड़ी भागीदारी हो सकती है। इसी तरह से एलईडी या इसी तरह के अन्य उपकरणों पर सब्सिडी देने के बाद भी यह घाटे का सौदा इस मायने में नहीं होगा कि सरकारे जहां अरबों-खरबों रुपए उर्जा उत्पादन पर खर्च कर रही हैं वहीं सस्ते अनुदानित उपकरण उपलब्ध कराकर उर्जा बचत के साथ वातावरण को दूषित होने से भी बचा सकेंगे।
दरअसल दुनिया के देशों ने ऊर्जा बचत के जो 3 क्षेत्र चिन्हित किए हैं वे धरातल पर अधिक कारगर होने वाले हैं। इसमें रोशनी के उपकरण, घेरलू फ्रिज व शीतगृहों में उपयोग होने वाले उपकरण और घरों व उद्योगों में उपयोग होने वाली मोटरों तथा वाहनों में उपयोग होने वाली मोटरों की एफिसिएंसी बढ़ाना है। इसमें जहां एक और सीधे आम आदमी को लाभ होगा इसलिए वह आगे आकर जुड़ेगा वहीं बिजली की बचत होने से अरबों रुपए बचेंगे। इसके साथ ही पर्यावरण प्रदूषण का स्तर कम होगा। इसलिए होना यह चाहिए कि जलवायु संरक्षण के और उपाय या काम होते रहे पर यह जो सहज और आसानी से होने वाले उपाय हैं, उन पर गंभीरता से काम किया जाए ताकि वातावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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