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    जलवायु परिवर्तन: आखिर कब संभलेंगे हम?

  • August 11, 2021

    – अली खान

    इस बात की गारंटी है कि चीजें और बिगड़ने जा रही हैं। मैं ऐसा कोई क्षेत्र नहीं देख पा रही, जो सुरक्षित है। कहीं भागने की जगह नहीं रहेगी और न ही कहीं छिपने की गुंजाइश रहने वाली है।

    -यह अमेरिकी वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक लिंडा मर्न्स का कहना है। संयुक्त राष्ट्र यानी यूएन की तरफ से सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की गई, इसे मानवता के लिए कोड रेड अलर्ट का नाम दिया गया है। बता दें कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल के तहत दुनिया भर के 234 विज्ञानियों ने तीन हजार से ज्यादा पन्नों की यह रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के जरिए जलवायु परिवर्तनों को लेकर गंभीरतापूर्वक चेताया गया है।

    रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि यदि दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कोई कमी नहीं की गई तो वर्ष 2100 तक धरती का तापमान दो डिग्री तक बढ़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच दशकों में एकबार आने वाली प्रचंड लू अब हर एक दशक के भीतर आ रही है। यदि तापमान में एक डिग्री का और इजाफा हुआ तो ऐसा प्रत्येक सात साल में एकबार होने लग जाएगा। वहीं आर्कटिक, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर और बर्फीली चट्टानें बहुत तेजी से पिघलेंगी। बड़े पैमाने पर लू के थपेड़ों के साथ सूखा, भारी बारिश की वजह से बाढ़ जैसी स्थिति पैदा होगी। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हिंद महासागर, दूसरे महासागरों की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है। रिपोर्ट की सह-अध्यक्ष और फ्रांस की जलवायु विज्ञानी वैलेरी मैसन डेल्सोट ने कहा, रिपोर्ट दिखाती है कि हमें अगले दशक में ज्यादा गर्म जलवायु के लिए तैयार रहना होगा। हालांकि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोककर हम कुछ बहुत बड़ी तस्वीरों को बदल सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में वृद्धि के लिए कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों का उत्सर्जन जिम्मेदार है।

    एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, बढ़ते ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन से महासागर का पानी अब गर्म, अधिक अम्लीय और कम ऑक्सीजन क्षमता वाला हो गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएं चरम पर है। बीसवीं सदी की शुरुआत से अबतक 13.3 लाख लोगों की जान ले चुके तूफान समुद्र के गर्म होने के साथ और तीव्र होते जा रहे हैं। समुद्री स्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्र में बाढ़ गंभीर होती जा रही है। सदी के अंत तक ढाई लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रों में बाढ़ से लाखों लोगों पर खतरे का अनुमान है। वहीं, पिछले 40 वर्षों में आर्कटिक में समुद्री बर्फ पतली हो गई है। इसकी सीमा में 13% की कमी आई है और मोटाई 1.75 मीटर कम हुई है। समुद्री खाद्य पदार्थ प्रोटीन और पोषक तत्वों का प्रमुख स्रोत है। अनुमान है 2050 तक इन खाद्य पदार्थ में गंभीर कमी आ सकती है।

    माइक्रोप्लास्टिक्स पारा, औद्योगिक रसायन और अन्य विषाक्त पदार्थों ने महासागरों को बड़े पैमाने पर प्रदूषित किया है। समुद्र प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जीवों को आश्रय देता है। लेकिन प्रदूषण ने इनके ऊपर खतरे को बढ़ा दिया है।

    ऐसे में यह कहा जा सकता है कि यदि समय रहते ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती नहीं की गई, तो दुनिया को निकट भविष्य में बहुत बड़े संकट से दो-चार होना पड़ेगा। हम सब यह बखूबी जानते हैं कि समुद्र का तापमान क्यों बढ़ रहा है? इसके पीछे की वजह साफ है पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैंसों का बढ़ना। ऐसे में, अब दरकार इस बात की है कि हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियमित रूप से कम करना होगा। लेकिन, जब भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का सवाल उठता है तो इस मसले पर होने वाले वैश्विक सम्मेलनों में इसका ठीकरा विकासशील देशों पर फोड़ दिया जाता है और सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले अमीर और विकसित देश अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं।

    सवाल उठता है कि कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे पर विकसित और अमीर देशों के मौजूदा रुख के बने रहते क्या हम इससे पैदा होने वाली स्थिति में किसी सुधार की उम्मीद कर सकते हैं ? इसके बावजूद इस मसले पर वैश्विक स्तर पर चिंता जताने और हालात में सुधार होने की उम्मीद में कमी नहीं होती है। अगर हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को स्थायी रूप से कम करते जाने की पुख्ता व्यवस्था कर लेते हैं तो यह बहुत हद तक संभव है कि हम भविष्य में ऐसी आने वाली विपदाओं से बच सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने के लिए अधिकाधिक भूमि पर पौधारोपण करें। पारिस्थितिकी संतुलन और स्थाई विकास को बनाए रखने के लिए वनों, द्वीप समूहों, तटवर्ती क्षेत्रों, नदियों, कृषि, शहरी पर्यावरण और औद्योगिक पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी प्रणालियों पर भी गौर करना होगा। आज जलवायु में परिवर्तन के कारण चक्रवात, बाढ़ तथा सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएं आने की प्रबलता बढ़ी है। ऐसे में, एक सतत एवं प्रभावी तरीके से इन चुनौतियों से निपटने के लिए जलवायु परिवर्तन के अनुकूल क्रियाओं को प्रोत्साहित और संवर्धित करने की जरूरत है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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