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शुचिता और पारदर्शिता जरूरी है परीक्षाओं और सरकारी भर्तियों में – राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू


नई दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने कहा कि परीक्षाओं और सरकारी भर्तियों में (In Examinations and Government Recruitments) शुचिता और पारदर्शिता (Cleanliness and transparency) जरूरी है (Are Necessary) ।


राष्ट्रपति ने संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण के दौरान नीट एग्जाम में हुई धांधली पर कहा कि आगामी दिनों में आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी और निकट भविष्य में यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी परीक्षा में कोई भी धांधली न हो। उन्होंने कहा, “परीक्षाओं में पेपर लीक और अनियमितताओं के मामलों की उच्च स्तर पर जांच की जा रही है। सरकारी भर्तियों और परीक्षाओं में शुचिता और पारदर्शिता जरूरी है। आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।” इसके अलावा उन्होंने नीट एग्जाम में हुई धांधली को लेकर विपक्षी दलों द्वारा की जा रही राजनीति पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “सभी को पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर उठने की जरूरत है।“

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के दोनों सदनों में गुरुवार को अभिभाषण के दौरान केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों से लोगों को अवगत कराया। इसके अलावा, निकट भविष्य में सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के बारे में भी संकेत दिए। इस दौरान राष्ट्रपति ने आपातकाल का भी जिक्र किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आपातकाल के संबंध में कहा कि यह लोकतंत्र के लिए काला दिन था, जिसे हिंदुस्तान का कोई भी व्यक्ति नहीं भूल सकता। उन्होंने कहा, “आने वाले कुछ महीनों में भारत एक गणतंत्र के रूप में 75 वर्ष पूरे करने जा रहा है। भारतीय संविधान ने पिछले दशकों में हर चुनौती और परीक्षण को झेला है। देश में संविधान लागू होने के बाद भी संविधान पर कई हमले हुए हैं। 25 जून 1975 को लागू किया गया आपातकाल संविधान पर सीधा हमला था, जब इसे लागू किया गया तो पूरे देश में हंगामा मच गया। हम अपने संविधान को जन-चेतना का हिस्सा बनाने का प्रयास कर रहे हैं।“

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, “सरकार ने 26 नवंबर को जम्मू-कश्मीर में भी अब संविधान दिवस मनाना शुरू कर दिया है। वहीं, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद आज की तारीख में जम्मू-कश्मीर में हालात पहले की तुलना में काफी सुधरे हैं। इस लोकसभा चुनाव में भी जम्मू–कश्मीर में वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ है, जो कि वहां स्वस्थ हो रहे लोकतंत्र की ओर संकेत करता है।“

इससे पहले लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने भी बीते बुधवार को आपातकाल पर सदन में प्रस्ताव पारित किया था। बिरला ने कहा था, “यह सदन 25 जून, 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की निंदा करता है। हम उन सभी लोगों का दृढ संकल्प के साथ सराहना करते हैं, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया था। ऐसे लोगों ने भारत के लोकतंत्र को बचाया। 25 जून को हमेशा भारतीय लोकतंत्र के लिहाज से काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की पर प्रहार किया था। भारत हमेशा से ही लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करते हुए आया है।“

उन्होंने आगे कहा, “आपातकाल के दौरान नागरिकों के अधिकारों को नष्ट कर दिया गया था। अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात किया गया था। आम लोगों से उनके अधिकार छीन लिए गए थे। पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था। तत्कालीन सरकार ने मीडिया पर तब कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं। न्यायपालिका की आजादी पर भी हमला किया गया था।“

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