नई दिल्ली: हमास ने गाजा पट्टी में युद्ध रोकने के लिए इजरायल के साथ हुए युद्ध विराम समझौते के तहत उसकी चार महिला सैनिकों को शनिवार को रिहा कर दिया है. इसके बदले लगभग 200 फिलिस्तीनी कैदियों को भी रिहा किया गया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चार सैनिकों (करीना एरीव, डेनिएला गिल्बोआ, नामा लेवी और लिरी अलबाग) को गाजा में रेड क्रॉस को सौंप दिया गया है.
रिहा करने के कार्यक्रम के दौरान महिलाओं को एक फिलिस्तीनी वाहन से बाहर निकालकर मंच पर लाया गया. उन्होंने मुस्कुराते हुए भीड़ की ओर हाथ हिलाया. फिर वे रेड क्रॉस की गाड़ियों में बैठ गईं. चारों महिलाएं इजरायली सैनिक हैं, जिन्हें 7 अक्टूबर को हमास के हमले के दौरान इजरायल के नाहल ओज सैन्य अड्डे से अगवा किया था. इन महिला सैनिकों ने वहां अपने साथ हुई पूरी आपबीती बताई है.
चारों महिला सैनिकों को रिहा करने से पहले पहनने के लिए अर्ध-सैन्य वर्दी दी गई थी. इसके बाद उन्होंने शस्त्र हमास कार्यकर्ताओं के साथ मंच पर खड़ा किया गया. सैनिकों के परिवार ने कहा कि उन्हें मंच पर खड़ा करके ऐसा दिखाया गया है कि वे डरे और घबराए नहीं हैं. सका हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. हम उनसे अधिक मजबूत हैं.
चारों महिला सैनिको ने बताया कि उन्हें अगवा करने के बाद एक ऐसी जगह पर रखा गया था, जहां न तो सूरज की रोशनी पहुंचती थी. न ही ठीक तरीके से सांस ले पाती थीं. उस न लाइट थी यही कारण है कि ज्यादातर समय उनका अंधेरे में ही निकलता था. उन्होंने कहा कि 477 दिनों की कैद के दौरान उन्हें गाजा के चारों ओर ले जाया गया जिसमें गाजा शहर भी शामिल था. उनमें से कुछ ने “हमास के बहुत वरिष्ठ लोगों” से मुलाकात भी कराई गई थी की.
महिला सैनिकों ने बताया कि उनके साथ वहां बहुत गंदा व्यवहार किया जाता था. न ही ठीक से खाना मिलता था और न ही सही पानी पीने को मिलता था. इसके अलावा कई बार उनमें से कुछ को आतंकवादियों के लिए खाना बनाना पड़ता था. इसके साथ ही शौचालय साफ करना पड़ता था. जब इतना सब करने के बाद उनसे खाना मांगा जाता था तो उन्हें खाने के लिए मना कर दिया जाता था. सैनिकों ने बताया कि ये अब तक की जिंदगी का सबसे खौफनाक समय था. हम एक दूसरे की हिम्मत बनाए हुए थे, यही कारण है कि आज तक जिंदा हैं.
महिला सैनिक ने बताया कि वे हर समय हम लोगों का मजाक बनाया करते थे. उन्हें कई बार रोने तक की इजाजत नहीं दी जाती थी. ऐसा करने पर उनके साथ मारपीट होती थी. कई दिनों तक नहाने नहीं दिया जाता था. घायल हुए लोगों को इलाज के लिए तडपाया जाता था. महिलाओं ने बताया कि इस पूरी कैद के दौरान उन्होंने रेडियो बहुत सुना है. जिस पर युद्ध के बारे में भी जानकारी मिल जाती थी. महिला सैनिकों ने बताया इस दौरान उन्होंने वहां पर अरबी भाषा भी सीख ली. जिससे काफी आसानी हुई.
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