नई दिल्ली(New Delhi) । केंद्र में भारतीय जनता पार्टी(Bharatiya Janata Party ) जब बहुमत(majority) से दूर हो गई तो एनडीए में शामिल घटक दलों(Constituent parties) पर उसकी निर्भरता (Dependency)बढ़ गई। इन दलों में टीडीपी सबसे बड़ी पार्टी है। उसके 16 सांस हैं। बीजेपी और टीडीपी ने आंध्र प्रदेश में भी सत्ता में वापसी की है। चंद्रबाबू नायडू अपनी सरकार बनाने जा रहे हैं। उनकी सरकार में बीजेपी भी साझेदार रहेगी। हालांकि, यहां टीडीपी को अपने दम पर बहुमत प्राप्त है। इसके बावजूद कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिससे भाजपा असहज हो सकती है।
आंध्र प्रदेश में बुधवार को चंद्रबाबू नायडू मंत्रिमंडल की शपथ के साथ टीडीपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार का गठन हो जाएगा। सरकार बनने के बाद सबकी निगाह मुस्लिम आरक्षण सहित ऐसे फैसलों पर रहेगी, जिन्हें लेकर भाजपा और टीडीपी की राह एकदम अलग दिखती है।
टीडीपी ने साफ किया है कि वह मुस्लिम कोटा खत्म नहीं करेगी। जबकि भाजपा ने और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे चुनाव के दौरान मुस्लिम आरक्षण की खुलकर मुखालफत की थी। टीडीपी का मानना है कि यह रुख भाजपा का है और वह तब होगा जब भाजपा राज्य में अपने दम पर सरकार बनाएगी। टीडीपी किसी भी समुदाय का कोटा नहीं हटाएगी।
टीडीपी का मानना रहा है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को, चाहे वे किसी भी धर्म या जाति के हों, गरीबी से निपटने के लिए लाभ मिलना चाहिए और यह जारी रहेगा। टीडीपी कई अन्य मुद्दों पर केंद्र सरकार पर भी दबाव बनाने के मूड में है। परिसीमन का मुद्दा भी इसमें शामिल है। पार्टी का कहना है कि फैसले अकेले नहीं लिए जाएं और न केवल आंध्र प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों के हितों और प्रतिनिधित्व को भी ध्यान में रखा जाए। दक्षिण की यह पार्टी परिसीमन और समान नागरिक संहिता (सीएए) जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा चाहती है।
टीडीपी नेताओं का कहना है कि इन सभी मुद्दों पर चर्चा की दरकार है। फिलहाल टीडीपी सरकार की प्राथमिकता केंद्र से ज्यादा वित्तीय मदद हासिल करना होगा। राजधानी अमरावती के विकास और निवेश योजनाओं को लेकर टीडीपी केंद्र से सहयोग चाहती है। टीडीपी स्पेशल स्टेटस पर तुरंत जोर नहीं डालेगी, लेकिन यह मुद्दा भी उनके एजेंडा में है।
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