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    सुविधाओं का दावा, फिर भी एक वीआईपी नहीं पहुंचा सरकारी अस्पताल

  • August 01, 2020

    • कोरोना संक्रमित होने पर निजी अस्पताल में करा रहे इलाज

    भोपाल। सरकारों द्वारा अभी तक यह दावा किया जाता रहा है कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में बेहतर उपचार एवं सुविधाएं है, इसके बावजूद भी कोरोना का इलाज कराने के किए एक भी व्हीआईपी (अफसर, मंत्री, विधायक)किसी भी सरकार अस्पताल में पहुंचा है। प्रदेश में अभी तक जितने भी अधिकारी, मंत्री, विधायक एवं अन्य व्हीआईपी कोरोना की चपेट में आए है, वे सभी उपचार के लिए निजी अस्पताल में ही भर्ती हुए हैं। हालांकि सरकारी अस्पतालों में कोरोना संक्रमित सामान्य लोगों की अच्छी खासी भीड़ है।
    राजधानी भोपाल में कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए सबसे ज्यादा बैड की व्यवस्था निजी अस्पताल चिरायु में है। चिरायु में सबसे ज्यादा 1016 सामान्य बैड हैं। जबकि 289 आईसीयू बैड हैं। इसी तरह राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल हमीदिया में सामान्य बैड 170 और आईसीयू 53 है। ये दोनों फुल हैं। एम्स में 208 सामान्य बैड हैं, जबकि आईसीयू 40 बैड हैं। एम्स में भी व्हीआईपी इलाज के लिए नहीं पहुंचे। जबकि दिल्ली एम्स में देश के ज्यादातर व्हीआईपी इलाज के लिए एम्स में पहुंचते हैं। प्रदेश में अभी तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत, चार मंत्री (पूर्व स्वास्थ्य मंत्री एवं वर्तमान में जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावत भ्ीा शामिल), आधा दर्जन विधायक एवं दो दर्जन से ज्यारा आला अधिकारी शामिल हैं। सभी व्हीआईपी इंदौर, भोपाल एवं प्रदेश के अन्य निजी अस्पतालों में उपचार करा रहे हैं।

    पूर्व स्वास्थ्य पीएस एवं संचालक गए थे एम्स
    राजधानी में जब कोरेाना का संक्रमण फैलना श्ुारू हुआ था, तब स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी से लेकर प्रमुख सचिव तक संक्रमित हो गए थे। स्वास्थ्य विभाग की पूर्व प्रमुख सचिव पल्लवी जैन गोविल एवं पूर्व स्वास्थ्य संचालक जे विजय कुमार कोरोना संक्रमित होने पर उपचार के लिए एम्स गए थे। इसके बाद कोई भी अधिकारी, मंत्री, विधायक एवं अन्य व्हीआईपी कोरोना का इलाज के लिए सरकारी अस्पताल नहीं पहुंचा।

    जाते तो यह होता फायदा
    हर सरकारी अस्पताल में प्रायवेट कक्ष हैं एवं अन्य बेहतर सुविधाएं मौजूद है। इसके बावजूद भी आए दिन सरकारी अस्पतालों से जुड़ी तमाम शिकायतें आती रहती है। शासन स्तर पर स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम नीतियां बनाई जाती हैं। उच्च गुणवत्ता की दवाएं एवं अन्य स्वास्थ्य सामग्री खरीदने का दावा किया जाता है। इसके बावजूद भी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में तमाम खामियां है। यदि सरकारी तंत्र से जुड़ा कोई व्हीआईपी कोरोना के इलाज के लिए किसी भी सरकारी अस्पताल में 14 दिन रहता, उस अस्पताल की व्यवस्था में काफी हद तक सुधार हो जाता।

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