नई दिल्ली। भारत विभाजन (partition of india) के लिए 1947 में न सिर्फ अंग्रेज (British) और मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) जिम्मेदार थे, बल्कि पं. जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) भी उतने ही जिम्मेदार थे। यदि नेहरू (Nehru) चाहते, तो विभाजन संभव नहीं था। इतिहासकारों (historians) ने 75 वर्षों में इस तथ्य की अनदेखी की और विभाजन की विभीषिका का शिकार बने लाखों परिवारों की चीत्कारों को अनसुना कर दिया।
केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्रालय (Union Ministry of Information and Broadcasting) के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ इंडियाज पार्टिशन’ (‘The Story of India’s Partition’) में दस्तावेजों के सहारे यह दावा किया गया है। पुस्तक के लेखक प्रो. राघवेंद्र तंवर इतिहासकार हैं। विभाजन की विभीषिका के खुद भी शिकार रहे हैं। उन्होंने तत्कालीन समाचारपत्रों व दस्तावेजों पर आधारित पुस्तक की प्रति पीएम नरेंद्र मोदी को भी भेंट की है। पीएम ने भी 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ मनाने की घोषणा की थी।
प्रो. तंवर ने बताया, पंजाब-बंगाल में जहां रोज हजारों लोग मारे जा रहे थे, वहीं नेहरू जैसे नेता अंग्रेज शासकों के लिए विदाई पार्टी कर रहे थे। पुस्तक में सवाल है-अंग्रेजों ने अगस्त, 1948 में भारत से वापसी की घोषणा की थी। फिर जून में ही अचानक अगस्त, 1947 में भारत छोड़ने का फैसला कैसे किया?
मेनन और माउंटबेटन की मुलाकात में हुआ फैसला
तंवर का दावा है, आठ मई, 1947 को बतौर नेहरू के प्रतिनिधि कृष्ण मेनन शिमला में माउंटबेटन से मिले थे। माउंटबेटन ने बैठक में भारत को कॉमनवेल्थ का सदस्य बनने का प्रस्ताव दिया। बदले में मेनन ने एक वर्ष पहले ही आजादी देने का वचन मांगा। माउंटबेटन ने नेहरू से मुलाकात की और जून के पहले सप्ताह में लंदन जाकर प्रधानमंत्री एटली से विभाजन का प्रस्ताव मंजूर कराया।
नेहरू की गलतियों पर इतिहासकारों ने डाला पर्दा
‘द स्टोरी ऑफ इंडियाज पार्टिशन’ में लेखक प्रो. राघवेंद्र तंवर का कहना है कि वायसराय माउंटबेटन से दोस्ती निभाने के लिए पं. जवाहरलाल नेहरू ने कई गैर जरूरी फैसले किए। लेकिन तत्कालीन इतिहासकारों ने उनकी इन गलतियों को महानता के आवरण से ढक दिया।
जरूरी नहीं था पंजाब का विभाजन
विभाजन को लेकर आजादी से पहले सांप्रदायिक हिंसा से जूझ रहे पूर्वी बंगाल के मुकाबले पश्चिमी पंजाब बिल्कुल शांत रहा था तो उसकी वजह थी यहां की मिली-जुली संस्कृति। इसलिए माउंटबेटन ने जून 1947 में दावा किया था कि पंजाब का विभाजन नहीं होगा।
दबाया इतिहास
जिनकी वजह से देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी, वही 40 वर्षों तक देश पर राज करते रहे इसलिए इतिहास की इन सच्चाइयों को दबा दिया गया। लेकिन पंजाब के तत्कालीन गवर्नर जेनकिंस जैसे कई अफसरों की डायरियों में दर्ज इन तथ्यों के सहारे तंवर ने अपनी पुस्तक तैयार की है।
गांधी-नेहरू में थी विभाजन पर रार
राममनोहर लोहिया की पुस्तक ‘विभाजन के दोषी’ के हवाले से तंवर ने दावा किया है, नेहरू और महात्मा गांधी के बीच विभाजन के मुद्दे पर असहमति थी। दोनों के बीच 14 जून 1947 को कांग्रेस समिति की बैठक में इतनी गरमागरमी हुई थी कि गांधी बैठक छोड़कर चले गए। लोहिया इस बैठक में मौजूद थे। उनका कहना था, गांधी को मना कर वापस लाया गया और नेहरू ने उन्हें फोन पर सूचना देने का दावा करते हुए कहा कि फोन लाइन खराब होने की वजह से संभवत: गांधीजी पूरी बात समझ नहीं पाए।
एनसीईआरटी से क्यों गायब हैं सरकार व मजूमदार की रिसर्च
आखिर ताराचंद जदुनाथ सरकार और आरसी मजूमदार जैसे इतिहासकारों की रिसर्च सतीश चंद्र, विपिन चंद्रा और रोमिला थापर से इतनी अलग क्यों है? सिविल सेवा परीक्षा के लिए जरूरी एनसीईआरटी की किताबों में थापर और चंद्रा द्वारा प्रस्तुत आख्यान ही शामिल किए गए हैं।
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