नई दिल्ली । भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति (Chief Justice of India) एनवी रमण (NV Raman) ने देश में विचाराधीन यानी अंडर ट्रायल कैदियों (prisoners) की बड़ी संख्या पर चिंता जताई। शनिवार को सीजेआई रमण ने कहा कि यह क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को प्रभावित कर रही है। उन्होंने कहा कि उन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाना होगा जिनके कारण लोगों को बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है।
“क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में प्रक्रिया एक सजा है”
न्यायमूर्ति रमण ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि देश के 6.10 लाख कैदियों में से करीब 80 प्रतिशत विचाराधीन बंदी हैं। उन्होंने कहा कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में प्रक्रिया ”एक सजा” है। उन्होंने जेलों को “ब्लैक बॉक्स” बताते हुए कहा कि जेलों का अलग-अलग श्रेणियों के कैदियों पर अलग-अलग प्रभाव होता है, विशेष रूप से वंचित समुदायों से ताल्लुक रखने वाले बंदियों पर। सीजेआई ने कहा, “क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सजा है। भेदभावपूर्ण गिरफ्तारी से लेकर जमानत पाने तक और विचाराधीन बंदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।”
बिना मुकदमे के बंद कैदियों पर ध्यान देने की जरूरत
जयपुर में 18वें अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा, “आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासनिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए हमें ओवर ऑल एक्शन प्लान की जरूरत है।” न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि बिना किसी मुकदमे के लंबे समय से जेल में बंद कैदियों की संख्या पर ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि, उन्होंने कहा कि लक्ष्य विचाराधीन कैदियों की जल्द रिहाई को सक्षम करने तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, हमें उन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाना चाहिए जो बिना किसी मुकदमे के बड़ी संख्या में लंबे समय तक कैद की ओर ले जाती हैं।
पुलिस को प्रशिक्षण देना होगा, संवेदनशील बनाना होगा
सीजेआई एनवी रमण ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए पुलिस को प्रशिक्षण देना होगा, उसे संवेदनशील बनाना होगा और वर्तमान व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना होगा। उन्होंने कहा, “हम कितनी अच्छी मदद कर सकते हैं यह तय करने के लिए नालसा (National Legal Services Authority) को ऐसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।” न्यायमूर्ति ने कहा कि लोक अदालतों से लेकर मध्यस्थता तक, नालसा की सेवाओं का उपयोग करके छोटे-मोटे विवादों, पारिवारिक विवादों का निपटारा वैकल्पिक तरीकों से किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “न्याय चाहने वालों को अपने विवादों का सस्ता और शीघ्र समाधान मिल सकता। इससे अदालतों पर बोझ भी कम होगा।” कार्यक्रम में उन्होंने नालसा, LACMS पोर्टल, मोबाइल ऐप और ई-प्रिजन पहल का भी उद्घाटन किया।
“कैदी अक्सर अनदेखे, अनसुने नागरिक होते हैं”
न्यायामूर्ति रमण ने कहा कि नया विधि सहायता मामला प्रबंधन पोर्टल (Legal Aid Case Management Portal) और मोबाइल ऐप, विधि सहायता (लीगल एड) लाभार्थी के लिए बहुत मददगार होगा, क्योंकि विधि सहायता वकील के साथ मंच साझा करेंगे। उन्होंने कहा, “यह ऐप न केवल केस प्रबंधन की दक्षता में वृद्धि करेगा बल्कि मामले से निपटने के लिए जवाबदेही और पारदर्शिता भी लाएगा।” ई-प्रिजन पोर्टल के बारे में सीजेआई ने कहा कि यह कैदियों के हितों को ध्यान में रखते हुए पारदर्शिता और एक्सपीडेंसी की दिशा में एक कदम है।
उन्होंने कहा कि देश की 1378 जेलों में 6.1 लाख कैदी हैं और वे हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्गों में से एक हैं। एनवी रमण ने कहा, “जेल ब्लैक बॉक्स हैं। कैदी अक्सर अनदेखे, अनसुने नागरिक होते हैं।” उन्होंने कहा कि किसी भी आधुनिक लोकतंत्र को “कानून के शासन” के पालन से अलग नहीं किया जा सकता है। सवाल यह है कि क्या समानता के विचार के बिना कानून का शासन कायम रह सकता है? प्रधान न्यायाधीश ने कहा आधुनिक भारत का विचार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करने के वादे के इर्द-गिर्द बनाया गया था।
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