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    एक बार फिर पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के अलग राह पर CJI खन्ना, मंदिर-मस्जिद कानून पर दोनों में क्या मतभेद?

  • December 13, 2024

    नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) गुरुवार (12 दिसंबर) को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम(Important developments)में अगले आदेश तक देश की अदालतों (courts of the country) धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों और दरगाहों पर दावा करने संबंधी नए मुकदमों पर विचार करने और लंबित मामलों में कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने पर रोक लगा दी है। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘क्योंकि मामला इस अदालत में विचाराधीन है, इसलिए हम यह उचित समझते हैं कि इस अदालत के अगले आदेश तक कोई नया मुकदमा दर्ज न किया जाए।’’

    CJI संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ के इस निर्देश से विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही पर रोक लग गई है। इन मुकदमों में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद समेत 10 मस्जिदों की मूल धार्मिक प्रकृति का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया है।


    जस्टिस चंद्रचूड़ ने क्या कहा था

    बड़ी बात यह है कि जस्टिस खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा ढाई साल पहले इस मामले में दी गई अनुमति को पलटते हुए उस पर रोक लगा दिया है। ढाई साल पहले 21 मई, 2022 को तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने यही प्रश्न आया था, तब एक मौखिक टिप्पणी में चंद्रचूड़ ने माना था ऐसे विवादित पूजा स्थलों का सर्वेक्षण 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस चंद्रचूड़ के इस मौखिक टिप्पणी ने तब प्रभावी रूप से वाराणसी और मथुरा से लेकर संभल और अजमेर तक 10 से अधिक मामलों में दीवानी मुकदमों के लिए कानूनी रास्ता तैयार कर दिया था।

    जस्टिस संजीव खन्ना का क्या ऑब्जर्वेशन?

    तब पीठ ने ये भी कहा था कि प्रक्रियात्मक साधन के रूप में किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाना अधिनियम की धारा 3 और 4 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हो सकता है। कोर्ट ने तब कहा था कि ये ऐसे मामले हैं जिन पर हम अपने आदेश में कोई राय नहीं देंगे। गुरुवार (12 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष फिर से यही अनिवार्य प्रश्न आया और तब भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने अगले आदेश तक ऐसे मामलों में अदालतों को प्रभावी आदेश पारित करने से रोक दिया।

    चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली विशेष पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी। उपाध्याय ने याचिका में उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है। संबंधित कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था। यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को हालांकि इसके दायरे से बाहर रखा गया था।

    कई प्रतिवाद याचिकाएं हैं, जिनमें सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और उन मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के कानून के सख्त कार्यान्वयन का अनुरोध किया गया है, जिन्हें हिंदुओं ने इस आधार पर पुनः वापस किए जाने का अनुरोध किया है कि आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले ये मंदिर थे। पीठ ने कहा, ‘‘हम 1991 के अधिनियम की शक्तियों, स्वरूप और दायरे की पड़ताल कर रहे हैं।’’ पीठ ने अन्य सभी अदालतों से इस मामले में दूर रहने को कहा। इसने कहा कि उसके अगले आदेश तक कोई नया वाद दायर या पंजीकृत नहीं किया जाएगा और लंबित मामलों में, अदालतें उसके अगले आदेश तक कोई ‘‘प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश’’ पारित नहीं करेंगी।

    मामले में एक हिन्दू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जे साई दीपक ने अन्य सभी अदालतों पर रोक लगाने वाले आदेश का विरोध किया और कहा कि ऐसा निर्देश देने से पहले सभी पक्षों को सुना जाना चाहिए था। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि क्योंकि उच्चतम न्यायालय बड़े मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है, इसलिए अदालतों से कोई आदेश पारित न करने को कहना स्वाभाविक है। पीठ ने कहा कि यदि पक्षकार जोर देते हैं तो मामला उच्च न्यायालय भेजा जा सकता है।

    इसने पूछा, ‘‘क्या निचली अदालतें उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर जा सकती हैं?’’ पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय पहले से ही कानून की वैधता पर विचार कर रहा है। न्यायालय ने कहा कि केंद्र के जवाब के बिना मामले पर फैसला नहीं किया जा सकता। इसने सरकार से चार सप्ताह के भीतर याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने को कहा। न्यायालय ने केंद्र द्वारा याचिकाओं पर जवाब दाखिल किए जाने के बाद संबंधित पक्षों को भी प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।

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