नई दिल्ली । भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) डी वाई चंद्रचूड़ ने न्यायिक सेवाओं(Judicial Services) के लिए राष्ट्रीय स्तर (National level)की भर्ती प्रक्रिया की वकालत (advocacy for the recruitment process)करते हुए रविवार को कहा कि अब समय आ गया है कि ‘क्षेत्रवाद और राज्य-केंद्रित चयन की संकीर्ण दीवारों’ से आगे बढ़ा जाए। जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बड़ी संख्या में लंबित मामलों से निपटने के लिए कुशल कर्मियों को आकर्षित करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने देश भर में भर्ती कैलेंडर के मानकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रिक्तियां समय पर भरी जाएं।
उन्होंने कहा, ‘हमारी वर्तमान राष्ट्रीय औसत निपटारा दर 95 प्रतिशत है। प्रगति के बावजूद, लंबित मामलों का निपटारा एक चुनौती बनी हुई है।’ उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर न्यायिक कर्मियों के रिक्त पद 28 प्रतिशत तथा गैर-न्यायिक कर्मचारियों के रिक्त पद 27 प्रतिशत हैं। उन्होंने कहा कि मामलों के निपटारे की संख्या को संस्था की क्षमता से अधिक करने के लिए अदालतों को 71 प्रतिशत से 100 प्रतिशत की क्षमता से अधिक कार्य करना होगा।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘रिक्तियों को भरने के लिए, सम्मेलन में न्यायाधीशों के चयन के मानदंडों और सभी रिक्तियों के लिए भर्ती कैलेंडर के मानकीकरण पर विचार-विमर्श किया गया। अब समय आ गया है कि क्षेत्रवाद और राज्य-केंद्रित चयन की संकीर्ण दीवारों के पार न्यायिक सेवाओं में सदस्यों की भर्ती करके राष्ट्रीय एकीकरण के बारे में सोचा जाए।’
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय का अनुसंधान और योजना केंद्र, राज्य न्यायिक अकादमी में राज्य स्तरीय प्रशिक्षण मॉड्यूल को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ एकीकृत करने के लिए एक श्वेत पत्र तैयार कर रहा है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘वर्तमान में, राज्य न्यायिक अकादमियों में कुछ में मजबूत पाठ्यक्रम हैं, जबकि अन्य नए योग्य न्यायाधीशों को कानून विषयों के साथ फिर से जोड़ने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हम न्यायिक प्रशिक्षण के लिए एक व्यवस्थित, राष्ट्रव्यापी पाठ्यक्रम स्थापित करने और अपनी प्रगति की निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने की प्रक्रिया में हैं।’
उन्होंने कहा, ‘नए पाठ्यक्रम में नवीन प्रशिक्षण पद्धतियां, विषयगत ढांचा, प्रशिक्षण कैलेंडर में एकरूपता, न्यायिक प्रशिक्षण को सूचना प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत करना, ज्ञान अंतराल को भरने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी का पुनर्गठन और सबसे महत्वपूर्ण रूप से फीडबैक तथा मूल्यांकन पद्धति स्थापित करने का वादा किया गया है।’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्याय मुहैया करना अदालतों द्वारा नागरिकों, विशेषकर सबसे कमजोर लोगों को प्रदान की जाने वाली एक आवश्यक सेवा है। उन्होंने कहा कि पिछले दशक में किये गए प्रयासों से न्यायपालिका का आधुनिकीकरण हुआ है, जिसका लक्ष्य प्रशिक्षित कार्मिकों, विशाल अदालत परिसरों, सुविधा केंद्रों, ई-सेवा केंद्रों जैसी तकनीक-सक्षम और चिकित्सा सुविधाओं और शिशुगृह (क्रेच) जैसे सुलभ ढांचा उपलब्ध कराना है।
उन्होंने कहा, ‘एक दिन पहले ही हमने एक नए शिशुगृह का उद्घाटन किया, जिससे इसकी क्षमता 20 शिशुओं से बढ़कर सौ शिशुओं तक हो गई है। यह हमारी न्यायपालिका की बदलती जनसांख्यिकी को दर्शाता है। युवा धीरे-धीरे इसकी बागडोर अपने हाथ में ले रहे हैं।’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि लंबित मुकदमों को कम करने के लिए गठित समिति में न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता शामिल हैं, जिन्होंने मामलों के प्रबंधन के जरिए लंबित मुकदमों की संख्या कम करने को लेकर कुशलतापूर्वक कार्ययोजना तैयार की है।
उन्होंने कहा कि कार्य योजना के तीन चरणों की परिकल्पना की गई है। इसके तहत आरंभिक चरण में लक्षित मामलों, लंबित मामलों, रिकॉर्ड को दुरुस्त करने के लिए जिला स्तरीय मामला प्रबंधन समितियों का गठन शामिल है। उन्होंने कहा ‘दूसरा चरण जो चल रहा है, उसका उद्देश्य उन मामलों को हल करना है जो 10-20 साल, 20-30 साल और 30 साल से अधिक समय से अदालतों में लंबित हैं।’
उन्होंने कहा, ‘जनवरी से जून 2025 तक न्यायपालिका अदालतों में एक दशक से अधिक समय से लंबित मामलों के निपटारे के तीसरे चरण को क्रियान्वित करेगी।’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि लंबित मामलों के निपटारे के लिए अन्य रणनीतियों में मुकदमेबाजी से पहले विवाद समाधान भी शामिल है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने हाल में अपनी पहली लोक अदालत आयोजित की, जिसमें लगभग एक हजार मामलों का निपटारा पांच कार्य दिवसों के भीतर सौहार्दपूर्ण ढंग से किया गया।
उन्होंने कहा, ‘ऐसे मामलों का कोई कारण नहीं है जो पक्षों के बीच सुलझाए जा सकते हैं और अदालतों में लंबे समय तक अटके रहें। निस्संदेह अदालतें कानून के शासन को बनाए रखने और कानून के तहत न्याय देने का मंच हैं।’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हालांकि, लोक अदालत और मध्यस्थता जैसी वैकल्पिक रणनीतियां हमें यह आत्मनिरीक्षण करने का अवसर प्रदान करती हैं कि क्या पक्षों के बीच प्रतिकूल कार्यवाही की आवश्यकता है भी या नहीं।’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जिला न्यायपालिका और उच्च न्यायालयों के बीच अंतर को पाटा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायिक अधिकारियों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच खुले, स्पष्ट और समग्र संवाद का माहौल निष्पक्ष स्थानांतरण नीतियों, काम के समान वितरण और पदोन्नति और मूल्यांकन में पारदर्शिता हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पिछले दो दिन में उन्हें न्यायपालिका की स्थिति पर फिर से विचार करने और रचनात्मक समाधानों पर विचार-विमर्श करने का मौका मिला, जिन पर तत्काल और भविष्य में काम किया जा सकता है।
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