नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI Chandrachud) ने केंद्र सरकार (Central government) की तारीफ की है. कानून मंत्रालय (Law Ministry) की तरफ से नए कानूनों को लेकर दिल्ली मं आयोजित सेमिनार में भारत (India) के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI Chandrachud) ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कानूनों की प्रशंसा की और कहा कि इन तीन संसदीय कानूनों से भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव होने जा रहा है. डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ ये (तीन नए) कानून हमारे समाज के लिए ऐतिहासिक हैं, क्योंकि आपराधिक कानून हमारे समाज को दिन प्रतिदिन प्रभावित करता है. आपराधिक कानून राष्ट्र की नैतिक रूपरेखा को निर्देशित करता है और इसमें लोगों को उनकी बहुमूल्य स्वतंत्रता से वंचित करने की भी क्षमता होती है. कानून की प्रक्रिया जो राज्य द्वारा आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने से लेकर अपराध के लिए दोषसिद्धि तक अपराधों को नियंत्रित करता है, वो ये सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति पर कानून की उचित प्रक्रिया के बिना आरोप नहीं लगाया जाए और उसे दोषी नहीं ठहराया जाए.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे आपराधिक कानूनों का एक पहलू, जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाला था, वह यह था कि वो बहुत ही पुराने थे… 1860, 1872 और यहां तक कि 1973 के थे. मेरा मानना है कि संसद द्वारा इन नए कानूनों को पारित करना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत बदल रहा है और वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए नए कानूनी तरीकों की जरूरत है. हमारे कानूनों का उद्देश्य पीड़ितों को आपराधिक प्रक्रिया में एजेंसी और नियंत्रण के साथ-साथ न्याय की भावना देना है. हमारे कानूनों को इन चिंताओं का भी समाधान करने की जरूरत है जिसमें गवाहों, जांच में देरी, मुकदमों के फैसले में देरी, जेलों में भीड़भाड़ तथा विचाराधीन कैदियों के मुद्दे जैसे पुराने मुद्दों को दूर करने की जरूरत है.’
सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा, ‘नए बनाए गए आपराधिक कानूनों ने आपराधिक न्याय पर भारत के कानूनी ढांचे को एक नए युग में बदल दिया है. पीड़ितों के हितों की रक्षा करने और अपराधों की जांच और अभियोजन को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए इसमें बहुत जरूरी सुधार किए गए हैं. हालांकि, हाल ही में भारत सरकार ने ई-कोर्ट परियोजना के तहत न्यायपालिका के लिए 7 हजार करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया है. नवंबर से 31 मार्च के बीच हमने देश की अदालतों में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करने के लिए 850 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. डिजिटल साक्ष्य तैयार करने के मामले में हमें आरोपी के साथ-साथ पीड़ित की निजता का भी सम्मान करना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए. हमें अपने नागरिकों की गोपनीयता को सुरक्षित रखने में जनता का विश्वास जगाना चाहिए और आपराधिक न्याय प्रणाली में समग्र विश्वास पैदा करना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता में कहा गया है कि ट्रायल तीन साल में पूरा होना चाहिए और फैसला सुरक्षित रखे जाने के 45 दिनों के भीतर सुनाया जाना चाहिए. लंबित मामलों को सुलझाने के लिए यह एक अच्छी पहल है. पीड़ितों को प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रतियां उपलब्ध कराने तथा उन्हें डिजिटल माध्यम से जांच की प्रगति के बारे में सूचित करने के लिए दृष्टिकोण अपनाया गया है. क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में हम गंभीर और छोटे अपराधों को लगभग एक ही स्तर पर देखते हैं. इसमें बदलाव होना चाहिए और नए कानूनों के तहत इसमें बदलाव हुआ है.’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अपराध की बदलती प्रकृति और नए डिजिटल अपराधों को ध्यान में रखते हुए हमारे पुलिस बलों के बुनियादी ढांचे को और क्षमता को बढ़ावा देना अनिवार्य है. इस नए कानून को मौजूदा लोगो द्वारा लागू किया जाएगा. अब यह हम सभी के लिए एक चुनौती होगी क्योंकि इन कानूनों के लिए व्यवहार में बदलाव, मानसिकता में बदलाव, और नई संस्थागत व्यवस्था की जरूरत होगी. मुझे आशा है कि इस सम्मेलन में आयोजित विभिन्न पैनल चर्चाओं से नए आपराधिक कानूनों के विभिन्न पहलुओं पर सकारात्मक बातचीत शुरू होगी.
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