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    नागरिक सुरक्षा और सरकार

  • August 14, 2023

    – डॉ. रमेश ठाकुर

    चौदह अगस्त को ‘राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा दिवस’ है, जिसके मायने मानवीय जीवन के लिए बहुत खास हैं। तेज भागती जिंदगी और मशीनरी युग में दौड़ती इंसानी जीवनशैली में जोखिम की कमी नहीं है। किसी के साथ कब क्या हो जाए, कुछ नहीं पता? नागरिक सुरक्षा दुरुस्त करना, चाहें राज्य की सरकारें हों या केंद्र सरकार, सबका पहला धर्म होता है कि वह अपने लोगों को सुरक्षा की गारंटी दें। इस दायित्व से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। समाज का जिम्मेदार नागरिक जब अपनी सरकार से किसी चीज की मांग करता है, उसके लिए उसे धरना, आंदोलन भी करना पड़ता है, तो उसका समाधान निकालना सरकार की पहली जिम्मेदारी होती है। पर, आज के वक्त में परिदृश्य बहुत बदल चुका है। नागरिक मांगों पर सरकारें मुंह फेरती हैं, सामाजिक मुद्दों को इग्नोर करती हैं। तब, ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक सुरक्षा को लेकर हुकूमतें गंभीर नहीं है। हुकूमतें ऐसा न करें, उसी को याद दिलवाने के लिए प्रत्येक वर्ष 14 अगस्त को ‘राष्ट्रीय नागरिक सुरक्षा दिवस’ मनाया जाता है।

    राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा की गारंटी बदलते समय की जरूरत है, क्योंकि मानव वास्तविक रूप से एक अमूल्य सामाजिक जीवित प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के कारण उसको एक नहीं, बल्कि अनेक जरूरतों का सामना करना पड़ता है। वह कभी दूसरों को आश्रय देता है, तो कभी स्वयं को भी दूसरों पर स्थितिवश आश्रित होना पड़ता है। आधुनिक यांत्रिक युग में इंसान अनेक प्रकार की घटना-दुर्घटनाओं का शिकार होता रहता है। उन दुर्घटनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए आवश्यक होता है कि प्रत्येक व्यक्ति को सरकारें सामाजिक सुरक्षा की मुकम्मल गांरटी दें, क्योंकि वक्त जोखिमों से भरा है, कोरोना जैसी अचानक दस्तक देनी वाली जानलेवा बीमारी, प्रकृतिक आपदाएं, बेमौसम बारिश से प्रभावित होते किसान, बाढ़-बारिश से पीड़ित गरीब आदि को उभारने के लिए सामाजिक सुरक्षा का होना अब और जरूरी हो गया है।


    बहरहाल, सबसे पहले हमें अपने अधिकारों के प्रति सचेत और जागरूक होने की जरूरत होती है। कई दफा ऐसे होता है जागरुकता के अभाव में हम अपने अधिकारों को भूल जाते हैं और शोषण का शिकार हो जाते हैं। नागरिक सुरक्षा के लिए कुछ अधिनियमों का प्रावधान है, जिन्हें सरकार ने ही बनाया है नागरिकों के लिए। जैसे, कर्मचारी प्रीविडेंट फंड अधिनियम, कोयला खान भविष्य निधि एवं विविध उपबंध, श्रमिक क्षतिपूर्ति संशोधित, प्रसूति लाभ अधिनियम, राज्य बीमा संशोधित अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध व्यवस्था अधिनियम, वृद्धावस्था पेंशन योजना, अनुग्रह भुगतान संशोधित अधिनियम व सामाजिक सुरक्षा सर्टीफिकेट आदि, ये ऐसे अधिनियम हैं जिनमें सरकारें बंधी होती है। इन अधिनियमों के मुताबिक कानूनन सुरक्षा देना ही होता है। इनका जब उल्लंघन होता है तो लोगों को मजबूरन कोर्ट-कचहरी जाना पड़ता है। इसलिए सभी नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की दरकार है। इसलिए आज के दिवस के मायनों को जरूर समझें।

    दरअसल, सामाजिक सुरक्षा का मूल विचार सामुदायिक आयोजन, सामुदायिक उत्तरदायित्व व नागरिकों के कर्तव्यों और अधिकारों का सामुदायिक स्तर पर सुधारना होता है जिसमें गरीबी को हटाना, अभाव को मिटाना और जरूरतमंद व्यक्तियों के रहन-सहन के वांछित स्तर को ठीक करना होता है। हिंदुस्तान जैसे विकासशील और विकसित देशों में सामाजिक सुरक्षा विषय को गरीबी, बेरोजगारी तथा बीमारी का उन्मूलन दृष्टि से राष्ट्रीय योजना का अभिन्न व महत्वपूर्ण अंग माना गया है। सरकारी विचारों से सुरक्षा का महत्व अधिक स्पष्ट होता है। सामाजिक सुरक्षा शब्द का उद्गम औपचारिक रूप से सन 1935 में हुआ, जब पहली बार अमेरिका में नागरिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम का श्रीगणेश किया गया। तभी से बेरोजगारी, बीमारी तथा वृद्धावस्था बीमा की समस्या का समाधान करने के लिए सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के गठन का आरंभ हुआ। उसके कुछ वर्ष बाद ही अन्य मुल्कों ने इस मुहिम को अपनाना शुरू कर दिया।

    नागरिक जीवन सुरक्षा के साथ एक उल्लंघन का ताजा मामला सामने है। परसों की ही बात है, यानी 12 अगस्त को चेन्नई की एक अदालत ने प्रसिद्ध अभिनेत्री व राजनेता जया प्रदा को छह महीने की जेल की सजा और पांच हजार का जुर्माना ठोका। आरोप है कि उन्होंने सैकड़ों कर्मचारियों का पैसा ‘कर्मचारी राज्य बीमा निगम’ के खाते में जमा नहीं किया। दरअसल, चेन्नई में जया प्रदा एक सिनेमाघर की मालकिन थी जिसमें सैकड़ों कर्मचारी कार्यरत थे। सिनेमाहाल किन्हीं कारणों से चला नहीं, तो उसे जया प्रदा ने अचानक बंद कर दिया और कर्मचारियों को उनके बीमे का पैसा भी नहीं दिया, जिसको लेकर पीड़ित कर्मचारी कोर्ट पहुंचे, जिस पर बीते शनिवार को फैसला आया और अभिनेत्री को सजा सुनाई गई, हालांकि उसके बाद वह पैसा देने को राजी हुई हैं। सवाल ये है ऐसी नौबत क्यों आने दी? समय रहते नागरिक सुरक्षा का ख्याल क्यों नहीं किया? कर्मचारियों को उनकी मेहनत का पैसा अगर पहले ही दे दिया होता, तो ये नौबत न आती। यह ताजा मामला नजीर साबित हो, ताकि कोई भी धनाढ्य व्यक्ति किसी के साथ नागरिक सुरक्षा का ऐसा उल्लंघन न कर पाए।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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