नवसारी: गुजरात के नवसारी में 100 साल पहले हैजा से हजारों लोगों की मौत हो गई थी. इस महामारी से बचने के लिए पारसी समाज के बड़े उद्योगपति ने बड़ा पुतला बनाकर लोगों को उसकी पूजा करने के लिए दिया. वक्त गुजरता गया लेकिन पुतले को लेकर आम लोगों के विश्वास में कोई कमी नहीं आई. स्थानीय लोगों में इस पुतले को आज भी ढिंगला बापा के नाम से पूजा जाता है. उस वक्त ढिंगला बापा को पूरी तरह तैयार कर बीड़ी पिलाई जाती थी. अब श्रद्धालु उन्हें सिगारेट पिलाने लगे हैं.
मान्यता है कि ढिंगला बापा की पूजा करने पर शहर से हैजे की बीमार दूर हो गई और लाखों लोगों की जान बच गई थी. तभी से इस परंपरा को नसवारी के लोग निभा रहे हैं. हर साल आषाढ़ मास की अमावस्या के दिन बड़ा पुतला बनाकर उसकी पूजा की परंपरा नवसारी के आदिवासी परिवार निभाते हैं. ढिंगला बापा में कई लोगों की आस्था बनी हुई है.
आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए यह बड़ा उत्सव है. घास और कपड़े से बनाए बड़े से पुतले पर मिट्टी से बना मुख रखा जाता है और उसे सिगरेट पिलाई जाती है. इसे देव के रूप में देखा जाता है, लोग पुतले की पूजा करते हैं और मनोकामना मांगते हैं. ढिंगला बापा (पुतले) की दिनभर पूजा करने के बाद यात्रा निकाली जाती है. फिर शाम के समय पुतले को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है.
केंद्र सरकार के नेशनल कमीशन ऑफ माइनॉरिटी के वाइस चेरमेन केरसी देबू ने कहा कि 100 साल पहले करीब पारसी उद्योगपति ने हैजे को दूर भगाने के लिए सुझाव दिया था. उसे आज भी परंपरा के तौर पर मनाया जा रहा है. 100 साल से सफेद रंग से सज्ज कफनी पायजामा के साथ बूट पहनाकर ढिंगला बापा को तैयार किया जाता है. तब बीड़ी पिलाई जाती थी, समय के साथ पोशाक तो वही है, किंतु बीड़ी की जगह लोग सिगारेट पिलाने लगे हैं. कुल मिलाकर शाही ठाठ के साथ बापा की पूजा करने की परंपरा को लोग आज भी निभा रहे हैं.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved