जबलपुर। पिछले दिनों शहर में एक चिटफंड का मामला जोरों पर था। कंपनी द्वारा निवेशकों के 700 करोड़ हड़पने की बात सामने आई थी। जिसको लेकर शहर में एक क्रांतिकारी नेता ने आंदोलन की एक ऐसी अलख जगाई कि नेताजी की बातों में आकर सारे निवेशक पीछे-पीछे चल पड़े। नेताजी भी कम कहां थे, बकायदा ऐसी मुहीम चलाई कि कैंडल मार्च निकालकर कंपनी की हवा टाइट कर दी। हवा टाइट होना भी जरूरी थी क्योंकि नेताजी ने कैंडल मार्च के साथ धरना, ज्ञापन आदि भी दिए। और कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं की फोटो भी पोस्टरों में छपवा दी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी आंदोलन में शामिल हुए और प्रेस कांफ्रेंस करते हुए निवेशकों के पैसे वापस दिलाने की भी बात कही। फिर आंदोलन की लौ धीरे-धीरे बुझ गई। अब सवाल यह उठ रहा है कि नेताजी शांत क्यों है? इतना वृहद विरोध फिर भी कोई कार्रवाई नहीं। इसको लेकर सोशल मीडिया में निवेशकों ने कई प्रकार की बातें शुरु कर दी हैं। एक निवेशक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस पार्टी के ये नेता चंद सिक्कों की चकाचौंध में ढ़ेर हो गए।
नेताजी का दबाव बढ़ता देख प्रशासन ने उनकी मीटिंग कंपनी के अधिकारियों से करा दी। मौका पाते ही कंपनी के अधिकारियों ने नेताजी को दबोच लिया। सूत्रों की माने तो पिछले हफ्ते ही कंपनी के एक बड़े अधिकारी जबलपुर के दौरे पर आए और फिर नेताजी और अधिकारी की मुलाकात पूरे शहर में चर्चा का विषय बन गई। निवेशक का दावा है कि नेताजी ने अब कसम खा ली है कि वह कंपनी की ओर पैर करके भी नहीं सोएंगे। लेकिन मजे की बात तो यह है कि जिस कंपनी के खिलाफ नेताजी ने आंदोलन करने वक्त अपने साथ बड़े-बड़े नेताओं को शामिल किया था, अब निवेशक उन्हीं र्शीष नेताओं के पास जाने की तैयारी कर रहे हैं। एक बात तो तय है नेताजी ने मामले को रफा-दफा करके इस बात को सिद्ध कर दिया कि बाप-बड़ा न भईया…सबसे बड़ा रुपैया।
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