बीजिंग । चीन की सैन्य रिसर्च इकाई और कैनसिनो बायोलोजिक इंक द्वारा तैयार की जा रही कोरोना वैक्सीन को भी इंसानों पर परीक्षण के मध्य चरण में सफल पाया गया है। यह वैक्सीन सुरक्षित होने के साथ ही साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि कैनसिनो वैक्सीन की 508 लोगों पर परीक्षण किया गया है। परीक्षण के दौरान लोगों के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है। अगले चरण में बड़े स्तर पर इसका परीक्षण किया जाना है। इस वैक्सीन ने शरीर में एंटीबॉडी के साथ ही टी-सेल भी विकसित किए।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की जा रही वैक्सीन भी पहले चरण में सफल पाई गई है। बताया जाता है कि इसने भी एंटीबॉडी और टी-सेल विकसित किए हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वैक्सीन सुरक्षित होने के साथ ही साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है। इसे जिन लोगों को दिया गया उनके शरीर में वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी के साथ-साथ व्हाइ ब्लड सेल्स भी पाए गए जो ज्यादा समय तक के लिए शरीर को प्रतिरोधक क्षमता देते हैं।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के इस शोध अध्ययन का प्रकाशन सोमवार को ‘द लैंसेट’ पत्रिका में हुआ। वैक्सीन के पहले चरण का परीक्षण अप्रैल में शुरू हुआ था। 18 से 55 साल आयु वर्ग के 1,077 स्वस्थ लोगों को अप्रैल से मई के बीच में इसकी खुराक लगाई गई थी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. एडरियान हिल ने कहा कि ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में 10 हजार लोगों पर भी वैक्सीन का परीक्षण चल रहा है।
उन्होंने बताया कि अमेरिका में करीब 30 हजार लोगों पर जल्द ही एक और व्यापक परीक्षण शुरू होने वाला है। बांग्लादेश सरकार ने कोरोना से निपटने के उद्देश्य से तैयार की जा रही चीन की वैक्सीन का परीक्षण अपने नागरिकों पर करने की अनुमति दे दी है। भारत में भी सात फार्मा कंपनियां भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट, जायडस कैडिला, पेनेसिया बायोटेक, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स, मिनवैक्स और बायोलॉजिकल ई कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने में जुटी हैं।
वहीं, इसके अलावा रूस की गेमालेया इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी ने कोरोना के खिलाफ कारगर अपनी तकनीक साझा करने की पेशकश की है। वह अपनी इस वैज्ञानिक कोशिश को सभी देशों के साथ सहज ही बांटना चाहता है।
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