नई दिल्ली । रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) तथा लार्सन एंड ट्रुबो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित हल्के टैंक जोरावर (Advanced Light Tank Zorawar)के ऊंचे क्षेत्रों में परीक्षण जल्द शुरू होंगे। सेना ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। ये टैंक चीन से मुकाबले के लिए विशेष रूप से तैयार (specially designed)किए गए हैं। इन्हें एलएसी पर तैनात किया जाना है। टैंक के पहले चरण के परीक्षण पिछले माह हो चुके हैं तथा अब ऊंचे और ठंडे इलाकों में परीक्षण होने हैं। आमतौर पर टैंकों का वजन 40-50 टन के बीच होता है।
भारत के पास जो टैंक सर्वाधिक इस्तेमाल हो रहे हैं, उनमें टी-72 का 41 टन और टी-90 का 46 टन वजन है। जोरावर का वजन 25 टन से भी कम है। इससे इन्हें न सिर्फ ऊंचे इलाकों में तैनात करना आसान है, बल्कि प्रदर्शन भी बेहतर हो जाता है। चीन ने एलएसी के निकट इसी प्रकार के हल्के टैंक तैनात कर रखे हैं जिसका अहसास भारत को 2020 में हुए टकराव के दौरान हुआ।
डीआरडीओ और एलएंटी को ऐसे 354 टैंकों के निर्माण का कांट्रेक्ट दिया गया था। बीते सितंबर में राजस्थान के मरुस्थलीय इलाके में इसके पहले चरण के परीक्षण किए गए हैं जो सफल रहे हैं। डीआरडीओ का दावा है कि वे सभी पैरामीटरों पर सफल रहे हैं। लेकिन अब दूसरे चरण के परीक्षण ऊंचे इलाकों में सर्द मौसम में होने हैं।
सबसे हल्के टैंक, 70 किलोमीटर प्रति घंटा रफ्तार
जोरावर टैंकों को डीआरडीओ की चेन्नई स्थित प्रयोगशाला कांबेट व्हीकल्स रिसर्च एंड डवलपमेंट स्टेबलिशमेंट (सीवीआरडीई) ने तैयार किया है। ये देश में बने सबसे हल्के टैंक होंगे। सूत्रों के अनुसार, अभी इनका वजन 25 टन के करीब है तथा नए संस्करणों में इसे और कम करने के प्रयास हैं। वजन कम होने से यह टैंक बिना सड़क वाली जगह पर 35/40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकते हैं। जबकि सड़क पर इनकी अधिकतम रफ्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटा है।
सेना वापसी अंतिम चरण में
भारत और चीन के बीच समझौते के बाद पूर्वी लद्दाख में टकराव बिंदुओं डेमचोक और देपसांग से सैनिकों की वापसी अंतिम चरण में है। समझौतों के अनुपालन में भारतीय सैनिकों ने इन क्षेत्रों से अपने उपकरणों को पीछे लाना शुरू कर दिया। सेना के सूत्रों ने पिछले सप्ताह कहा था कि समझौता केवल इन दो टकराव बिंदुओं के लिए हुआ था और अन्य क्षेत्रों के लिए बातचीत अब भी जारी है। यह भी बताया कि पिछले हफ्ते शुरू हुई सैन्य वापसी पूरी होने के बाद इन क्षेत्रों में गश्त शुरू हो जाएगी।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को सैन्य नेतृत्व से तेजी से उभरते भू-राजनीतिक खतरों और अवसरों के लिए तैयार रहने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावी ढंग से मजबूत करने के लिए सरकार के सभी तंत्रों के अधिक समग्र दृष्टिकोण के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। जयशंकर ने सैन्य कमांडर सम्मेलन-2024 के दूसरे चरण के समापन दिवस पर दिए संबोधन में यह टिप्पणी की। इस सम्मेलन में भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने सीमावर्ती क्षेत्रों और भीतरी इलाकों की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण रणनीतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।
यह सम्मेलन ऐसे समय में हुआ, जब भारत और चीन के बीच बनी एक अहम सहमति के तहत पूर्वी लद्दाख में गतिरोध वाले दो बिंदुओं-डेमचोक और डेपसांग से सैनिकों की वापसी अंतिम चरण में है। जयशंकर के संबोधन का विषय ‘वैश्विक और भू-राजनीतिक पेचीदगियां : भारत के लिए अवसर और सशस्त्र बलों से उम्मीदें’ था। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने विदेश मंत्री के साथ मंच साझा किया।
जयशंकर ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “आज दिल्ली में सैन्य कमांडर सम्मेलन को संबोधित करके खुशी हो रही है। मौजूदा भू-राजनीतिक जटिलताओं, चुनौतियों, संभावनाओं और अवसरों पर चर्चा की। राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावी ढंग से मजबूत करने के लिए सरकार के सभी तंत्रों के अधिक समग्र दृष्टिकोण के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया।” रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि सम्मेलन में तत्परता और अनुकूलनशीलता के प्रति भारतीय सेना की अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई, क्योंकि वरिष्ठ नेतृत्व ने मौजूदा परिवर्तनकारी पहलों में तेजी लाने” और विभिन्न राष्ट्रीय प्रयासों में सक्रिय रूप से योगदान देने का संकल्प लिया।
बयान के मुताबिक, भारतीय सेना दूरदर्शी दृष्टिकोण पर जोर देते हुए मौजूदा और उभरती चुनौतियों से निपटने की तैयारी करने के लिए पूरी तरह से समर्पित है, ताकि भारत के रणनीतिक हितों के अनुरूप एक प्रगतिशील, लचीला और भावी चुनौतियों के लिए तैयार बल सुनिश्चित किया जा सके। इसमें कहा गया है कि सम्मेलन में विदेश मंत्री ने भारत को प्रभावित करने वाले जटिल वैश्विक एवं भू-राजनीतिक घटनाक्रमों को रेखांकित किया और सशस्त्र बलों से देश की अपेक्षाओं तथा “वर्तमान विश्व व्यवस्था के विरोधाभासों और चुनौतियों” से निपटने के लिए जरूरी तैयारियों पर प्रकाश डाला।
बयान के अनुसार, जयशंकर ने भारतीय सेना के सतर्क रहने पर जोर दिया और सैन्य नेतृत्व से तेजी से उभरते भू-राजनीतिक खतरों और अवसरों के लिए तैयार रहने का आग्रह किया। इसमें कहा गया है कि विदेश मंत्री ने भारत की रणनीतिक स्थिति को आकार देने में तकनीकी प्रगति और विश्व में जारी संघर्षों से सीखे गए सबक के महत्व को रेखांकित किया। रक्षा प्रमुख (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने अपने संबोधन में लखनऊ में हाल में आयोजित संयुक्त कमांडर सम्मेलन की सफलता का जिक्र किया। मौजूदा सुरक्षा स्थिति पर प्रकाश डालते हुए जनरल चौहान ने संयुक्त रूप से काम करने के महत्व और सभी क्षेत्रों में बेहतर एकीकरण पर जोर दिया, जो भविष्य के युद्ध और अभियानों के प्रभावी संचालन के लिए अहम है।
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