नई दिल्ली: ताइवान की सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DTP) के नेता लाई चिंग ते (Lai Ching-te) ने शनिवार को राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है. लाई चिंग और उनकी पार्टी डीपीटी को चीन का कट्टर विरोधी माना जाता है. चीन ने चुनाव से पहले ही लाई चिंग को अलगाववादी घोषित कर दिया था. चीन ने ताइवान की जनता से दो टूक कहा था कि अगर वे सैन्य संघर्ष की स्थिति से बचना चाहते हैं तो उन्हें सही विकल्प चुनना होगा. देश के मौजूदा उपराष्ट्रपति लाई चिंग ताइवान की स्वतंत्रता और चीन के क्षेत्रीय दावे का विरोध करते हैं.
लाई चिंग ते की जीत के साथ ही उनकी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने लगातार तीसरी बार सत्ता में आकर इतिहास रच दिया है. हालांकि, उनकी जीत से चीन और ताइवान के बीच तनाव बढ़ने के पूरे-पूरे आसार हैं. राष्ट्रपति चुनाव में लाई चिंग ते के अलावा विपक्षी पार्टी कुओमिनतांग (KMT) के होउ यू इह और ताइवान पीपुल्स पार्टी के को वेन जे के बीच मुकाबला था. केएमटी को चीन समर्थित पार्टी माना जाता है. होऊ यू इह राजनीति में आने से पहले पुलिस फोर्स के हेड रह चुके हैं.
केएमटी के होउ ने वादा किया था कि अगर वे चुनाव जीतते हैं तो वो देश की सुरक्षा को और मजबूत करेंगे और चीन से संबंध सुधारने पर जोर देंगे. वहीं, ताइवान पीपुल्स पार्टी के वेन जे भी चुनावी मैदान में थी. उन्होंने 2019 में ताइवान पीपल्स पार्टी बनाई थी. उन्होंने चुनाव के दौरान खुद को ऐसे उम्मीदवार के तौर पर पेश किया था, जो चीन और अमेरिका दोनों के साथ संबंध बनाने का हिमायती है.
चीन और ताइवान का रिश्ता अलग है. ताइवान चीन के दक्षिण पूर्वी तट से 100 मील यानी लगभग 160 किलोमीटर दूर स्थित छोटा सा द्वीप है. ताइवान 1949 से खुद को आजाद मुल्क मान रहा है. लेकिन अभी तक दुनिया के 14 देशों ने ही उसे आजाद देश के तौर पर मान्यता दी है और उसके साथ डिप्लोमैटिक रिलेशन बनाए हैं. चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है और उसका मानना है कि एक दिन ताइवान उसका हिस्सा बन जाएगा. वहीं, ताइवान खुद को आजाद देश बताता है. उसका अपना संविधान है और वहां चुनी हुई सरकार है.
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