नई दिल्ली। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष (US House Speaker) नैन्सी पेलोसी (Nancy Pelosi) की ताइवान यात्रा पर चीन (China) आगबबूला तो है, लेकिन उसके ताइवान पर हमला (attack on taiwan) करने की आशंका क्षीण है। रक्षा विशेषज्ञ (defense specialist) उन अटकलों को खारिज करते हैं, जिसमें यह कहा जा रहा था कि अमेरिका रूस को यूक्रेन में उलझाने के बाद अब चीन को ताइवान में उलझाने की कोशिश में सफल हो जाएगा।
जानकारों के अनुसार, इसके पीछे कई कारण हैं। बदलती भू राजनीतिक स्थितियों में भी चीन अपने आर्थिक हितों को सर्वोपरि रखता है। चीन के ताइवान से आर्थिक रिश्ते भी हैं। ताइवान आज सबसे बड़ा चिप उत्पादक देश है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भले ही चीन रूस के पक्ष में रहा हो, लेकिन उसने युद्ध के समर्थन के चलते अपने आर्थिक हितों पर आंच नहीं आने दी। इसलिए चीन नहीं चाहेगा कि वह ताइवान पर हमला करके यूरोप या अमेरिका के साथ अपने व्यापार को प्रभावित होने दे।
अमेरिका को परिणाम भुगतने की चेतावनी देना दिखावा
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र सिंह के अनुसार, पूर्व में चीन-अमेरिका के बीच संबंध सामान्य होने में सबसे अहम बात यह थी चीन ने अमेरिका से हामी भरवाई थी कि ताइवान उसका हिस्सा है। हालांकि, अमेरिका बलपूर्वक ताइवान को लेने का अभी भी खिलाफ है। दूसरे, यह भी खबरें आई हैं कि नैंनी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर बाइडन प्रशासन भी सहमत नहीं था।
हालांकि, अमेरिका में संसद स्वतंत्र है, इसलिए सरकार के लिए दौरे को रोक पाना संभव नहीं था। इस बात को चीन भी जानता है। इसलिए चीन इस मुद्दे पर परिणाम भुगतने की चेतावनी देकर दिखावा कर रहा है। या यह कह सकते हैं कि अपने देश और दुनिया को संदेश दे रहा है। क्योंकि, चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग को तीसरा टर्म हासिल करना है। इसलिए वह अभी युद्ध की नौबत पैदा नहीं करेगा।
उलझाने के लिए उठा सकता है कुछ कदम
यह हो सकता है कि चीन ताइवान को उलझाने के लिए कुछ कदम उठाए। जैसे किसी सीमा पर सेना भेजना, हवाई क्षेत्र में बार-बार घुसना आदि। इस मुद्दे पर अमेरिका की तरफ से कोई बयान भी जारी हो सकता है, जो इस तनावपूर्ण स्थिति को कम कर सकता है। रूस द्वारा गैस की आपूर्ति बंद किए जाने के बाद यूरोपीय देश भी सहज नहीं हैं। वे भी नहीं चाहेंगे कि चीन से भी आपूर्ति शृंखला बाधित हो।
भारत की पैनी नजर
सूत्रों की मानें तो इस घटनाक्रम पर भारत की भी पैनी नजर है। भारत अपनी विदेश नीति के तहत हालांकि दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता है, लेकिन इस मामले पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया आ चुकी है। पाकिस्तान ने एक चीन नीति का समर्थन किया है। साथ ही कहा है कि इस घटना के क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता के लिए निहितार्थ हैं। भारत हालांकि इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेगा लेकिन घटनाक्रम पर पैनी निगाह बनाए हुए है।
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