नई दिल्ली: भारतीय स्मार्टफोन बाजार में चीनी कंपनियों का दबदबा है. कम से कम एंट्री लेवल और मिड रेंज बजट सेगमेंट में तो ऐसा ही है. प्रीमियम सेगमेंट में ऐपल और सैमसंग की धाक है. सूत्रों की मानें तो सरकार स्मार्टफोन और मोबाइल सेगमेंट से जुड़े कई बड़े मामलों पर विचार कर रही है.
इन पर फैसला आने के बाद भारतीय स्मार्टफोन मार्केट का स्वरूप बदल सकता है. इस लिस्ट में राइट टू रिपेयर, दो तरह के चार्जिंग पोर्ट और 12 हजार रुपये से कम बजट में चीनी कंपनियों को बैन करना शामिल है. इन पॉलिसीज का असर सिर्फ चीनी कंपनियों पर ही नहीं बल्कि अमेरिकी ब्रांड पर भी पडे़गा. आइए जानते हैं इन तीन पॉइंट्स का स्मार्टफोन मार्केट पर क्या असर पड़ेगा.
क्या बंद हो जाएंगे सस्ते चीनी स्मार्टफोन्स?
सबसे पहले बात करते हैं 12 हजार रुपये से कम के सेगमेंट में चीनी कंपनियों के बैन पर. रिपोर्ट्स की मानें तो सरकार 12 हजार रुपये कम बजट वाले स्मार्टफोन सेगमेंट से चीनी कंपनियों को बाहर करने पर विचार कर रही है. इस फैसले से कार्बन, लावा और माइक्रोमैक्स जैसी कंपनियों को फायदा मिलेगा. हालांकि, सैमसंग और नोकिया के भी फोन इस बजट में आते हैं.
सैमसंग और नोकिया किसी दूसरे भारतीय स्मार्टफोन ब्रांड के मुकाबले ज्यादा मजबूत स्थिति में है. ऐसे में लोगों के भरोसे का इन ब्रांड्स को फायदा मिल सकता है. काउंटर पॉइंट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 12 हजार रुपये कम बजट वाला सेगमेंट सबसे ज्यादा पॉपुलर है. इस सेगमेंट Xiaomi, Realme, OPPO, Vivo, POCO, Redmi और itel, Infinix और Tecno का दबदबा है.
चार्जिंग पोर्ट पर बैठक
सरकार चार्जिंग पोर्ट पर भी एक बैठक अगले हफ्ते करने वाली है. इस बैठक का उद्देश्य एक ही सेगमेंट में अलग-अलग चार्जिंग पोर्ट को खत्म करना है. दरअसल, फीचर फोन्स के लिए अलग, एंड्रॉयड फोन्स दो तरह के चार्जिंग पोर्ट, ईयरबड्स के लिए अलग और लैपटॉप के लिए अलग चार्जिंग पोर्ट्स आते हैं.
आईफोन में ऐपल लाइटनिंग पोर्ट का इस्तेमाल करता है. इस तरह से अलग-अलग डिवाइसेस के लिए यूजर्स को अलग-अलग चार्जर यूज करने पड़ते हैं. सरकार सिर्फ दो चार्जिंग पोर्ट्स वाली पॉलिसी पर काम कर रही है. अगर यह पॉलिसी लागू होती है तो फीचर्स फोन्स के एक चार्जिंग पोर्ट और अन्य डिवाइसेस के लिए दूसरे तरह का चार्जिंग पोर्ट मिलेगा. इस पॉलिसी का सबसे ज्यादा असर ऐपल जैसी कंपनी पर पड़ेगा.
ऐपल अपने फोन्स के साथ बॉक्स में चार्जर नहीं देता है. वहीं आईफोन के लिए आपको लाइटनिंग केबल का इस्तेमाल करना होता है. कंपनी की कमाई का बड़ा हिस्सा चार्जर बेचकर आता है. ऐसे में यह फैसल अमेरिकी कंपनी के लिए किसी झटके से कम नहीं होगा.
राइट टू रिपेयर
राइट टू रिपेयर एक बेहद जरूरी मामला है. मौजूदा स्थिति में डिवाइस रिपेयर के नाम पर कंपनियों की मनमानी चलती है. मान लेते हैं आपके लैपटॉप में सिर्फ एक बटन की दिक्कत है, लेकिन सर्विस सेंटर वाला पूरे पैनल को चेंज करता है. वहीं स्मार्टफोन की बात करें तो कई बार आपके फोन की स्क्रीन क्रैक हो जाती है.
ऐसी स्थिति में आप किसी सामान्य शॉप पर जाएंगे, तो वह टच पैनल या डिस्प्ले जरूरत के हिसाब से चेंज करता है. मगर सर्विस सेंटर में ऐसा नहीं होता है. वहां आपको पूरा फोल्डर चेंग करवाना पड़ता है. राइट टू रिपेयर पॉलिसी के तहत इस तरह की मनमानी खत्म होगी.
कंपनियों को सिर्फ उन्हीं पार्ट्स को रिप्लेस करना होगा, जो खराब हैं. इस पॉलिसी का सबसे ज्यादा फायदा कंज्यूमर्स को ही होगा. राइट टू रिपेयर के तहत कंज्यूमर्स की कंपनियों पर निर्भरता भी खत्म होगी. उन्हें अपने डिवाइस को रिपेयर कराने का अधिकार मिलेगा.
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