कॉम्प्रिहेंसिव एवं प्रोग्रेसिव ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) करार एक बार फिर चर्चा में आ गया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि हफ्ता भर पहले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौता करने के बाद क्या अब चीन टीपीपी में भी शामिल हो जाएगा? पिछले शुक्रवार को एपेक (एशिया-पैसिफिक आर्थिक सहयोग) की बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि चीन टीपीपी समझौते में शामिल होने पर सकारात्मक रूप से विचार करेगा। ये विडंबना ही है कि बराक ओबामा ने अमेरिका का राष्ट्रपति रहते हुए जिस करार की कल्पना चीन की बढ़ती ताकत पर विराम लगाने के लिए की थी, अब उसी चीन की पहल से इस समझौते की संभावनाओं पर दुनिया भर में चर्चा शुरू हो गई है। अमेरिका में मुक्त व्यापार समझौते अब काफी अलोकप्रिय हो गए हैं। 2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे तमाम समझौतों से अमेरिका को अलग करने का वादा करते हुए राष्ट्रपति चुनाव जीता था। इसके बाद उन्होंने टीपीपी से अमेरिका को अलग कर लिया था। देश के जनमत को देखते हुए इस साल के चुनाव में विजयी हुए डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन ने भी टीपीपी को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखाया है। उन्होंने सिर्फ
यह कहा है कि अगर इस करार की शर्तों में सुधार हुआ, तो वे टीपीपी में अमेरिका को दोबारा शामिल करने पर विचार करेंगे।
ऐसे में इस समझौते की संभावनाओं को मृत समझ लिया गया था। लेकिन जिस तरह पिछले हफ्ते 15 देशों ने अमेरिका को छोड़कर आरसीईपी समझौता कर लिया, उससे टीपीपी भी चर्चा में आया। आरसीईपी करार होने के पांच दिन बाद हुए एपेक शिखर सम्मेलन में चीन ने इसमें शामिल होने की इच्छा जता दी।
वैसे चीन की ये पहल अचानक नहीं है। पिछले मई में चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में प्रधानमंत्री ली किछियांग ने कहा था कि टीपीपी में शामिल होने को लेकर चीन का नजरिया सकारात्मक और खुला है। उसके बाद चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता गाओ फेंग ने कहा था कि टीपीपी करार के नियम विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के नियमों से मेल खाते हैं। यानी चीन ने डब्लूटीओ के नियमों को स्वीकार किया है, तो उसे टीपीपी के नियमों से ज्यादा गुरेज नहीं होगा।
जब ये करार हुआ था, तब टीपीपी का मकसद दुनिया का सबसे उन्नत व्यापार समझौता करना बताया गया था। तब कहा गया था कि इस करार के तहत डिजिटल व्यापार, बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण, निवेश अधिकार, पर्यावरण एवं श्रम मानदंडों और सरकारी प्रतिष्ठानों में पारदर्शिता के कायदे शामिल किए जाएंगे। तब अमेरिकी अधिकारियों ने कहा था कि चीन इस समझौते में तभी शामिल हो पाएगा, जब इन प्रतिमानों पर खरा उतरेगा। साथ ही उसे करार में शामिल होने वाले सभी सदस्य देशों का भरोसा जीतना होगा। इसी मकसद से टीपीपी के हर सदस्य देश को किसी नए देश को शामिल करने के मामले में वीटो का अधिकार देने का प्रावधान इसमें रखा गया था।
आरंभिक प्रस्ताव के मुताबिक टीपीपी में 11 देश थे। ये देश थे- ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, कनाडा, चिले, जापान, मलेशिया, मेक्सिको, न्यूजीलैंड, पेरू, सिंगापुर और अमेरिका। बाद में वियतनाम भी इसमें आया। अब इनमें से ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, मलेशिया, न्यूजीलैंड, वियतनाम और सिंगापुर आरसीईपी में शामिल हो गए हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved