नई दिल्ली: चीन अपने एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड के सहारे कई देशों में अपना लगातार प्रभाव बढ़ाता जा रहा है. चीन अफ्रीका के कई देशों में तो ‘सेंध’ लगा ही चुका है साथ ही पाकिस्तान, कजाकिस्तान, श्रीलंका जैसे एशियाई देशों में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. चीन का प्रशासन इसे ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट के तौर पर देख रहा है और इस प्रोजेक्ट को लेकर दावा है कि इससे चीन को दुनिया के बाकी देशों से कनेक्ट किया जाएगा. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की महत्वाकांक्षा इस प्रोजेक्ट के सहारे छोटे और विकासशील देशों पर अपना दबदबा कायम करने की है और इसे चीनी साम्राज्यवाद कहा गया है.
चीन दरअसल कुछ समय से विकासशील और गरीब देशों को बुनियादी सुविधाएं वाले प्रोजेक्ट्स मसलन सड़कें, रेलवे और ब्रिज के लिए किफायती लोन मुहैया करा रहा है. इसके अलावा कई चीनी कंपनियां भी इन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में शामिल हैं हालांकि इन प्रोजेक्ट्स को अधूरा छोड़ने के साथ ही चीन इन देशों पर आर्थिक दबाव भी बना रहा है. चीन पर अक्सर ये आरोप लगते रहे हैं कि अफ्रीका के कई देशों में बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं पर लोन मुहैया कराकर वहां की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करता है. ईस्ट अफ्रीकन मॉनीटर के मुताबिक, आज के दौर में अफ्रीका में पांच में से एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को चीन फंड कर रहा है और हर तीन में से एक प्रोजेक्ट को चीन की कंपनियां तैयार कर रही हैं.
मोंटेनेग्रो और सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में चीनी वर्करों ने 270 मील लंबा हाईवे बनाना शुरु किया था लेकिन आधे दशक से ज्यादा समय के बाद ये हाईवे धूल फांक रहा है. सरकार पहले ही इस मामले में चीन से 1 बिलियन डॉलर्स का लोन ले चुकी है. आईएमएफ का कहना है कि इसे पूरा करने में 1 बिलियन डॉलर्स और लग सकते हैं और वहां की सरकार के ये लोन ना चुका पाने के चलते चीन के मोंटेनेग्रो की जमीन पर कब्जा करने का खतरा बढ़ गया है. श्रीलंका ने कुछ समय पहले एक बिल पास किया था जिसका नाम पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल था.
इस बिल के तहत चीन को 269 हेक्टेयर की जमीन दी गई थी. इस स्पेशल जोन में चीनी मजदूर काम करेंगे और यहां चीन की करेंसी युआन चलेगी. इससे पहले भी श्रीलंका अपने एक अहम बंदरगाह को कई सालों के लिए चीन को सौंप चुका है. सिर्फ श्रीलंका ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह को भी अगले कुछ सालों तक चीन को सौंप दिया गया है. चीन यहां कंस्ट्रक्शन करने के साथ ही मुनाफे का बड़ा हिस्सा अपने पास रखेगा. चीन के अधिकारी कहते रहे हैं कि ग्वादर बंदरगाह का उद्देश्य पूरी तरह से आर्थिक और व्यावसायिक हैं, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे चीन की मंशा अपना सैन्य प्रभुत्व बढ़ाना है.
इसके अलावा कजाकिस्तान में एक हाई-प्रोफाइल प्रोजेक्ट को होल्ड पर डाल दिया गया है क्योंकि वहां पर एक स्थानीय बैंक बर्बाद हो गया था. चीन ने इस प्रोजेक्ट में 1.9 बिलियन डॉलर्स का निवेश किया था और ये प्रोजेक्ट साल 2020 में शुरु होना था लेकिन लोकल बैंक के हालातों के बाद चाइना डेवलेपमेंट बैंक ने इस प्रोजेक्ट को कैंसिल कर दिया. इसी तरह चीन द्वारा निर्मित मोंबासा-नैरोबी 290 मील ट्रैक के सहारे केन्या और युगांडा को रेल के सहारे जोड़ने की कोशिश थी. लेकिन ये प्रोजेक्ट बॉर्डर तक नहीं पहुंच पाया और इसे 75 मील पूरा कर एक गांव तक इस रेलवे ट्रैक को ला दिया गया. चीन ने भी इस प्रोजेक्ट से लगभग 5 बिलियन डॉलर्स की फंडिंग को वापस ले लिया था. रिपोर्ट्स के अनुसार, केन्या पर चीन का 9 बिलियन डॉलर्स का भारी-भरकम कर्ज है.
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