– डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र
युद्ध न चाहते हुए भी भारत और चीन दोनों देशों की सेनाएं एलएसी के पास बड़ी मुस्तैदी के साथ अपना पक्ष मजबूत बताते हुए खड़ी हैं। तनाव चरम पर है। बाहर से देखने पर युद्ध की स्थिति बनी हुई है लेकिन युद्ध की विभीषिका और उसके नतीजों की आशंका में दोनों देशों के कूटनीतिज्ञ अपने स्तर से युद्ध की स्थिति को खत्म कर दोनों देशों के बीच समस्याओं के समाधान का प्रयास कर रहे हैं।
चीन किसी भी प्रकार की समस्या को पारदर्शी ढंग से सबके समक्ष रखने और उससे जन-जन को अवगत कराने का पक्षधर कभी नहीं रहा। बड़ी-बड़ी समस्याओं के संदर्भ में भी चीन सदैव मौन रहता है, वह देश के समक्ष कोई भी तथ्य नहीं रखता। इसके विपरीत भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के कारण नीतियों में पारदर्शिता और हर समस्या के विभिन्न पहलुओं से जनता को भी अवगत कराना सरकार की लोकतांत्रित जिम्मेदारी भी है। चीन, पाकिस्तान जैसे कम्युनिस्ट तानाशाही या फौजी शासन व्यवस्था में प्रायः इसका अभाव देखा जाता है।
इस समय भारत-चीन के बीच गंभीर तनाव को लेकर सरकार पर्याप्त गोपनीयता बरत रही है जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस संसद में इस मुद्दे पर चर्चा चाहती है। हालांकि सत्ता पक्ष को कांग्रेस की यह मांग स्वीकार नहीं है और सरकार इसपर संसद में चर्चा कराने के पक्ष में नहीं है। यहां यह प्रश्न उठता है कि सरकार सीमा पर आखिर चीन की उपस्थिति को लेकर इतनी गोपनीयता क्यों बरत रही है और इसपर संसद में चर्चा कराने के लिए तैयार क्यों नहीं है?
वैसे तो किसी भी मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग विपक्षी दलों का अधिकार और उसपर चर्चा सरकार का दायित्व है। किन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर जहां एक ओर प्रतिद्वंद्वी चीन जैसा धूर्त हो तो हर कदम पर सतर्कता आवश्यक है। रीति-नीति और अपनी तैयारियों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए सरकार सदन में इसकी चर्चा के लिए तैयार नहीं है। विपक्ष की मांग को देखते हुए सरकार राजनीतिक दलों से अलग-अलग मिलकर उन्हें यह समझाने का प्रयास कर रही है कि इसपर सदन में चर्चा उचित है। प्रायः सभी राजनीतिक दल सरकार के मत से सहमत भी हो रहे हैं किंतु कांग्रेस पूरी आक्रमकता के साथ अपनी इस मांग पर अड़ी है।
शिवसेना ने भले ही संसद के बाहर इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ बयान दिया मगर संसद में इसकी भूमिका आक्रामक नहीं है। सपा, बसपा, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस, बीजेडी जैसे दलों ने न तो आक्रामक रुख अख्तियार किया और न इसपर चर्चा की मांग की है। वस्तुतः राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सैन्य प्रशासन तथा उसकी गतिविधियों से संबंधित प्रकरण पूर्ण गोपनीयता की अपेक्षा रखते हैं। गोपनीय बने रहने पर ही वह विपक्षी देश के लिए चुनौती बन पाते हैं अन्यथा शत्रु देश किसी भी तैयारियों पर पानी फेर सकता है। प्रायः हर देश अपने शत्रु सेनाओं की क्षमताओं, गतिविधियों और योजनाओं की जानकारी अपने गुप्तचरों के माध्यम से प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। देश की जनता और विपक्षी दल इस तथ्य से परिचित हैं इसलिए संसद में इसपर चर्चा कराने के लिए कहीं से भी जोरदार मांग नहीं उठ रही है।
1962 में चीन के साथ युद्ध में कम्युनिस्टों द्वारा की गयी चीन की पक्षधरता की तरह इस समय कांग्रेस चीन का मुखर पक्षधर प्रतीत हो रही है। सरकार की ओर से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में भारत-चीन तनाव को लेकर बात रखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता को जोरदार ढंग से रखा। इससे कांग्रेस सहित दूसरे राजनीतिक दल भी सरकार के साथ नजर आए। राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए सररकार ने पूरी गोपनीयता बनाए रखी जिससे सैन्य गतिविधियों और तैयारियों को लेकर किसी को भनक नहीं लगी। इसके चलते इसबार पहली बार चीन भारत को धमकाने की बजाय नरम तेवर के लिए मजबूर हुआ। भारतीय सेना द्वारा अपनी योजनाओं को प्रकट नहीं होने देकर बड़ी प्रतिबद्धता के साथ ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा जामकर बैठ जाना ही चीन की इस नरमी की वजह है। यदि किसी माध्यम से सरकार तथा सेना की इस योजना की जानकारी चीन तक पहुंच गयी होती तो निश्चित तौर पर ब्लैक टॉप एवं पैंगोलिन झील के किनारे स्थित अनेक फिंगर चोटियों पर कब्जा जमाना उसके लिए असंभव हो जाता और चीन इस क्षेत्र में बढ़त बनाकर रखते हुए पूर्व की तरह भारत को धमका रहा होता।
जहां तक संसद में इसपर चर्चा का प्रश्न है, मौजूदा स्थिति में राष्ट्रीय सुरक्षा तथा सैन्य योजनाओं पर खुलकर चर्चा नहीं हो सकती। गोपनीयता बनाए रखकर उसपर अमल कर खुद को मजबूत बनाए रखना, आज की जरूरत है। इसके बल पर बिना युद्ध किए कूटनीतिक स्तर पर वार्ता कर समस्या का समाधान करते हुए चीन को झुकाया जा सकता है। हमें यह बात सदैव याद रखनी होगी कि 1962 में चीन हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे की आड़ में भारत के साथ छल किया। हमारी तत्कालीन कमजोरी और अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण चीन ने अक्साई चीन की लगभग 40000 वर्ग किमी भूमि हथिया ली, जिसे वापस पाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। आज राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सेना की आवश्यकताओं की हर प्रकार की पूर्ति कर उसकी शक्ति तथा गतिविधियों को मजबूती प्रदान करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved