बीजिंग । चीनी राजनयिक (Chinese Diplomat) ने कहा है कि नाटो (NATO) को अपने दावे पर अड़िग रहना चाहिए, जिसमें उसने वादा किया है कि वो पूर्व दिशा की ओर विस्तार नहीं करेगा. चीन के उप विदेशमंत्री ली युचेंग ने दिए भाषण में यूक्रेन (Ukraine) पर सैन्य कार्रवाई के जवाब में पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर सख्त पाबंदियों की आलोचना करते हुए कहा कि यूक्रेन युद्ध की जड़ में शीतयुद्ध की मानसिकता और ताकत की राजनीति है.
क्रेमलिन (रूसी सरकार का मुख्यालय) के रुख का समर्थन करते हुए चीनी राजनयिक ने कहा कि अगर नाटो का विस्तार और होगा तो ये मॉस्को के करीब पहुंच जाएगा, जहां से मिसाइल पांच से सात मिनट में क्रेमलिन को निशाना बना सकते हैं.
उन्होंने कहा कि प्रमुख देश को खासतौर पर परमाणु संपन्न देश को हाशिये पर धकेलने का भयानक परिणाम होगा, जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. साथ ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बार-बार दोहराए गए रुख का समर्थन करते हुए कहा कि नाटो को विघठित करना चाहिए था और वॉरसा संधि के साथ इतिहास में भेजना चाहिए था. चीनी राजनयिक ने कहा कि हालांकि नाटो को विखंडित करने के बजाए मजबूत और विस्तार किया गया है और इसने युगोस्लाविया, इराक, सीरिया और अफगानिस्तान देशों में सैन्य हस्तक्षेप किया.
उन्होंने कहा कि कोई भी इस रास्ते के नतीजों का अनुमान लगा सकता है. यूक्रेन संकट कड़ी चेतावनी है. युचेंग ने कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बातचीत में यूक्रेन के पक्षों को राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने और चल रहे संवाद और वार्ता को जारी रखने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि यूक्रेन और नाटो को भी रूस से संवाद करना चाहिए ताकि यूक्रेन संकट का समाधान किया जा सके और रूस और यूक्रेन दोनों की सुरक्षा चिंताओं को दूर किया जा सके.
उल्लेखनीय है कि इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर चीन यूक्रेनी शहरों पर भीषण हमले कर रहे रूस को मदद मुहैया कराने का फैसला करता है, तो बीजिंग के लिए इसके कुछ निहितार्थ और परिणाम होंगे. व्हाइट हाउस के वरिष्ठ अधिकारियों ने ये जानकारी दी.
अधिकारियों के मुताबिक बाइडेन और जिनपिंग में वीडियो कॉल पर हुई 110 मिनट लंबी बातचीत यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद दोनों नेताओं में हुई पहली बातचीत थी. उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि ये बातचीत मुख्य रूप से यूक्रेन में रूस के विशेष सैन्य अभियान और अमेरिका-चीन संबंधों के अलावा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए उसके निहितार्थ पर केंद्रित थी.
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