– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा अंतरराष्ट्रीय द्विपक्षीय और क्षेत्रीय दृष्टि से उपयोगी साबित हुई। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में वैश्विक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया। यहां चीन और पाकिस्तान जैसे देश भी उपस्थित थे जो दुनिया को समस्याएं तो दे सकते है, लेकिन किसी समस्या का समाधान उनके पास नहीं है। चीन तो जिस देश की समस्या सुलझाने के नाम पर हस्तक्षेप करता है, उसी को अपने जाल में फंसा लेता है। ऐसा उसने अपने परम मित्र पाकिस्तान के साथ भी किया है। पाकिस्तान उसके ऋण जाल में ऐसा उलझा है कि उससे निकलने का कोई रास्ता ही नहीं बचा है। अफगानिस्तान में तालिबान को सहायता देकर चीन ने वहां के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण जमाने का प्रयास किया है। श्रीलंका को सहायता दी तो कोलंबो में हस्तक्षेप करने लगा। श्रीलंका सरकार ने इसे समय रहते समझ लिया। उसने चीन के साथ चल रहे सहयोग से किनारा कर लिया। नेपाल को सहायता दी तो कम्युनिस्ट पार्टी के माध्यम से वहां भी नियंत्रण का काम किया।
विडंबना यह कि विस्तारवादी मानसिकता से ग्रसित चीन संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। इसके भरोसे दुनिया में शांति स्थापित करने का सिद्धांत बनाया गया। व्यवहार में इसका उल्टा हो रहा है। इसके अलावा विकसित देशों ने अपनी उपभोगवादी सभ्यता को विकास का आधार बनाया। इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों को बेहिसाब दोहन किया गया। विकास तो हुआ। लेकिन पर्यावरण संकट खतरे के बिंदु से ऊपर निकलने लगा। इस संकट से निकलने का पश्चिमी देशों के पास कोई समाधान नहीं है। लेकिन मानव के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए समाधान तो ढूंढना पड़ेगा। इसका एक मात्र समाधान भारतीय चिंतन में है। जिसमें कामना की गयी है-
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयः
हमारे ऋषियों ने यह नहीं कहा कि केवल भारत में रहने वाले सुखी रहें, या केवल हिन्दू सुखी रहें। बल्कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग सुखी रहें। ऐसा चिंतन किसी अन्य सभ्यता में नहीं है। इसी प्रकार हमारे ऋषियों ने पृथ्वी सूक्ति की रचना की। जिसमें प्रकृति को दिव्य मान कर प्रणाम किया गया। उसके संरक्षण व संवर्धन का सन्देश दिया गया। आज दुनिया में पर्यावरण का जो संकट है,उसका समाधान भारतीय ऋषियों के पृथ्वी सूक्त के माध्यम से ही किया जा सकता है। दुनिया ने इन भारतीय विचारों पर पहले अमल किया होता तो आज पर्यावरण और आतंकवाद का संकट पैदा ही नहीं होता।
नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में अपने अनेक कार्यक्रमों के मध्यम से दुनिया की वर्तमान समस्याओं को उठाया। साथ ही उनका समाधान भी बताया। इस विचार पर चलने से पहले चीन और पाकिस्तान जैसे देशों पर नकेल कसना जरूरी है। अमेरिका में आयोजित क्वाड समूह की बैठक का यही उद्देश्य था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसके लिए नरेंद्र मोदी को व्हाइट हाउस आमंत्रित किया था। क्वाड देशों की यह पहली बैठक व्हाइट हाउस में हुई। इसमें नरेंद्र मोदी के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिडे सुगा और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन भी शामिल हुए। इस बैठक में चीन पर नकेल कसने के मंसूबा दिखाई दिया।
क्वाड समूह चीन की घेरने की रणनीति के तहत बनाया गया है। वहीं चीन की दूसरी तरफ से घेराबंदी के लिए ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका ने बीते दिनों एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौते का एलान किया था। इसे ऑकस नाम दिया गया है। क्वाड और ऑकस के उद्देश्य अलग हैं। क्वाड का गठन हिंद प्रशांत क्षेत्र की जरूरतें पूरी करने के लिए किया गया है। जबकि ऑकस तीन देशों के बीच सुरक्षा गठबंधन है। हिंद महासागर में सुनामी के बाद भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने आपदा राहत प्रयासों में सहयोग करने के लिए एक अनौपचारिक गठबंधन बनाया था। चीन की हरकत बढ़ने पर चारों देशों ने क्वाड को पुनर्जीवित किया। इसके उद्देश्यों को व्यापक बनाया। इसके तहत एक ऐसे तंत्र का निर्माण किया जिसका उद्देश्य एक नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करना है। चारों देश एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोकने का काम करेंगे।
जापान और भारत ने क्वाड बनाने की पहल की थी। बाइडेन ने कहा कि इस संगठन में वही लोकतांत्रिक देश आमंत्रित किये गए है,जो पूरी दुनिया के लिए समावेशी सोच रखते हैं। जिनका भविष्य के लिए एक विजन है। सभी साथ मिलकर आने वाली चुनौतियों से निपटने की तैयारी करेंगे। नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब पूरी दुनिया कोरोना से लड़ रही है तब फिर दुनिया की भलाई के लिए क्वाड सक्रिय हुआ है। उन्होंने क्वाड से संबंधित भविष्य की रणनीति को रेखांकित किया। भारत क्वाड वैक्सीन इनिशिएटिव इंडो पैसेफिक देशों की सहायता करेगा। सदस्य देशों के साझा लोकतांत्रिक मूल्य है। इस आधार पर क्वाड ने पॉजिटिव सोच, पॉजिटिव अप्रोच के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया है। सप्लाई चेन, वैश्विक सुरक्षा क्लाइमेट एक्शन, कोविड रिस्पांस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने भारत के सहयोग को सराहनीय बताया। कहा कि वैश्विक आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए भारत में वैक्सीन की अतिरिक्त एक बिलियन डोज उत्पादन के प्रयास किये जा रहे है। जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा ने कहा कि क्वाड के ये सभी चार देश मौलिक अधिकारों में विश्वास करते हैं। यह मानते हैं कि इंडो पैसिफिक को स्वतंत्र और खुला होना चाहिए। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने स्वतंत्र और खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र का समर्थन किया। इससे एक मजबूत और समृद्ध क्षेत्र का निर्माण होगा।
इसके अलावा नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल कोविड समिट में संदेश दिया। कहा कि कोरोनाकाल में भारत ने डेढ़ सौ से ज्यादा देशों की मदद की और 95 देशों तक भारत में बनी कोरोना वैक्सीन पहुंचाई। दूसरी लहर के दौरान भारत का सहयोग करने वाले देशों के प्रति उन्होंने आभार व्यक्त किया। कहा कि वैक्सीन सर्टिफिकेट को मान्यता देकर अंतरराष्ट्रीय यात्रा को आसान बनाया जाए। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा के साथ नरेंद्र मोदी की द्विपक्षीय बैठक भी हुई। जिसमें द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति हुई। नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में शांति सौहार्द का सन्देश दिया। कहा कि आतंकवाद के संरक्षक मुल्कों को भी समझना होगा कि यह उनके लिए भी उतना ही बड़ा खतरा है। अफगानिस्तान पर सतर्क रहने की जरूरत है। यह देखना होगा कि कोई भी देश वहां की नाजुक स्थितियों का अपने स्वार्थ के लिए एक टूल की तरह इस्तेमाल ना करे।
जाहिर है कि भारत ने दुनिया को कल्याण का मार्ग दिखाया है। नरेंद्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में संबोधन इसी विचार के अनुरूप था। संकुचित व असहिष्णु विचारों ने दुनिया में अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। आतंकवाद का विस्तार इसका प्रमाण है। जबकि परस्पर सहयोग से अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। कुछ समय पहले ही भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष निर्वाचित हुआ है। यह बात अलग है कि सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी देशों को वीटो पावर हासिल है। भारत इसका स्थायी सदस्य नहीं है। लेकिन विश्व को शांति सौहार्द व सहयोग का सन्देश भारत की तरफ से मिल रहा है।
अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद को संबोधित किया है। नरेंद्र मोदी के विचार मानव कल्याण के मार्गदर्शक के रूप में रहे। नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद को मानवता के लिए खतरा बताया। आतंक के कारण दुनिया के अनेक क्षेत्रों में हिंसा का माहौल है। अफगानिस्तान में तो आतंकियों के वर्चस्व वाली सरकार है। विश्व शांति के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य शांति सौहार्द व सहयोग कायम करना था। इसमें में सुरक्षा परिषद का गठन किया गया। जैसा नाम से स्पष्ट है कि सुरक्षा सुनिश्चित करने की विशेष जिम्मेदारी इसकी है। इसके लिए पांच महाशक्तियों को वीटो पावर दिया गया। अनेक मसलों पर इसने अपनी जिम्मेदारी का समुचित निर्वाह नहीं किया। अफगानिस्तान इसकी मिसाल है। अनेक देशों की सहायता से ही तालिबान मजबूत हुआ। तालिबान को वीटो पावर धारी चीन, रूस और पाकिस्तान की सहायता मिलती रही। जब तक नाटो की सेनाएं अफगानिस्तान में रही, तालिबान को सिर उठाने का मौका नहीं मिला। जैसे ही नाटो सैनिकों की वापसी शुरू हुई, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा हो गया। अफगानिस्तान की आधिकारिक सेना उसके सामने टिक नहीं सकी। बीस वर्षों की कवायद कुछ दिनों में नाकाम हो गई।
बिडंबना देखिए तालिबान की हुकूमत उनकी कमान में है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मोस्ट वांटेड इस्लामी आतंकी घोषित किया गया था। नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत को मदर आफ डेमोक्रेसी का गौरव हासिल है। लोकतंत्र की हमारी हजारों वर्षों की महान परंपरा रही है। विविधता में एकता भारत की विरासत है। भारत वाइब्रेंट डेमोक्रेसी का बेहतरीन उदाहरण है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने और आतंकी हमलों के लिए नहीं होना चाहिए। इसे सुनिश्चित करना होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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