बीजिंग । कोरोना वायरस (Corona virus) को अपने फायदे के लिए चीन (china) द्वारा दुनिया (world) में फैलाने की आशंका और पुख्ता हो रही है। । फॉक्स न्यूज ने अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों के हवाले बताया है कि ऐसे कई प्रमाण हैं, जिनसे डॉ. झेंगली ((Dr. Shi Zhengli)) और चीन के सैन्य विज्ञानियों (military scientists) के बीच संबंध की पुष्टि होती है।
अब तक शोध को लेकर सेना से संबंधों को नकारते रहे वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (wuhan institute of virology) का यह दावा झूठा साबित हुआ है। इंस्टीट्यूट में कोरोना वायरस पर शोध करने वाली और बैट वुमेन के नाम से प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट डॉ. शी झेंगली (Dr. Shi Zhengli) के संबंध चीनी सेना के विज्ञानियों से होने की बात सामने आई है।
एक बड़ा वर्ग है, जो मानता है कि मौजूदा महामारी का कारण बनने वाला सार्स-कोवी-2 वायरस वुहान के इंस्टीट्यूट से ही फैला है। चीनी सेना द्वारा वायरस को जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल की कोशिशों की भी बातें सामने आती रही हैं। हालांकि चीन लगातार इन दलीलों को खारिज करता रहा है। अब सामने आया है कि बैट वुमेन डॉ. झेंगली ने चीन के दो सैन्य विज्ञानियों के साथ काम किया था। इनमें से एक विज्ञानी की बाद में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि डॉ. झेंगली ने सैन्य विज्ञानी टोन यिगांग के साथ 2018 में कोरोना वायरस को लेकर काम किया था। 2019 में डॉ. झेंगली ने झोउ युसेन के साथ शोध किया था। 2020 में एक लेख में फुटनोट में जिक्र किया गया था कि झोउ की मौत हो गई है। हालांकि उनकी मौत के कारण के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं की गई।
वायरस की लीक थ्योरी के बीच एक रिपोर्ट यह भी है कि चीन ने कोरोना वायरस के शोध से जुड़े पुराने डाटा मिटा दिए हैं, ताकि किसी भी तरह इसकी उत्पत्ति तक न पहुंचा जा सके। इससे वायरस को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की जांच भी प्रभावित हुई। वहीं, चीन में जांच के लिए गई डब्ल्यूएचओ की टीम को इस बात के बहुत कम ही प्रमाण मिल पाए कि चीन किस तरह के शोध कर रहा था। जांच दल को वहां खोजबीन करने के लिए सीमित अधिकार ही चीन ने दिए थे।
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