नई दिल्ली: कोरोना का दंश अभी खत्म भी नहीं हुआ और चीन एक बार फिर दुनिया तबाह करने की तैयारी में जुट गया है. अंतर बस इतना है कि पिछली बार जान का नुकसान किया था और इस बार ‘माल’ यानी मनी पर हमले की तैयारी में है. ग्लोबल एजेंसी ब्रैड सेटसर ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि चीन ग्लोबल इकोनॉमी के लिए एक नए तरह का खतरा पैदा कर रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन 6 लाख करोड़ डॉलर (करीब 482 लाख करोड़ रुपये) के ऐसे ढेर पर बैठा है, जो उसके बही खाते से मेल ही नहीं खाता. इसमें से 3 लाख करोड़ डॉलर (करीब 241 लाख करोड़ रुपये) तो पूरी तरह से छिपे हुए हैं. दिक्कत इस बात की है कि 3 लाख करोड़ डॉलर के फॉरेन एक्सचेंज का लेखाजोखा ही पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना की ऑफिशियल बुक में नहीं लिखा है.
न्यूयॉर्क बेस्ड न्यूज प्लेटफॉर्म पर अमेरिका के पूर्व ट्रेड एवं ट्रेजरी अधिकारी ने एक लेख में इस बात का खुलासा किया है. इन पैसों को शैडो रिजर्व कहा गया है. वैसे तो चीन का रिजर्व हाल के वर्षों में बढ़ा नहीं है, लेकिन इस छिपे खजाने का आकार लगातार बढ़ रहा है.
सेटसर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पारर्शिता के अभाव में चीन पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकता है. चीन की अर्थव्यवस्था ग्लोबल इकोनॉमी के सापेक्ष काफी केंद्रित है, लेकिन उसके किसी भी काम का असर पूरी दुनिया पर ज्यादा पड़ता है. बाइडेन प्रशासन के पूर्व ट्रेड एडवाइजर का कहना है कि चीन इस सरप्लस पैसे का इस्तेमाल बेल्ट एंड रोड परियोजना को पूरा करने में कर रहा है.
पूर्व ट्रेड एडवाइजर का कहना है कि चीन एक आर्थिक ताकत के रूप में काफी मजबूत है, लेकिन असंतुलित इकोनॉमी है. 2009 की तरह एक बार फिर चीनी अपने फॉरेन एक्सचेंज को मैनेज करने के लिए नए रास्ते तलाश रहा है. इस छिपे खजाने के मूल्य का अंदाजा इसी बात से लाया जा सकता है कि इसका इस्तेमाल कर चीन एक झटके में कर्ज की समस्या को समाप्त कर सकता है.
ग्लोबल लेवल पर भी चीन कई देशों और कंपनियों को कर्ज बांट रहा है. कुल मिलाकर उसके साथ पैसों को लेकर आई कोई भी समस्या दुनिया को पहले प्रभावित करेगी. चीन सहित कई ग्लोबल संस्थाओ में इस बात की रिपोर्ट की है कि सेंट्रल गवर्नमेंट के पास करीब 60 खरब डॉलर का फॉरेन असेट है. इसमें से आधा यानी 30 खरब डॉलर तो ऑफिशियल रिजर्व के रूप में रखा है. लेकिन, आधी रकम का लेखा-जोखा नहीं होने से वही पूरी दुनिया के लिए खतरा बन सकता है.
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