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    अपनी चालाकियों से बाज नहीं आ रहा चीन

  • May 27, 2021
    प्रमोद भार्गव
    चीन अपनी चालाकियों से बाज नहीं आ रहा है। दुनिया के देश जब अपनी आबादी को कोरोना संकट से छुटकारे के लिए जूझ रहे हैं, तब चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को बढ़ावा देने में लगा है। वैश्विक संस्थाओं और महाशक्तियों की भी उसे परवाह नहीं है। उसकी कुटिल चाल का ताजा खुलासा आस्ट्रेलियाई मीडिया ने किया है कि चीन ने भूटान की भूमि में आठ किमी अंदर घुसकर ग्यालाफुग नाम का गांव बसा लिया है। यही नहीं यहां चीन ने भवन, सड़कें, पुलिस स्टेशन और थलसेना के शिविर भी बना लिए हैं। गांव में बिजली की आपूर्ति के लिए ऊर्जा संयंत्र, गोदाम और चीन की कम्युनिष्ट पार्टी का दफ्तर भी खुल गया है। गांव में 100 से ज्यादा लोग रह रहे है। पहाड़ों पर आवागमन का साथी याक भी 100 की संख्या में मौजूद है। यह भूखंड भूटान का हिस्सा निर्विवाद रूप से है ही, भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा भी इस क्षेत्र से जुड़ती है। चीन अपनी विस्तारवादी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए अरुणाचल पर भी दावा ठोकता रहता है। दरअसल भूटान की जमीन कब्जाना तो बहाना भर है, उसका असली निशाना अरुणाचल प्रदेश है।
    चीन और भूटान के बीच 470 किमी लंबी सीमा जुड़ी हुई है। वह भलीभांति जानता है कि छोटे-से देश तिब्बत को जिस अनैतिक दखल के चलते हथिया लिया है, उसी तरह भूटान को भी आधिपत्य में ले लेगा। दरअसल चीन को अपनी एक अरब 40 करोड़ की आबादी और विशाल सेना पर घमंड है। इसीलिए सेना ने गांव में एक बड़ा बैनर टांग दिया है। इस पर लिखा है, ‘शी जिनपिंग पर विश्वास बनाए रखें।’ जबकि सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच कुनमिंग शहर में 25 बैठकें हो चुकी हैं, जो बेनतीजा रहीं। बहरहाल, भूमि के इस टुकड़े पर अतिक्रमण करके चीन ने दोनों देशों के बीच हुए 1998 के समझौते को ठुकरा दिया है। 1980 में चीन ने जो नक्शा सार्वजनिक किया था, उसमें ग्यालाफुग ग्राम को भूटान की सीमा में दिखाया है। चीन ने इसके पहले इस भूखंड पर कभी अपना अधिकार जमाने का दावा नहीं किया। चीन भूटान की 12 प्रतिशत जमीन पर दावा जताता है। चीनी मामलों के विशेषज्ञ रॉबर्ट बर्नेट का कहना है कि चीन यह सब सोची-समझी रणनीति के तहत कर रहा है। चीन की मंशा है कि इस हस्तक्षेप का भूटान विरोध करे और चीन इस जमीन पर अपना अधिकारिक दावा ठोक दे।
    दरअसल बौद्ध धर्मावलंबी चीन, भूटान और तिब्बत में अनेक समानताएं हैं। नतीजतन भिन्नताओं का पता करना मुश्किल हो जाता है। चीन को भूटान के भारत से मधुर, व्यापारिक, सामरिक व कूटनीतिक संबंध होना भी सालता है। इसलिए चीन भूटान के बहाने भारत को भी उकसाना चाहता है। चीन ने जब भूटान के डोकलाम क्षेत्र में घुसपैठ की थी, तब भारत के प्रभावी हस्तक्षेप के चलते उसे पीछे हटना पड़ा था। यह फांस भी चीन को चुभ रही है।
    चीन ने इस घुसपैठ से पहले डोकलाम क्षेत्र को भी हथियाना चाहा था। चालाकी बरतते हुए चीन ने इसे नया चीनी नाम डोगलांग दे दिया था, जिससे यह क्षेत्र उसकी विरासत का हिस्सा लगे। इस क्षेत्र को लेकर चीन और भूटान के बीच कई दशकों से विवाद जारी है। चीन इसपर अपना मालिकाना हक जताता है, जबकि वास्तव में यह भूटान के स्वामित्व का क्षेत्र है। चीन सड़क के बहाने इस क्षेत्र में स्थाई घुसपैठ की कोशिश में है। जबकि भूटान इसे अपनी संप्रभुता पर हमला मानता है। दरअसल चीन अर्से से इस कवायद में लगा है कि चुंबा घाटी जो कि भूटान और सिक्किम के ठीक मघ्य में सिलीगुड़ी की ओर 15 किलोमीटर की चौड़ाई के साथ बढ़ती है, उसका एक बड़ा हिस्सा सड़क निर्माण के बहाने हथिया ले। चीन ने इस मकसद की पूर्ति के लिए भूटान को यह लालच भी दिया था कि वह डोकलाम पठार का 269 वर्ग किलोमीटर भू-क्षेत्र चीन को दे दे और उसके बदले में भूटान के उत्तर पश्चिम इलाके में लगभग 500 वर्ग किलोमीटर भूमि ले ले। लेकिन 2001 में जब यह प्रस्ताव चीन ने भूटान को दिया था, तभी वहां के शासक जिग्में सिग्ये वांगचूक ने भूटान की राष्ट्रीय विधानसभा में यह स्पष्ट कर दिया था कि भूटान को इस तरह का कोई प्रस्ताव मंजूर नहीं है। छोटे-से देश की इस दृढता से चीन आहत है।
    भारत और भूटान के बीच 1950 में हुई संधि के मुताबिक भारतीय सेना की एक टुकड़ी भूटान की सेना को प्रशिक्षण देने के लिए भूटान में हमेशा तैनात रहती है। इसी कारण जब चीन भूटान और सिक्किम सीमा के त्रिकोण पर सड़क निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने का काम करता है, तो भूटान इसे अपनी भौगोलिक अखंडता एवं संप्रभुता में हस्तक्षेप मानकर आपत्ति जताने लगता है। लिहाजा संधि के अनुसार भारतीय सेना का दखल अनिवार्य हो जाता है।

    मई 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कुशल कूटनीति के चलते सिक्किम को भारत का हिस्सा बना था। सिक्किम ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसकी चीन के साथ सीमा निर्धारित है। यह सीमा 1898 में चीन से हुई संधि के आधार पर सुनिश्चित की गई थी। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन और ब्रिटिश भारत के बीच हुई संधि को 1959 में एक पत्र के जरिए स्वीकार लिया था। उस समय चीन में प्रधानमंत्री झोऊ एनलाई थे। हालांकि 1998 में चीन और भूटान सीमा-संधि के अनुसार दोनों देश यह शर्त मानने को बाध्य हैं, जिसमें 1959 की स्थिति बहाल रखनी है। बावजूद चीन इस स्थिति को सड़क के बहाने बदलने को आतुर तो है ही, युद्ध के हालात भी उत्पन्न कर रहा है। भारत इस विवादित क्षेत्र डोकाला, भूटान डोकलम और चीन डोगलांग कहता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जहां आबादी का घनत्व न्यूनतम है। पिछले एक दशक से यहांं पूरी तरह शांति कायम थी, लेकिन चीन ने सैनिकों की तैनाती व सड़क निर्माण का उपक्रम कर क्षेत्र में अशांति ला दी।
    अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की जून-2016 में आई रिपोर्ट ने भारत को सचेत किया था कि चीन भारत से सटी हुई सीमाओं पर अपनी सैन्य शक्ति और सामरिक आवागमन के संसाधन बढ़ा रहा है। भारत और चीन के बीच अक्साई चिन को लेकर करीब 4000 किमी और सिक्किम को लेकर 220 किमी सीमाई विवाद है। तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश में भी सीमाई हस्तक्षेप कर चीन विवाद खड़ा करता रहता है। 2015 में उत्तरी लद्दाख की भारतीय सीमा में घुसकर चीन के सैनिकों ने अपने तंबू गाढ़कर सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया था। तब दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच 5 दिनों तक चली वार्ता के बाद चीनी सेना वापस लौटी थी। चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाकर पानी का विवाद भी खड़ा करता रहता है।
    दरअसल चीन विस्तारवादी तथा वर्चस्ववादी राष्ट्र की मानसिकता रखता है। इसी के चलते उसकी दक्षिण चीन सागर पर एकाधिकार को लेकर वियतनाम, फिलीपिंस, ताइवान और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ ठनी हुई है। भारत समेत 13 देशों के साथ चीन का सीमाई विवाद चल रहा है। नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाइलैंड और भूटान में लगातार चीन का हस्तक्षेप बढ़ रहा है, जो भारत के लिए आसन्न खतरा है। इन देशों से जुड़े कई मामले अंतरराष्ट्रीय पंचायत में भी लंबित हैं। बावजूद चीन अपने अड़ियल रवैये से बाज नहीं आता है। दरअसल उसकी असली मंशा दूसरे देशों के प्राकृतिक संसाधन हड़पना है। इसीलिए आज उत्तर कोरिया और पाकिस्तान को छोड़ ऐसा कोई अन्य देश नहीं है, जिसे चीन अपना पक्का दोस्त मानता हो।
    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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