नई दिल्ली । देश आजादी का अमृत महोत्सव (nectar festival of freedom) मना रहा है। अंग्रेजों के गुलामी से आजादी मिले 75 साल पूरे हो चुके हैं। इन 75 सालों में भारत (India) ने खूब तरक्की की। कई दिक्कतों का भी सामना किया। आज दुनिया में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था (Economy) बन चुकी है। लेकिन कई मामलों में हम अपने पड़ोसियों से आज भी पीछे हैं।
अब पड़ोसी देशों (neighboring countries) की बात कर लेते हैं। पाकिस्तान हमसे एक दिन पहले यानी 14 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। वहीं, चीन दो साल बाद यानी 1949 में आजाद हुआ था। आबादी के लिहाज से चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश भारत है। दोनों एक-दूसरे के पड़ोसी भी हैं। आजादी के बाद से चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है।
एक समय था, जब भारत और चीन (India and China) की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में खास अंतर नहीं था। बात 1980 की करें तो भारत की जीडीपी 186 अरब डॉलर थी और चीन की 191 अरब डॉलर। अब दोनों देशों की जीडीपी में करीब कई गुना का अंतर आ चुका है। सिर्फ जीडीपी ही नहीं, बल्कि और भी कई मायनों में चीन हमसे कहीं ज्यादा आगे निकल गया है। उसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि चीन ने अपनी आबादी (population) का इस्तेमाल किया, जबकि भारत में बेरोजगारी हमेशा समस्या बनी रही।
जनसंख्या के हिसाब से दोनों देश भले ही आसपास नजर आते हैं, लेकिन जनसंख्या घनत्व (population density) में भारत चीन से काफी आगे निकल चुका है। दरअसल, चीन का क्षेत्रफल 96 लाख वर्ग किलोमीटर है, जबकि भारत का इलाका 33 लाख वर्ग किलोमीटर से भी कम है।
दूसरे पड़ोसी देशों की बात करें, तो पाकिस्तान की आबादी करीब 22.09 करोड़, बांग्लादेश की 16.81 करोड़, म्यांमार की 5.44 करोड़, नेपाल की 2.91 करोड़ और श्रीलंका की 2.19 करोड़ है। जनसंख्या घनत्व के मामले में बांग्लादेश टॉप पर है।
2. अर्थव्यवस्था: चीन की जीडीपी हमसे 7 गुना ज्यादा
अब बात करते हैं पड़ोसी मुल्कों की अर्थव्यवस्था (Economy) की। आंकड़ों पर गौर करें तो 2021 में चीन की जीडीपी 17734.06 बिलियन यूएस डॉलर रही, जबकि भारत की जीडीपी 3173.40 बिलियन यूएस डॉलर दर्ज की गई। न सिर्फ जीडीपी, बल्कि पर कैपिटा इनकम में भी चीन हमसे पांच गुना आगे है। चीन के लोगों की पर कैपिटा इनकम 9020.00 यूएस डॉलर से ज्यादा है और भारत में हर व्यक्ति की सालाना कमाई 1850.00 यूएस डॉलर ही है। अन्य पड़ोसी देशों की जीडीपी की बात करें तो पाकिस्तान में आंकड़ा 346 बिलियन यूएस डॉलर, बांग्लादेश में 416.26 बिलियन यूएस डॉलर, म्यांमार में 65.07 बिलियन यूएस डॉलर और श्रीलंका में 84.52 बिलियन यूएस डॉलर के करीब है।
हाल ही में पिछले वित्त वर्ष के लिए देश की जीडीपी के आंकड़े आए। वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 4.1% रही जो चार तिमाहियों में सबसे कम है। कोरोना महामारी की तीसरी लहर, रूस-यूक्रेन जंग के कारण सप्लाई की चुनौती, कमोडिटी और क्रूड की कीमतों में तेजी से जीडीपी ग्रोथ प्रभावित हुई। इसके बावजूद वित्त वर्ष 2021-22 में देश की जीडीपी 8.7% की रफ्तार से बढ़ी। यह 22 साल में सबसे अधिक है। इसके साथ ही भारत फाइनेंशियल ईयर 2021-22 में दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली इकॉनमी बन गई।
वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तीन तिमाहियों में देश की इकॉनमी क्रमशः 20.1 फीसदी, 8.4 फीसदी और 5.4 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी। हालांकि सरकार ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी ग्रोथ की दर 8.9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। वित्त वर्ष 2020-21 में विकास दर में 6.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। बैक सीरीज के हिसाब से वित्त वर्ष 2022 में जीडीपी ग्रोथ रेट साल 2000 के बाद सबसे ज्यादा है। तब इसमें 8.8 फीसदी तेजी आई थी। करेंट सीरीज में भी यह 17 साल में सबसे अधिक है।
3. डिफेंस: अमेरिका के बाद चीन दूसरे नंबर पर
चीन में इन दिनों रक्षा बजट पर सबसे ज्यादा फोकस है। भारत, ताइवान, अमेरिका सहित कई देशों से तनाव के बीच अपने रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी की। चीन ने रक्षा बजट को 7.1% से बढ़ाकर 229 बिलियन डॉलर कर दिया है। इससे पहले उसका रक्षा बजट 6.8% था। दुनिया में सबसे बड़ा रक्षा बजट अमेरिका का है।
2022 में इसका रक्षा बजट 768.2 अरब डॉलर है। अमेरिका सेना पर अपनी जीडीपी का 3.4 फीसदी हिस्सा खर्च करता है। 61 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट के साथ भारत चौथे नंबर पर है। तीसरे नंबर पर सउदी अरब है। इनका डिफेंस बजट 67 बिलियन डॉलर है। इस मामले में पाकिस्तान टॉप-10 देशों में भी नहीं है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए पाकिस्तान का डिफेंस बजट 1.52 बिलियन डॉलर है, जो पिछले साल की तुलना में 11 प्रतिशत ज्यादा था।
4. शिक्षा: भारत अपने पड़ोसियों के पीछे
विश्व में साक्षरता के महत्व को ध्यान में रखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 17 नवंबर 1965 को 8 सितंबर का दिन विश्व साक्षरता दिवस के लिए निर्धारित किया था। 1966 में पहला विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया और तब से हर साल इसे मनाए जाने की परंपरा है। संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक समुदाय को साक्षरता के प्रति जागरूक करने के लिए इसकी शुरुआत की थी। प्रत्येक वर्ष एक नए उद्देश्य के साथ विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है।
भारत ने भी सभी को शिक्षित करने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिसका असर भी दिखा है। 2001 में जहां भारत की शिक्षा दर 64.83 थी, वो 2011 में 74.04 फीसदी हो गई। 2022 में इसमें सुधार हुआ और अब ये 77.7% हो गई है। इसके बावजूद हमें प्रयास तेज करने होंगे, क्योंकि शिक्षा के मामले में हम चीन, श्रीलंका और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से काफी पीछे हैं।
चीन में 2015 में साक्षरता दर 96.4%, म्यांमार में 89.07% और श्रीलंका में 92.25% फीसदी है। वहीं, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश शिक्षा के मामले में भारत से पीछे हैं। नेपाल की साक्षरता दर 64.7 फीसदी, बांग्लादेश की 74.68% फीसदी और पाकिस्तान की साक्षरता दर 58.00% है।
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