बीजिंग। चीन (China) ने तकनीक के मामले में नित नए मुकाम हासिल कर रहा है। तकनीक के मामले में चीन ने अमेरिका, रूस और जापान जैसे विकसित देशों को पछाड़ दिया है। चीन के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम सूरज (Artificial sun) परमाणु संलयन रिएक्टर को सफलतापूर्वक कर दुनिया में दूसरे सूरज के दावे को सच कर दिखाया है। जाहिर है चीन भी इसमें शामिल है और उसने अब अपने न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर को पहली बार शुरू कर दिया है। इस रिएक्टर से इतनी ज्यादा ऊर्जा पैदा की जा सकती है कि इसे ‘आर्टिफिशल सूरज’ कहा गया है। इसकी मदद से चीन ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी रिसर्च की क्षमता को भी बढ़ाया है।
फ्यूजन रिएक्शन : फ्यूजन से ही सूरज को ऊर्जा मिलती है। इसकी वजह से ऐसा प्लाज्मा पैदा होता है जिसमें हाइड्रोजन के आइसोटोप्स आपस में फ्यूज होकर हीलियम और न्यूट्रॉन बनाते हैं। शुरुआत में रिएक्शन से गर्मी पैदा हो, इसके लिए ऊर्जा की खपत होती है लेकिन एक बार रिएक्शन शुरू हो जाता है तो फिर रिएक्शन की वजह से ऊर्जा पैदा भी होने लगती है। ITER पहला ऐसा रिएक्टर है जिसका उद्देश्य है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन के शुरू होने में जितनी ऊर्जा इस्तेमाल हो, उससे ज्यादा ऊर्जा रिएक्शन की वजह से बाद में उत्पाद के तौर पर निकले।
150 मिलियन तक रहेगा तापमान : चीनी मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कृत्रिम सूरज की कार्यप्रणाली में एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किया जाता है। इस दौरान यह 150 मिलियन यानी 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमान हासिल कर सकता है। पीपुल्स डेली के मुताबिक, यह असली सूरज की तुलना में दस गुना अधिक गर्म है।
फ्यूजन रिएक्शन क्यों है बेहतर : परमाणु हथियारों और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स में फ्यूजन की जगह फिजन होता है। फ्यूजन रिएक्शन में किसी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं होता है और इसमें किसी ऐक्सिडेंट की संभावना या अटॉमिक मटीरियल की चोरी का खतरा नहीं होता है। बड़े स्तर पर अगर कार्बन-फ्री स्रोत के तौर पर यह एक्सपेरिमेंट सफल हुआ तो भविष्य में क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में दुनिया को अभूतपूर्व फायदा हो सकता है। पहली बार 1985 में इसका एक्सपेरिमेंट का पहला आइडिया लॉन्च किया गया था।
इतनी लागत में बन गया नकली सूरज : संलयन प्राप्त करना बेहद कठिन है और इस प्रोजेक्ट यानी आईटीईआर की कुल लागत 22.5 बिलियन डॉलर है। दुनिया के कई देश सूरज बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन गर्म प्लाज्मा को एक जगह रखना और उसे फ्यूजन तक उसी हालत में रखना सबसे बड़ी मुश्किल आ रही थी।
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