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    चीन की चुनौतियां और भारतीय सेना की ताकत

  • September 03, 2020

    – योगेश कुमार गोयल

    ड्रैगन भारतीय जमीन पर कब्जे का हर दांव चल रहा है लेकिन भारतीय सेना अब उसे मुंहतोड़ जवाब देते हुए पीछे हटने को विवश कर रही है। अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा कुछ अन्य देशों के साथ मिलकर भारत हिन्द महासागर में चीन के खिलाफ मोर्चाबंदी करने के प्रयासों में भी जुट गया है। पैंगोंग में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करते हुए हमारी सेना ने दक्षिण पैंगोग को चीनी नियंत्रण से मुक्त कराकर चीन को जता दिया है कि वह उसकी हरकतों का मुंहतोड़ जवाब देने को पूरी तरह तैयार है। फिंगर पांच और उसके आसपास के इलाकों को कवर करने वाले पैंगोग के दक्षिण इलाके के कुछ हिस्सों में चीनी सैनिक डटे थे, जिन्हें भारतीय सैनिकों ने पीछे की ओर धकेल दिया है। 29 अगस्त की रात पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर झड़प के बाद भारतीय सेना द्वारा ऊंचे इलाकों में मोर्चा संभाल लिया गया है। चीन द्वारा सैनिकों और हथियारों की संख्या बढ़ाए जाने के बाद हमारी सेना द्वारा भी पैंगोग में तैनाती बढ़ा दी गई है।

    सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार फिंगर 6 से 8 के बीच के पैंगोंग झील के उत्तरी इलाकों में चीनी सेना मौजूद है लेकिन भारतीय सेना के जवान चीन की सेना पीएलए को मुंहतोड़ जवाब देने में पूर्णतया सक्षम हैं। हालांकि चीन भारत की सामरिक शक्ति से भली-भांति परिचित है लेकिन दादागिरी करते हुए पड़ोसी देशों की सीमाओं को कब्जाना उसकी विस्तारवादी नीतियों का हिस्सा रहा है। भारत-चीन के बीच हजारों किलोमीटर लंबी एलएसी पर उसकी इन्हीं विस्तारवादी नीतियों के कारण कई दशकों से तनाव व्याप्त है। करीब दो साल पहले डोकलाम विवाद भी उसकी इन्हीं नीतियों की देन था। डोकलाम में भी करीब 70 दिनों के संघर्ष के बाद भारतीय सैनिकों ने उसे पीछे हटने को मजबूर कर दिया। कुछ ऐसा ही अब पैंगोंग के दक्षिण इलाकों में हुआ है, जहां उसे पैर पीछे खींचने पड़े हैं। उसे फिंगर आठ तक पीछे हटना पड़ा है लेकिन धूर्त चीन बार-बार जिस प्रकार एकतरफा और उकसावे की कार्रवाई कर तनाव बढ़ा रहा है, उसे देखते हुए भारतीय सेना अलर्ट मोड पर है। चीन की हर हिमाकत का माकूल जवाब दे रही है। दोनों के बीच लद्दाख में 14270 फुट की ऊंचाई पर स्थित 134 किलोमीटर लंबी पैंगोग सो झील बड़ा मुद्दा है, जहां चीन यथास्थिति बदलने के लिए लगातार साजिशें रच रहा है।

    भारतीय सैनिकों द्वारा जिस प्रकार पैंगोंग में चीनी घुसपैठ को नाकाम करते हुए दक्षिण इलाकों को उसके कब्जे से मुक्त कराया गया है, कम से कम उसके बाद तो चीन को बखूबी समझ आ जाना चाहिए कि भारतीय सेना को हल्के में लेना उसकी सेहत के लिए उचित नहीं होगा। 1962 में जब उसने भारत पर धोखे से हमला किया था, तब हमारी सेना ऊंचाई वाले इलाके में युद्ध के लिए तैयार नहीं थी लेकिन आज परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-चीन सीमा की भौगोलिक स्थिति लद्दाख में भारत के पक्ष में है। बोस्टन में हार्वर्ड केनेडी स्कूल के बेलफर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स तथा वाशिंगटन के एक अमेरिकी सुरक्षा केन्द्र के अध्ययन में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि भारतीय सेना उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में लड़ाई के मामले में माहिर है और चीनी सेना इसके आसपास भी नहीं फटकती।

    चीन के पास भले भारत से ज्यादा बड़ी सेना और सैन्य साजो-सामान है लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में कोई भी देश इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकता कि भारतीय सेना सबसे सक्षम और समर्थ सेना है। धरती पर लड़ी जाने वाली लड़ाईयों के लिए भारतीय सेना की गिनती दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में होती है। कहा जाता है कि अगर किसी सेना में अंग्रेज अधिकारी, अमेरिकी हथियार और भारतीय सैनिक हों तो उस सेना को युद्ध के मैदान में हराना असंभव होगा। अमेरिकी न्यूज वेबसाइट सीएनएन द्वारा भी अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया जा चुका है कि भारत की ताकत पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ गई है और अगर भारत-चीन के बीच युद्ध हुआ तो भारत का पलड़ा भारी रह सकता है।

    दरअसल, युद्ध होता है तो चीन के जे-10 और जे-11 लड़ाकू विमान तिब्बत के ऊंचे पठार से उड़ान भरेंगे, जिससे न तो ऐसे विमानों में ज्यादा ईंधन भरा जा सकता है और न ज्यादा विस्फोटक लादे जा सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक चीनी वायुसेना हवा में ही अपने विमानों में ईंधन भरने में भी उतनी सक्षम नहीं है, जितनी भारतीय वायुसेना। एक अध्ययन के अनुसार तिब्बत तथा शिनजियांग में चीनी हवाई ठिकानों की अधिक ऊंचाई तथा कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण चीनी लड़ाकू विमान अपने आधे पेलोड और ईंधन के साथ ही उड़ान भर सकते हैं जबकि भारतीय लड़ाकू विमान पूरी क्षमता के साथ हमला कर सकते हैं।

    सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने विभिन्न अवसरों पर कहा है कि भारत की सेना के पास अब पूरी ताकत से चीन को जवाब देने की क्षमता है। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया भी कह चुके हैं कि वायुसेना लक्ष्य को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित है तथा किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार तथा सही जगह पर तैनात है। हालांकि चीन के पास भारत से ज्यादा लड़ाकू विमान हैं लेकिन भारतीय लड़ाकू विमान सुखोई 30एमआई का उसके पास कोई तोड़ नहीं है, जो एक साथ 30 निशाने साध सकता है। चीन के पास सुखोई 30 एमकेएम है लेकिन वह एक साथ केवल दो ही निशाने साध सकता है। भारतीय सेना के तीनों अंगों के पास अब ऐसे खतरनाक हथियार हैं, जो चीनी सेना के पास भी नहीं हैं। दोनों देशों के बीच पनप रहे तनाव के बीच भारतीय वायुसेना ने रूस से मिग-29, एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमान, एस-400 मिसाइल प्रणाली मंगाने की प्रक्रिया तेज कर दी है। भारत को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस पांच राफेल विमान मिल चुके हैं और कुछ और राफेल अगले माह भारतीय सेना का अहम हिस्सा बनकर सेना को और मजबूत बनाएंगे।

    रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय थलसेना भी हर परिस्थिति में चीनी सेना से बेहतर और अनुभवी है, जिसके पास युद्ध का बड़ा अनुभव है, जो कि विश्व में शायद ही किसी अन्य देश के पास हो। चीन ने जहां 1979 में वियतनाम युद्ध के बाद से युद्ध की क्रूरता का अनुभव नहीं किया है, वहीं भारतीय सेना को सीमित और कम तीव्रता वाले संघर्षों में महारत हासिल है। कश्मीर में भारतीय सेना आतंकवाद और पाकिस्तान से लंबे अरसे से अघोषित युद्ध में संघर्षरत है। वैसे वियतनाम युद्ध में भी चीन को महीने भर के युद्ध के बाद मुंह की खानी पड़ी थी।

    फिलहाल पैंगोंग इलाकों में निरन्तर तनाव बढ़ा रहा चीन पिछले कुछ समय से पूरे हिन्द महासागर में बंदरगाह, हवाई पट्टी, निगरानी-तंत्र इत्यादि सामरिक ठिकाने तैयार कर भारत को चारों ओर से घेरने के लिए भी प्रयासरत है लेकिन चार महाशक्तियों अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया तथा भारत के गठबंधन के जरिये भारत हिन्द महासागर में चीन के खिलाफ जिस तरह की मोर्चाबंदी करने में जुटा है, उससे चीन बौखला गया है। भारत एशिया तथा प्रशांत सागर को जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग को जोड़ता है और भारत द्वारा इस क्षेत्र में भी अपनी स्थिति मजबूत कर ली गई है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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