डेस्क: कॉल ड्रॉप के पीछ कोई नॉर्मल नेटवर्क इशू नहीं बल्कि बड़ी वजह होती है. इसका खुलासा इस नए मामले ने कर दिया है. एक क्रिमिनल नेटवर्क ने दिल्ली-एनसीआर में टेलिकॉम टावरों में लगे रिमोट रेडियो यूनिट (RRU) को निशाना बनाया है. हाल में इस क्रिमिनल नेटवर्क का पर्दाफाश किया गया है. ये लाखों रुपये के डिवाइसेस को चोरी कर के चीन और दूसरे एशियाई देशों में बेच रहे हैं. आखिर ये आरआरयू क्या होता है और इसका कॉल ड्रॉप से क्या कनेक्शन है.
बीते दो सालों में यूपी में चोरी के मामले काफी बढ़ गए हैं. 2022 में केवल 29 आरआरयू चोरी हुए थे. इसके बाद 2023 में एयरटेल के टावर से 9,000 यूनिट से ज्यादा आरआरयू चोरी किए गए. 2024 तक अलग-अलग टावरों में दोगुने से ज्यादा 20,000 यूनिट तक पहुंच गया था. आरआरयू एक जरूरी कंपोनेंट होते हैं. ये आपके फोन को नेटवर्क प्रोवाइडर के नेटवर्क से जोड़ते हैं. इनकी हर यूनिट 3 से 5 लाख रुपये के बीच होती है. ये डिवाइस सेलुलर कनेक्टिविटी बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं और उनकी चोरी से 24 घंटे तक कॉल ड्रॉप जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
हर टावर की कैपेसिटी के आधार पर तीन से चार आरआरयू यूनिट होती हैं. जब चोर इन यूनिट को निशाना बनाते हैं, तो इससे उस टावर के आसपास के एरिया में सिग्नल स्ट्रेंथ और कॉल कनेक्टिविटी पर काफी असर पड़ता है. टेलिकॉम कंपनी के अधिकारी ने कहा कि अगली बार जब आपको कॉल ड्रॉप का सामना करेंगे तो समझ जाना कि ये आपके पास वाले फोन टावर में चोरी का कारण हो सकता है.
इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए टेलिकॉम कंपनियों ने एडवांस सिक्योरिटी सॉल्यूशन लागू किए हैं. जैसे नेट कूल अलार्म सिस्टम जो आरआरयू के डिस्कनेक्ट होने पर जो लोग इसे मॉनिटर कर रहे हैं उन्हें तुरंत अलर्ट करता है.
टेलिकॉम कंपनी के अधिकारी के मुताबिक, अगर किसी टावर से आरआरयू चोरी हो जाते हैं, तो ये इनेक्टिव हो जाते हैं. इसलिए इफेक्टिव टावर से जुड़े सभी नंबरों को दूसरे टावर में ट्रांसफर करने में थोड़ा समय लग जाता है. एडवांस मॉनिटरिंग सिस्टम के वजह से पिछले तीन महीनों में अकेले दिल्ली-एनसीआर में लगभग 30 और पूरे यूपी में 70 गिरफ्तारियां हुई हैं.
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