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    पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को जल्द मिलेगा गणवेश

  • May 04, 2022

    • मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने राज्य शिक्षा केंद्र को लिखा पत्र

    भोपाल। प्रदेश भर में सरकारी स्कूलों के पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को निश्शुल्क गणवेश दी जा जाती है, लेकिन प्रदेश भर में विद्यार्थियों को दी जा रही स्कूल यूनिफार्म गुणवत्ता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा प्रदेश भर में किए गए निरीक्षण में यह खामी सामने आई है। इसे लेकर बाल आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान ने चिंता जताते हुए एक पत्र राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक को पत्र लिखा है। आयोग सदस्य ने अपने पत्र में गणवेश की खामियां बताते हुए जल्द से जल्द इस दिशा में सुधार करने की अनुशंसा की है।



    आयोग सदस्य ब्रजेश चौहान ने बताया कि ग्रामीण और भोपाल जैसे शहरी क्षेत्रों में भी कई जगह देखने में आया कि गणवेश के कपड़े बेहद हल्के और कमजोर कपड़े में सिली गई है। इसके अलावा सिलाई में भी अनेक खामियां हैं। आयोग सदस्य ने कहा कि स्कूल गणवेश दिए जाने का एक उददेश्य यह भी है कि बच्चे स्कूल जाने के लिए प्रेरित हों और स्कूल चले हम अभियान को सफल बनाया जा सके। स्कूली बच्चे खासकर छोटे बच्चे यूनिफार्म को पहनकर उत्साह और खुशी महसूस करते हैं। ऐसे में उचित तरीके से ना सिली गई यूनिफार्म कहीं न कहीं बच्चों को हताश करती है। आयोग सदस्य ने अपने पत्र में कहा कि यूनिफार्म की गुणवत्ता की जांच कर जल्द से जल्द अच्छे कपड़े में व्यवस्थित सिलाई के साथ गणवेश तैयार कराया जाए। बता दें, कि राज्य शिक्षा केंद्र की ओर से हर साल सरकारी स्कूलों के करीब 65 लाख विद्यार्थियों के लिए दो-दो गणवेश दिए जाते हैं। इसके लिए हर राज्य शिक्षा केंद्र 390 करोड़ रुपये खर्च करती है।

    जुलाई में वितरित किए जाएंगे नए गणवेश
    राज्य शिक्षा केंद्र ने इस सत्र के लिए गणवेश तैयार करने के लिए स्व सहायता समूहों को निर्देश जारी कर दिए हैं। राज्य शिक्षा केंद्र ने समूहों को जुलाई में गणवेश तैयार करने के लिए निर्देश दिए हैं। इस सत्र में 15 जून से स्कूल खुलेंगे। दो साल से कोविड काल के कारण बच्चों को समय से गणवेश नहीं मिल पाया है। इस कारण इस बार पिछले माह में ही गणवेश तैयार करने के निर्देश दे दिए गए हैं। टेंडर भी हो गया है। इस कारण जल्द ही गणवेश तैयार कर लिए जाएंगे। इसके लिए स्कूलों से बच्चों की संख्या मांगी गई है, ताकि किसी भी बच्चे को गणवेश कम ना पड़ जाए।

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